दो अक्षर का लक और तीन अक्षर के नसीब को खोलने के लिए चार अक्षर की मेहनत को आजमाएं
रायपुर। ''अपने जीवन को बहुत आनंद से जिएं और जीवन को बहुत मेहनत और लगन से जिओ, कोई भी कार्य लगातार और लगन के साथ लगा रहे तो आदमी जरूर सफल हो जाता है। अगर कोई भी आदमी लगातार एक हजार दिन अपने कार्य में लगा रहे तो चाहे उसका भाग्य साथ दे या न दे वह जरूर सफल होता ही है। कोई गरीब के घर पैदा हुआ आदमी देश का राष्ट्रपति बन सकता है, आदमी ठान ले और ना बन पाए ऐसा हो ही नहीं सकता। चैलेंज दो अपने-आपको कि मैं क्या नहीं बन सकता। इस दुनिया में आज जितने प्रभावी लोग हैं वे सब अभाव में पैदा हुए थे। जिन्होंने भी हिम्मत और विश्वास रख कर मेहनत की वे कामयाब जरूर हुए। यह तय मानकर चलना इंसान का भाग्य साथ दे या न दो पर उसकी मेहनत परिणाम जरूर देती है। जिस दिन आदमी की अंतर से सोच, प्रज्ञा-मानसिकता जाग जाती है वह असंभव को भी संभव करने में सक्षम हो जाता है। जीवन को हम श्रेष्ठतम जिएं, अपने पारिवारिक प्रेम के प्रति हमेशा जागरुक रहें और अपने धर्म, अध्यात्म, अपनी नैतिकता-पवित्रता से कभी अपने-आपसे दूर न करें। दुनिया में जिएं तो अनासक्त भाव से जिएं। मैं और मेरेपन के भाव से हमेशा अपने-आपको मुक्त रखें।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के नवमें व अंतिम दिन मंगलवार को व्यक्त किए। राष्टÑसंतों की पावन निश्रा में यहां पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आराधना बुधवार, 24 अगस्त से आरंभ होने जा रही है। जिसके प्रथम दिवस ठीक 8.40 बजे से पर्युषण पर्व का विशेष प्रवचन प्रारंभ हो जाएगा, जिसका विषय होगा- पर्युषण: मिटाए भीतर का प्रदूषण। आठ दिनों के इस पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के प्रवचनों का लाइव प्रसारण भी दुनिया के 135 देशों में अरिहंत टीवी के माध्यम से देखा जा सकेगा। आज मंगलवार को पूरे 45 दिनों की प्रवचनमाला के सार स्वरूप 'आज की बात: सार की बात' विषय पर राष्टÑसंत श्रीललितप्रभजी महाराज ने श्रद्धालुओं को जीवन जीने की कला के महत्वपूर्ण सूत्र दिए। प्रेरक भावगीत 'जिएं ऐसा जिएं जो जीवन को महकाए, पंगु भी पर्वत पर चढ़कर जीत के गीत सुनाए...' के संगीतमय गायन से धर्मसभा का शुभारंभ करते हुए संतप्रवर ने कहा कि अमीर बनने का हक केवल अमीरों का नहीं है, हर इंसान का है। और तीर्थंकर बनने का हक केवल महावीर और बुद्ध का नहीं है, मेरा भी हक है और आपका भी हक है। बस मिलता उसी को है जो मेहनत करता है। हाथ में लगा मेहंदी का रंग सात दिनों में फीका पड़ जाता है पर हाथ से किया मेहनत का रंग जीवन भर के लिए आदमी को रंग देता है। इतिहास में और वर्तमान में भी ऐसे बहुत से लोग हैं और हुए जो कल तक तो जमीन पर थे, आज वे आसमान की बुलंदियों पर पहुंचे हैं, और केवल डिग्रियों के भरोसे नहीं बल्कि अपने लगातार प्रयास के बल पर। जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए डिग्रियों की नहीं मानसिकता की जरूरत होती है।
कामयाब आदमी से ईर्ष्या न करें उनसे प्रेरणा लें
संतप्रवर ने आगे कहा कि हर आदमी को आगे बढ़ना चाहिए, अमीर लोगों को देखकर ईर्ष्या करने की बजाय उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, उससे सीख लेनी चाहिए। किसी की सफलता पर ताली बजाने की बजाय उसका ताल ना बजाएं। यही छोटी मानसिकता हमें जिंदगी में कभी आगे नहीं बढ़ने देती क्योंकि सफल हुए व्यक्ति से हम प्रेरणा नहीं लेते, उनसे ईर्ष्या करते हैं। लोग बढ़ते हुए आदमी को देखकर खुश नहीं होते, नेगेट्वि टिप्पणी करते हैं यह उनकी ओछी मानसिकता का परिचायक है।
