किसान विरोधी काले कानूनों को निरस्त करने की मांग...कांग्रेस ने राज्यपाल को केंद्र सरकार के विरुद्ध राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन

जसेरि रिपोर्टर । रायपुर। कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल अनुसुईया उइके से मुलाकात कर केंद्र सरकार के विरुद्ध राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। और मोदी सरकार के तीन काले कानूनों को निरस्त करने की मांग की। इस दौरान पीसीसी चीफ मोहन मरकाम, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, विधायक समेत कई कांग्रेस नेता मौजूद थे. देश के किसान-खेत-मजदूर-मंडी के आड़ती-मंडी मजदूर-मुनीम-कर्मचारी-ट्रांसपोर्टर व लाखों करोड़ों लोगों के ऐतराजात इस प्रकार हैं- मोदी सरकार ने देश के किसान, खेत और खलिहान के खिलाफ एक घिनौना शडयंत्र किया है। केंद्रीय भाजपा सरकार तीन काले कानूनों के माध्यम से देश की हरित क्रांति को हराने की साजिश कर रही है। देश के अन्नदाता व भाग्य-विधाता किसान तथा खेत मजदूर की मेहनत को चंद पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखने का शडयंत्र किया जा रहा है। आज देश भर में 62 करोड़ किसान-मजदूर व 250 से अधिक किसान संगठन इन काले कानूनों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, पर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार सब ऐतराज दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं। अन्नदाता किसान की बात सुनना तो दूर, संसद में उनके नुमाईंदो की आवाज को दबाया जा रहा है और सड़कों पर किसान मजदूरों को लाठियों से पिटवाया जा रहा है।
संघीय ढांचे का उल्लंघन कर, संविधान को रौंदकर, संसदीय प्रणाली को दरकिनार कर तथा बहुमत के आधार पर बाहुबली मोदी सरकार ने संसद के अंदर तीन काले कानूनों को जबरन तथा बगैर किसी चर्चा व राय मशवरे के पारित कर लिया है। यहां तक कि राज्यसभा में हर संसदीय प्रणाली व प्रजातंत्र को तार-तार कर ये काले कानून पारित किए गए। कांग्रेस पार्टी सहित कई राजनैतिक दलों ने मतविभाजन की मांग की, जो हमारा संवैधानिक अधिकार है। 62 करोड़ लोगों की जिंदगी से जुड़े काले कानूनों को संसद के परिसर के अंदर सिक्योरिटी गार्ड लगाकर, सांसदों के साथ धक्का-मुक्की कर बगैर किसी मतविभाजन के पारित कर लिया गया।
अनाज मंडी-सब्जी मंडी को खत्म करने से कृषि उपज खरीद व्यवस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेग और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा शासित बिहार है। साल 2006 में ।च्डब् ।ब्ज् यानि अनाज मंडियों को खत्म कर दिया गया। आज बिहार के किसान की हालत बद से बदतर है। किसान की फसल को दलाल औने-पौने दामों पर खरीदकर दूसरे प्रांतों की मंडियों में मुनाफा कमा डैच् पर बेच देते हैं। अगर पूरे देश की कृषि उपज मंडी व्यवस्था ही खत्म हो गई, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान किसान-खेत मजदूर को होगा और सबसे बड़ा फायदा मु_ीभर पूंजीपतियों को। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य आखिर मिलेगा कैसे ? स्वाभाविक तौर से इसका नुकसान किसान को होगा। पाँचवां, अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत मार्केट फीस व ग्रामाण विकास फंड के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते हैं।
उदाहरण के तौर पर पंजाब ने इस गेहूँ सीजन में 127-45 लाख टन गेहूँ खरीदा। पंजाब को 736 करोड़ रु. मार्केट फीस व इतना ही पैसा ग्रामीण विकास फंड में मिला। आड़़तियों को 613 करोड़ रु. कमीशन मिला। इन सबका भुगतान किसान ने नहीं, बल्कि मंडियों से गेहूँ खरीद करने वाली भारत सरकार की एफसीआई आदि सरकारी एजेंसियों तथा प्राईवेट व्यक्तियों ने किया। मंडी व्यवस्था खत्म होते ही आय का यह स्रोत अपने आप खत्म हो जाएगा।
मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा
मोदी सरकार का दावा कि अब किसान अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकता है, पूरी तरह से सफेद झूठ है। आज भी किसान अपनी फसल किसी भी प्रांत में ले जाकर बेच सकता है। परंतु वास्तविक सत्य क्या है ? कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86 प्रतिशत किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है। जमीन की औसत मल्कियत 2 एकड़ या उससे कम है। ऐसे में 86 प्रतिशत किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोट कर न ले जा सकता या बेच सकता है। मंडी प्रणाली नष्ट होते ही सीधा प्रहार स्वाभाविक तौर से किसान पर होगा। मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आड़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी। चौथा, किसान को खेत के नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी में उचित दाम किसान के सामूहिक संगठन तथा मंडी में खरीददारों के आपस के कॉम्पटिशन के आधार पर मिलता है। मंडी में पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य किसान की फसल के मूल्य निर्धारण का बेंचमार्क है। यही एक उपाय है, जिससे किसान की उपज की सामूहिक तौर से प्राईस डिस्कवरी यानि मूल्य निर्धारण हो पाता है। अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत, सही वजन व सही बिक्री की गरंटी है।