बिहार

जागृत करना होगा वेदांत की भूमि रही बिहार की सुसुप्त चेतना को : विकास वैभव

Shantanu Roy
5 Oct 2022 6:11 PM GMT
जागृत करना होगा वेदांत की भूमि रही बिहार की सुसुप्त चेतना को : विकास वैभव
x
बड़ी खबर
बेगूसराय। बिहार के गौरवशाली अतीत को पुनर्स्थापित करने का अभियान लेट्स इंस्पायर बिहार शुरू करने वाले गृह विभाग के विशेष सचिव विकास वैभव ने सुसुप्त चेतना को जागृत करने के लिए आगे आने की अपील किया है। बेगूसराय के लाल विकास वैभव ने मंगलवार को कहा है कि कोरोना के प्रभाव में कमी आने के कारण दो वर्षों के बाद इस वर्ष महापर्व का अवसर अपने पूर्ववर्ती उल्लासमय स्वरूप में पुनर्स्थापित है। विकास वैभव ने कहा है कि परिवर्तन ऋत है, अत्यंत स्पष्ट है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल प्रतीत होती हों, उनमें भी परिवर्तन निश्चित ही निर्धारित है। हम जिस यात्रा में साथ जुड़े हैं, उसका ध्येय बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य का निर्माण है। एक ऐसे बिहार का स्वप्न, जिसमें शिक्षा अथवा रोजगार के लिए किसी को बाहर नहीं जाना पड़े। एक ऐसे बिहार का स्वप्न जो अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अनुसार पुनः संपूर्ण भारतवर्ष का मार्गदर्शन करे तथा भारत के उज्ज्वलतम भविष्य निर्माण में अपना योगदान कर सके। इस स्वप्न का आधार भी स्पष्ट है, हम उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशज हैं जिनके द्वारा उस संसाधन विहीन अवस्था में जब आज की भांति मार्ग नहीं थे, ना विकसित सूचना तंत्र और ना उन्नत प्रौद्योगिकी थी, बृहत दृष्टिकोण के साथ व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़कर राष्ट्र निर्माण की सक्षमता थी और हम अखंड भारत के उस साम्राज्य का नेतृत्व कर रहे थे जिसकी सीमाएं पश्चिम में उपगणस्थान (अफगानिस्तान) के पार तक थी। वर्तमान पूर्वोत्तर के पार तक थी, हिमालय के उत्तर तक थी और दक्षिण में सागर तक तो थी ही।
वेदांत की भूमि में हमारे पूर्वज कैम्ब्रिज और आक्सफोर्ड की कल्पना के सैकड़ों वर्ष पूर्व ही नालंदा तथा विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय स्थापित कर चुके थे। समय के साथ यदि हमारा अपेक्षाकृत विकास नहीं हुआ और हम पतनोन्मुख हुए तो उसका कारण केवल और केवल संकुचित दृष्टिकोण और जातिवाद, संप्रदायवाद आदि लघुवादों से ग्रसित होना ही रहा है। जातियां तब भी थी, लेकिन जातिवाद आज की भांति हावी नहीं था। अन्यथा मगध में कभी नंद वंश का उदय नहीं होता और ना ही आचार्य चाणक्य ने केवल सामर्थ्य के ही आधार पर युवा चंद्रगुप्त को शासन के लिए योग्य मानकर चुना होता। यदि हम राष्ट्र का भविष्य उज्जवल देखना चाहते हैं तो हमें वेदांत की भूमि रही बिहार की सुसुप्त चेतना को जागृत करना होगा और जातिवाद, संप्रदायवाद आदि लघुवादों से उपर उठकर अपने ही पूर्वजों की दृष्टि के धारण के साथ शिक्षा, समता और उद्यमिता के तीन मूल मंत्रों को ग्रहण कर आंशिक ही सही, लेकिन कुछ सकारात्मक निस्वार्थ योगदान समर्पित करना होगा। प्रसन्नता की बात है कि बिहार के उज्ज्वलतम भविष्य के लिए संकल्पित इस अभियान में अब तक 45 हजार से अधिक सहयात्री समूहों के माध्यम से साथ जुड़ चुके हैं। 28 जिलों में युवाओं के साथ प्रथम भौतिक संवाद भी स्थापित हो चुका है, जिसने मुझे अत्यंत आशाविंत कर दिया। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अभी तो हमने उस यज्ञ का प्रारंभ मात्र ही किया है जो दावानल का स्वरूप तब ही ग्रहण कर सकेगा जब अभियान के संदेश को हर बिहारवासी तक पहुंचाने में हम सफल होंगे।
Next Story