जीवन हम सफलतापूर्वक जिएं
संतश्री ने बताया कि सफल जीवन के मंत्र यही हैं- मेहनत से कभी जी मत चुराओ। पूरी निष्ठा के साथ मेहनत करो। मेहनत के फल हमेशा मीठे होते हैं। जब लगे कि दो अक्षर का लॅक साथ नहीं दे रहा है, जब लगे ढाई अक्षर का भाग्य भी साथ नहीं दे रहा है, जब लगे तीन अक्षर का नसीब भी साथ नहीं दे रहा और जब लगे साढ़े तीन अक्षर की किस्मत भी साथ नहीं दे रही तब मेरी बात पर भरोसा रखना चार अक्षर की मेहनत शुरू कर देना, ये सबके सब साथ देना शुरू कर देंगे। जीवन का कोई प्रयास बेकार नहीं जाता। जिंदगी के लिए तीन पहलु पर ध्यान देना होगा। नंबर एक- हमारा जीवन श्रेष्ठ हम जिएं, नंबर दो- सफलतापूर्वक हम जिएं, नंबर तीन- अपने पारिवारिक प्रेम के प्रति हम हमेशा जागरुक रहें। परिवार में छोटी-छोटी बातों का भूलकर सब लोग हिल-मिलकर प्रेम से रहें। अगर आप पॉजीटिव वातावरण बनाए रखेंगे तो घर स्वर्ग बन जाएगा। अपने बड़े-बुजुर्गों की, माता-पिता की सेवा सुश्रुषा करें।
जो जैसा हमें मिला है उसे पसंद करें
संतश्री ने कहा कि जब हम जीवन निर्माण की बात कर रहे हैं तो इस पहलु पर विचार जरूरी है कि जिंदगी जीने के दो तरीके हैं, पहला तरीका है जीवन में घटने वाली घटनाओं को आप आह कहकर दुखी होते हैं या आह कहकर सुखी होते हैं। हर इंसान की जिंदगी में सब कुछ मनचाहा तो नहीं मिल सकता। भगवान हमें वो नहीं दे सकता जो हमें पसंद है, यह पक्की बात है। हमारे सुख का राज यही है कि भगवान ने जो दिया है, आप उसे पसंद कर लो और सदा खुश रहो। भगवान ने जो दिया है अगर हम उसे चाहना शुरू कर देते हैं तो हम इस दुनिया के सबसे सुखी आदमी हो सकते हैं। जिंदगी का पहला मंत्र यही बना लें कि मैं आह-आह कह कर जिंदगी को दुखी नहीं करुंगा, मैं वाह-वाह कहकर जिंदगी को सुखी करुंगा। जो नहीं मिला है उसका दुख न मनाएं, जो मिला है उसका जिंदगी में आनंद उठाएं। आज से यह नियम ले लेवें कि मैं अपनी सोच को कभी नीचे नहीं गिराउंगा, अपनी सोच को हमेशा ऊंचा रखुंगा। जिंदगी को सुखी बनाने के लिए अपने जीवन का यह मंत्र बना लें कि मैं जीवन के हर पल को बहुुत आनंद से जीउंगा। भगवान का शुक्राना अदा करते चलो। हमेशा पॉजीट्वि सोचुंगा और पॉजीट्वि बोलुंगा। जिंदगी तो कुल्फी की तरह है आप न खाओ तब भी पिघलना है और न खाओ तभी भी उसका पिघलना तय है। इस जिंदगी का अंत होना तय है। जब तक न हो जाए जिंदगी का बल्व फ्यूज उससे पहले कर लो इसका यूज।
दूसरों को सुधारने से पूर्व पहले अपने-आपको सुधारें
संतप्रवर ने आगे कहा कि अब तक जो हुआ सो हुआ। चलो नई शुरुआत करते हैं, जो उम्मीदें अब तक औरों से की थी, वो अपने-आपसे करते हैं। दूसरों को सुधारने के लिए ये जरूरी नहीं है कि आप दूसरों को सुधारें। दूसरों को सुधारने के लिए जरूरी ये है कि आप अपने-आपको सुधारें। यदि हमेशा आप ये कहते रहेंगे कि भगवान ये नहीं दिया-ये नहीं दिया। अगर आप हमेशा यही कहते रहेंगे कि भगवान ये नहीं दिया तो भगवान भी यही सोचेंगे कि इसकी रोने की आदत पड़ी हुई है। सारी व्यवस्थाएं दे दीं तो भी ये कहता है कि ये नहीं दिया, वो नहीं दिया। चलो अब इसको रहने दो। ज्यादा रोना रोओगे तो भूखे के भूखे रह जाओगे। मन बना लो आज से कि मुझे जो मिला है, उसका मैं शुक्राना अदा करुंगा। हमें