बिहार

ज्ञान और वैराग्य के प्रतिमूर्ति थे स्वामी नित्यानंद: स्वामी शांतानंद

Shantanu Roy
16 Sep 2022 6:23 PM GMT
ज्ञान और वैराग्य के प्रतिमूर्ति थे स्वामी नित्यानंद: स्वामी शांतानंद
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नवादा। २०वीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के प्रिय शिष्य व महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम धनावां के संस्थापक ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी नित्यानंद जी महाराज संतमत के सच्चे तपस्वी ज्ञान -वैराग्य व मानवता के हितैषी थे।वे जीवन भर संतों के ज्ञान व उपदेश को जन जन तक पहुंचाने के लिए कार्य व उपदेश दिया। उक्त बातें स्वामी शांतानंद जी महाराज ने स्वामी नित्यानंद जी महाराज की १३वीं परिनिर्वाण दिवस समारोह में कहा। प्रकृति की गोद में अवस्थित पूज्यपाद स्वामी नित्यानंद जी महाराज की साधना स्थली महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम धनावां में उनके १३वीं पुण्यतिथि समारोह का आयोजन आश्रम संचालक स्वामी शांतानंद जी महाराज के सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत व्रह्ममूहुर्त ३बजे ध्यानाभ्यास से हुआ। प्रातः कालीन सत्संग ६ बजे तथा ८ बजे परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस तथा स्वामी नित्यानंद जी महाराज की आदमकद तस्वीर पर स्वामी शांतानंद जी महाराज ने सबसे पहले पुष्पांजलि अर्पित किया।
अपराह्न कालीन सत्संग २बजे से प्रभाकर बाबा ने प्रारंभ किया।तद्पश्चात स्वामी नित्यानंद जी महाराज के जीवन चरित्र व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए स्वामी शांतानंद जी महाराज ने कहा कि स्वामी नित्यानंद जी महाराज का जन्म झारखंड के गोड्डा जिला के मेहरामा प्रखंड सुरनी नामक गांव में पिता शिवनंदन प्रसाद लाल व माता जानकी देवी के कनिष्ठ पुत्र के रूप में ८जनवरी १९५८ को हुआ था। स्वामी नित्यानंद जी महाराज त्याग और वैराग्य के सच्चे महामान थे। उनकी स्कूली शिक्षा कम होने के बावजूद उनकी भाषा की पकड़ बहुत अच्छी थी।वे पूज्य स्वामी श्रीधर दास जी महाराज से पूछ पूछ कर महर्षि मेंहीं पदावली भावार्थ पद्यार्थ सहित साहित्य की रचना की। स्वामी जी का उपदेश सरल मधुर और अनुभवगम्य व लोकोपकारी होता था।वे मानव में व्याप्त असहिष्णुता,राग-द्वैष , ईर्ष्या कपट,घृणा,हिंसा, व्यभिचार,आडंबर,कुरीति अनाचार,के विरुद्ध मानवता में मानवता,सहजता,प्रेम, त्याग बलिदान, भक्ति वैराग्य से संचित विश्व बंधुत्व की भावना का वीजारोपन करने का था।उनका संपूर्ण जीवन सदाचार संयम, गुरु भक्ति मानव सेवा,अहिंसा सत्यता, ईश्वर चिंतन पर आधारित था।इस अवसर पर दोपहर में विशाल भंडारे का आयोजन किया गया।
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