रायपुर। खम्हारडीह निवासी 30 वर्षीय राधेश्याम (परिवर्तित नाम) चकित रह गए जब टीबी चैंपियन लिशा उनके घर इस रोग की जागरूकता सर्वे करने आई। घरवालों से टीबी के लक्षणों के बारे में जानकारी देते हुए राधेश्याम ने उसको बताया की वह खुद भी इस रोग से ग्रसित हैं और प्राइवेट अस्पताल में उपचार करवा रहे है। इस पर लिशा ने उनको जानकारी दी कि टीबी का उपचार सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में निशुल्क होता है। कोई भी संभावित रोगी, या कोई लक्षण दिखने पर स्वास्थ्य केंद्र में जाकर इसकी जांच करवानी चाहिए। जांच भी निशुल्क होती है।
राधेश्याम दो माह पूर्व एक दिन क्रिकेट खेल कर जब घर लौटे तो अचानक उनके पेट में बहुत तेज दर्द होने लगा । परिवार वालों ने पास के ही प्राइवेट डॉक्टर को दिखाया और डॉक्टर ने दवाइयां दी जिससे उस समय तो पेट का दर्द ठीक हो गया लेकिन दर्द का सिलसिला रुका नहीं । उनके इलाज में लगभग 5,000 रुपये भी खर्च हुए। इसके बाद वह दूसरे प्राइवेट डॉक्टर के पास भी गए जिन्होंने तमाम जांच करवाई जिसमें लगभग 10,000 रुपये खर्च हुए लेकिन बीमारी क्या है यह समझ नहीं आया। उसके बाद उन्होंने एक बड़े प्राइवेट अस्पताल भेजा गया ।
``वहाँ मेरा कुछ दिन इलाज किया गया और उसके बाद बताया गया कि मुझे आंतों का टीबी है। इस बीच लगभग 60,000 से 70,000 रुपये मेरे उपचार पर खर्च हो गए थे। मेरी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन जानकारी के अभाव में प्राइवेट में इलाज चल रहा था,'' राधेश्याम कहते है ।
जब टीबी चैंपियन राधेश्याम के क्षेत्र में टीबी रोग की जागरूकता के सर्वे के लिए आयीं तो उन्होंने बताया टीबी से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उपचार करने पर यह ठीक होता है । टीबी का इलाज शासकीय अस्पतालों में निशुल्क किया जाता है। लिशा ने बताया वह भी टीबी से ग्रसित थी और 6 माह नियमित रूप से उनका इलाज चला और आज वह टीबी रोग से मुक्त है । अब वह टीबी से ग्रसित लोगों के लिए टीबी चैंपियन बनकर काम कर रही हैं। लिशा ने राधेश्याम को टीबी के लिए चल रही शासन की अक्षय योजना की सुविधाओं से भी जुड़वाया है।
टीबी चैंपियन लिशा बताती है: "जब राधेश्याम (परिवर्तित नाम) से चर्चा हुई उन्होंने बताया इनको भी टीबी है और वह एक प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे है । हमने इनको जिला अस्पताल से जुड़वाया और इनका नियमित इलाज शुरू हो गया है । नियमित फॉलोअप भी किया जा रहा है । टीबी का रोग सामान्य रोग की तरह है और इसका इलाज सुनिश्चित रूप से किया जाना चाहिए । डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों को नियमित सेवन करने से टीबी से मुक्ति पाई जा सकती है ।''
इस बारे में जिला क्षय रोग नोडल अधिकारी डॉ.अविनाश चतुर्वेदी ने बताया: "आंतों की टीबी पाचन तंत्र के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। अधिकांश यह छोटी और बड़ी आंत को प्रभावित करता है। आंतों की टीबी (Intestinal Tuberculosis) हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकती है लेकिन उचित खान-पान न करने से इसकी आशंका युवा और मध्यम आयु के लोगों में अधिक अधिक रहती है । मधुमेह और एचआईवी पॉजिटिव रोगियों में भी इसके संक्रमण का खतरा अधिक रहता है ।''
खाना खाते ही उल्टी आना और पेट के निचले हिस्से में दर्द होना आंतों की टीबी के लक्षण हो सकते हैं । पहचान होने के बाद इसका इलाज शुरू किया जाता है जो 6 महीने से एक वर्ष तक चलता है। इलाज में सरकार 500 रुपये प्रति माह रोगी के खाते में डालती है जिससे वह पौष्टिक भोजन कर सके और उसका इलाज आसानी से हो जाता है। इलाज में देरी से आंतें बुरी तरह खराब हो जाती है जो जानलेवा भी हो जाती है । किसी प्रकार की टीबी का इलाज शासकीय स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ़्त किया जाता है, डॉ.चतुर्वेदी का कहना है।
छोटी और बड़ी आंत में टीबी के लक्षण
हल्का बुखार रहना, बिना कारण वजन कम होना, खानपान की आदतों में बदलाव आना, भूख कम लगना, लगातार पेट में हल्का दर्द और ऐंठन बनी रहना, उल्टी-दस्तों और पेट में सूजन आना।