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बिहार | सरकारी कार्य योजनाओं की हकीकत देखनी हो तो प्रखंड के चंदा गांव आइये. यहां लाखों की राशि खर्च दिखा कार्य अधूरा छोड़ दिया गया है. जबकि, कागज पर योजना मुकम्मल दिखा दिया गया है. यह हाल प्रखंड के इकलौते पोखरा का है. जिसका जल जीवन हरियाली के तहत जीर्णोद्धार का दावा किया जाता है. लेकिन, वास्तविकता विपरित है. आलम यह है कि पोखरा के समीप लाखों रुपये खर्च करने का प्राकल्लन बोर्ड भी लगा है.
जो अधिकारी और संवेदक की लूटखसोट की प्रक्रिया का मूक गवाह बना हुआ है. पोखरा का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण कागज पर तो दिखा दिया गया है. लेकिन, हकीकत में पोखरा की स्थिति बदहाल है. जिससे ग्रामीण सरकारी कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं. प्रखंड के चंदा गांव के ग्रामीणों का कहना है कि महीने में एकाध बार कोई अधिकारी आते हैं, और पोखरा को देख चले जाते हैं. इसके जीर्णोद्धार में हुई गड़बड़ी पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. जबकि, गांव के लोग इसी पोखरा के किनारे छठ पर्व करते हैं. साथ ही, अन्य जरूरी कार्यो को भी निपटाते हैं. इस पोखरा के जीर्णोद्धार के लिए जल संसाधन विभाग की ओर से राशि का आवंटन कर दिया गया है. जिसके बाद नल जल योजना के तहत कार्य को लेकर प्राकल्लन बोर्ड भी लगा है. जिसके निर्माण में 19 लाख 63 हजार 654 रुपये दर्शाया गया है. जबकि, कार्य 26 अक्टूबर 2019 को ही पूरा करना था. लेकिन, तीन-चार वर्षो बाद भी कार्य अधूरा है. अपने समाधान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री भी यहां आए थे. लेकिन, पोखरा के हालत की ओर किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया.
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Harrison
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