रायगढ़। 10 अक्टूबर को हर साल दुनियाभर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है ताकि दुनियाभर में लोग सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को भी गंभीरता से लें और उसके प्रति सजग और सतर्क रहें। अगर किसी व्यक्ति को किसी तरह की मानसिक दिक्कत होती है तो उसे नजरअंदाज करने की बजाए उसके बारे में बात की जाए और मानसिक स्वास्थ्य को भी उतनी ही अहमियत दी जाए जितनी अन्य शारीरिक स्वास्थ्य को दी जाती है।
इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम वैश्विक प्राथमिकता बनाएं है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मधुलिका सिंह ठाकुर ने बताया: "अपने दैनिक गतिविधियों में से कुछ समय निकालकर खुद के लिये समय दें,योगाभ्यास करें, खानपान में सुधार करें और पर्याप्त नींद लें। मानसिक अस्वस्थता की स्थिति हो तो घबराएं नही, जिला अस्पताल में स्पर्श क्लीनिक के माध्यम से मानसिक रोगियों को निःशुल्क परामर्श व उपचार दिया जाता है। इसके अलावा राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम लाइफलाइन नंबर (1-800-273-8255) में कॉल कर अपनी समस्या बता सकते हैंI"
11 साल का राघव (बदला हुआ नाम) कुछ दिन पहले मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग में आया था। उसके पालकों ने बताया, "वह अचानक से बड़बड़ाने लगता है और किसी ने उसे टोका तो वह उसे मारने लगता हैं न छोटा देखता है न बड़ा सीधा हांथ छोड़ देता है। शुरूआत में बैगा के पास ले जाने फिर एक और झाड़ फूंक वाले के पास जाने से स्थिति और बिगड़ गई। राघव का अब मेडिकल कॉलेज में इलाज जारी है, उसकी हालत ठीक है और व्यवहार एकदम सामान्य है।"
12 साल की अदिति (बदला हुआ नाम) मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग से अपना इलाज करा रही। उसके पालक शुरू में डरे कि आसपास के लोगों को क्या बीमारी है कैसे बताएंगे कहीं उनकी बेटी को कोई भला बुरा न कह दें। डॉक्टरों ने उन्हें बीमारी के बारे में समझाया और किसी की परवाह नहीं करने की सलाह दी। आज अदिति अचानक से किसी पर चीखती भी नहीं है और न ही मारती है। वह सामान्य बच्चों के जैसे स्कूल जा रही और अपनी जिंदगी जी रही।
मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल रायगढ़ के मनोचिकित्सक डॉ. राजेश अजगल्ले के अनुसार: "बच्चे बड़े हों या छोटे सबकी स्क्रीन टाइमिंग बढ़ी है। बच्चों को अब आसानी से मोबाईल फोन मिल जा रहा है। बच्चों में मोबाइल की लत लग गई है वह ऑनलाइन गेम और वीडियो स्ट्रीमिंग में उलझ कर रह गये है। इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां अब छोटे बच्चों में अधिक होने लगी है। बच्चों के मूड बदल रहे हैं और वह कुछ उटपटांग हरकत कर देते हैं। मन के विकार वाले बच्चे बड़ों से मारपीट भी करते हैं। पिछड़े क्षेत्र रायगढ़ में लोग अभी भी बैगा और ओझा के पास जा रहे हैं जोकि गलत है जबकि यह मानसिक विकार है और इसका जल्द से जल्द इलाज शुरू किए जाने की जरूरत है। लोगों में मानसिक रोग के प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है।"
तनाव में हैं बच्चे इनकी निगरानी जरूरी
मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ें बताते हैं कि 12-15 आयु वर्ग के बच्चों में वैश्विक स्तर पर 8 करोड़ बच्चे किसी न किसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं। पहले यह धारणा थी कि बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य की बीमारी नहीं होती पर अब यह स्वरुप बदल रहा है। काफी दिनों से स्कूल बंद रहने के कारण बच्चों की जिंदगी में ठहराव सा आ गया है। कोविड से पहले बच्चे जिस तरह से जी रहे थे और कोविड के बाद जिस तरह से वह जीये हैं उस दरमियान बहुत बदलाव आया है। ऐसे में जो बच्चे संवदेनशील होते हैं और उन्हें मित्रों की जरूरत होती है वो भावनात्मक रूप से और कमजोर हो गए हैं। बच्चों में चिढ़चिढ़ापन और मानसिक तनाव उत्पन्न हो रहा है वह बेहद तनाव में है। जिसे दूर करने की जरुरत है।
डिजिटल युग में संवाद करना जरूरी
मानसिक स्वास्थ्य काउंसलर व नर्सिंग अधिकारी अतीत राव लगातार वर्कशाप लेते रहते हैं और लोगों को तनाव मुक्त जीवन अपनाने के लिए कई युक्तियां बताते हैं। उन्होंने कहा: " डिजिटल युग में हर हाथ में सेलफोन है और एक-एक कोने में सब बैठे हैं। आपस में बातचीत जरूरत के लिए ही हो गई है। संवादहीनता के कारण लोग एकतरफा ही सोचते हैं। यही एकाकीपन है और इसमें ही थोड़ी सी बात का बुरा मानकर लोग बड़े कदम उठा लेते हैं ऐसे में संवाद करना बेहद जरूरी है। कैदियों में निराशा के भाव अधिक होते हैं और यही निराशा कई बार आत्महत्या के कारणों में बदल जाती है। ऐसे लोग जो अचानक अलग-थलग और थोड़ा विचित्र व्यवहार करे उसकी पहचान करने के लिए हमने लोगों को गेट कीपर बनाया है जो समय रहते मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति की मदद कर सके। "