जो मिला है, दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग हैं जिन्हें यह भी नहीं मिला है, किसी के पास आंख नहीं है,किसी के पास जुबान और किसी के पास हाथ या पैर भी नहीं है। भगवान ने आपको चेहरा दिया है तो दूसरों को मुस्कान दो। जबान दी है तो दूसरों को मीठे बोल दो। भगवान ने आपको हाथ दिए हैं-दूसरों की मदद करो। पांव दिए हैं-दूसरों का सहयोग करो। भगवान ने आपको मन दिया है-दूसरों के लिए शुभकामना करो। बहुत कुछ तो दिया है भगवान ने आपको। जो नहीं है उसका रोना रोने की बजाए जो है उसका आनंद उठाना, इसी का नाम है जीवन को स्वर्ग बनाना।
धन रबड़ की गेंद की तरह, हाथ से चली गई तो वापस आ जाएगी
संतप्रवर ने कहा कि भगवान ने हर आदमी को 5 गेंद दी हैं। एक गेंद रबड़ की है और चार गेंद कांच की। इन पांच गेंदों में पहली है धन, दूसरी- परिवार, तीसरी- मित्र, चौथी- माता पिता और पांचवी- आत्मा। इनमें से केवल धन ही रबड़ की गेंद है। जो हाथ से चली गई तो वापस आ जाएगी। पर परिवार कांच की गेंद है, हाथ से अगर यह गेंद गिर गई तो टूट जाएगी। रिश्ता आपने तोड़ दिया तो वापस वह वैसा जुड़ने वाला नहीं है। एक बार मित्र से दुश्मनी ले ली तो वापस वैसी दोस्ती जुड़ने वाली नहीं, अगर एक बार आपने माता-पिता से दूरियां बना लीं तो जिंदगी भर इनसे वंचित रह जाओगे क्योंकि ये कांच की गेंद है। अगर आदमी अपने मन की शांति, आत्मा की आवाज को खो बैठा और अपने खुद के निर्णय को गलत लेकर गलत राह पर चल पड़ा तो ये वापस आने वाली नहीं हैं।
गरीब बने रहना यह नियति नहीं है
संतश्री ने कहा कि जितना जरूरी है आदमी अपने जीवन को सही ढंग से जिए, उतना ही जरूरी है आदमी अपने जीवन में सफलता को हासिल करे। गरीब घर में पैदा होना यह आदमी की नियति हो सकती है पर गरीब बने रहना यह हमारे लिए जरूरी नहीं है, हर आदमी प्रयास कर सकता है। समाज का हर व्यक्ति समृद्ध बने और इसके लिए हर आदमी को मेहनत-परिश्रम करना चाहिए। अपनी जिंदगी में आप अपने पैरों पर खड़े होइए, आत्मनिर्भर बनिए। उनसे सीखिए जिनके जीवन में अभाव था लेकिन मेहनत करके उन्होंने अपने जीवन को प्रभावमय बना लिया। आदमी की ही हुई मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। 'तुम्हे चलना है अपने पैरों पर, क्यों भरोसा करता है गैरों पर।' आगे बढ़ना चाहते हो तो आत्मविश्वास रखो। अपनी इच्छा शक्ति को हमेशा मजबूत रखो। अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखो। जीवन में प्रगति के लिए हमेशा क्रियाशील बने रहो। जीवन में हमेशा मेहनत करो। मेहनत से कभी जी मत चुराओ। दुनिया में कामयाब जितने लोग हैं, उनमें 70 परसेंट ऐसे लोग हैं जो किसी गरीब के घर में पैदा हुए। मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती, निरंतर लगे रहो आज नहीं तो कल आदमी सफल जरूर होता है। जिंदगी में परिणाम पाने के लिए आदमी को लगन से लगना पड़ता है। अपने जीवन में मेहनत की आदत डालो। कंधे से कंधा मिलाकर आदमी प्रगति के द्वार खोले।
धर्म का सार है संयम: डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर
लाभ कमाने वाला जग में कोई-कोई है, ऐसे बहुत जिन्होंने तट पर नाव डुबोई है... इस प्रेरणास्पद गीत से शुभारंभ करते हुए डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि न तो किसी के अभाव में जिओ, न किसी तो किसी के प्रभाव में जिओ। ये जिंदगी अपनी है इसे अपने स्वभाव में जिओ।। श्री भगवान कहते हैं- हम स्वयं ही हमारे मित्र हैं और हम स्वयं ही हमारे शत्रु भी हैं। जो सद्प्रवृत्ति में लगा होता है वह स्वयं का मित्र है और जो दुष्प्रवत्तियों में लगा रहता है वह स्वयं का शत्रु है। आत्मोद्धार करने के लिए हमें संयम में प्रवृत्ति करनी चाहिए और असंयम से निवृत्ति लेनी चाहिए। जो अहिंसा, संयम, तप का पालन करता है उसे देवता भी प्रणाम किया करते हैं। धर्म का सार है संयम। समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ तो विनाश होता है और इंसान अपनी मर्यादा छोड़ तो आत्मा का महाविनाश होता है। हम अपने विचारों पर हमेशा संयम रखना चाहिए। विकास के मार्ग पर बढ़ने के लिए हमें अपने नकारात्मक विचारों का विसर्जन करना बहुत आवश्यक है। यह शरीर जितना घूमता रहे उतना अच्छा है और हमारा मन जितना स्थिर रहे उतना ही अच्छा है। पांच पर संयम रखना बहुत जरूरी है, वे हैं- विचार, वाणी, काया, जीभ, नेत्र, कर्ण और उपेक्षा-अपमान। पहली बात तो यह है कि किसी से ज्यादा अपेक्षाएं मत पाला और जब कभी अपेक्षा की उपेक्षा हो भी जाए तो संयम में आकर उसे स्वीकार कर लो। आगार से अणगार व्यक्ति तभी बनता है जब उसके जीवन में संयम का पालन होता है।
अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञान का दीप
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि मंगलवार को दिव्य सत्संग का शुभारंभ अतिथिगण आशुतोष त्रिपाठी, नरेंद्र पारख, महावीर तालेड़ा, मनोज कोठारी, अभय भंसाली, हरीश डागा व दिल्ली से आए गुरुभक्त प्रेमजी मंगला द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथि सत्कार समिति के वरिष्ठ सदस्य विमल गोलछा द्वारा किया गया।
अक्षय निधि, समवशरण, विजय कसाय तप
के एकासने का आज इन्होंने लिया लाभ
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि आज दिव्य सत्संग में अक्षय निधि, समवशरण, कसाय विजय तप के एकासने के लाभार्थी- भागचंद मुणोत परिवार, जयवंत राज पारख परिवार, जेठमल कोटड़िया परिवार, हीरचंद चोपड़ा परिवार, कैलाश पारख परिवार, हरीश कोचर परिवार का बहुमान किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में पिछले सोमवार से प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है।
आज के प्रवचन का विषय 'पर्युषण: मिटाए भीतर का प्रदूषण'
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि बुधवार 24 अगस्त से प्रारंभ हो रहे पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आराधना के प्रसंग पर प्रात: ठीक 8.40 बजे से 'पर्युषण: मिटाए भीतर का प्रदूषण' विषय पर विशेष प्रवचन होगा। पर्युषण पर्व के दौरान श्रद्धालुओं को कल्पसूत्र व अंतकृत सूत्र की शिक्षाएं पर प्रवचन श्रवण का पुण्यलाभ प्राप्त होगा। महिलाओं का पौषध आराधना हॉल सदरबाजार में और पुरुषों का पौषध व्रत दादाबाड़ी में होगा। पर्युषण पर्व पर सामायिक का लाभ लेने श्रद्धालुओं से आसन व मुपत्ति साथ लाने का आग्रह किया गया है। पर्व आराधकों, व्रतियों के लिए पर्युषण पर्व पर सदर पाटा ग्रुप नं-1 द्वारा चौविहार हाउस का आयोजन 24 से 31 अगस्त तक शाम 4.30 से सूर्यास्त तक सदर बाजार स्थित जैन मंदिर के पीछे महावीर भवन में किया जा रहा है। वहीं आंगी समिति सदरबाजार द्वारा प्रभु परमात्मा की प्रतिमाओं के आठ दिवसीय आंगी सजाओ प्रतियोेगिता का आयोजन भी सदर जैन मंदिर में किया जाएगा, जिसके लिए हरीश डागा व मांगीलाल गोलछा से संपर्क किया जा सकता है।