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बिहार | राज्य के शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय के स्तर से लगातार इन दिनों महाविद्यालय के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिये जाने के लिए कई ठोस पहल किये जा रहे है. यहीं कारण है कि जहां पहले नाम मात्र की पढ़ाई होती थी, वहां आज निजी विद्यालयों की तरह पठन-पाठन का कार्य चल रहा है.
हालांकि जिले के कॉलेजों में अभी भी बहुत सारे सुधार की जरूरत महसूस होती है. इन दिनों महाविद्यालयों की जांच के लिए वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय द्वारा निरीक्षण टीम का गठन किया गया है. जिसमें विश्वविद्यालय के सभी प्रशासनिक अधिकारी, संकायों की टीम को रखा गया है. उच्च शिक्षा विभाग के आदेश के आलोक में इस टीम का गठन किया गया था. शुरूआती दौर में इस टीम ने विभिन्न कॉलेजों का जांच भी किया था. लेकिन बाद में अलग-अलग सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित होने से वर्तमान में निरीक्षण का कार्य स्थगित है. इसके अलावा प्रतिदिन शिक्षक, कर्मी व बच्चों की उपस्थिति की समीक्षा भी हो रही है.
छात्रों के अनुपात में जिले के कॉलेजों में कम सीटें इन दिनों विश्वविद्यालय अधिकारी कॉलेजों का औचक निरीक्षण तो करने आते है. लेकिन जिले की कॉलेजों की क्या आवश्यकताएं है, उसपर ध्यान नहीं देते है. विडंबना यह है कि जिले में साल दर साल पीजी स्तर तक पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है. लेकिन इसके अनुपात में ना तो कॉलेजों को बढ़ाया जा रहा है और ना ही पहले से मौजूद कॉलेजों में नामांकन सीटों की संख्या ही बढ़ाई जा रही है. ऐसे में जिले के छात्र-छात्राओं को आरा व अन्य दूर-दराज जगहों के कॉलेजों में नामांकन कराना पड़ रहा है. इससे उन्हें प्रतिदिन ट्रेन या अन्य साधनों से आवागमन करना पड़ता है. खास करके छात्राओं को रोज-रोज ट्रेन की भीड़ का सामना करते हुए कॉलेज पहुंचना पड़ता है और पूरे दिन थकान के बाद फिर से अगले दिन वहीं रूटीन जारी रखनी पड़ती है. कुछ इस तरह की दशा उन छात्रों का भी जो अपने पसंद के विषय में स्नाकोत्तर में प्रवेश तो लेना चाहते है मगर उस विषय की पढ़ाई जिले के कॉलेजों में होती ही नहीं है. ऐसे में वे या तो आगे पढ़ाई जारी नहीं रख पाते या फिर विश्वविद्यालय में नामांकन कराकर प्रतिदिन की परेशानी झेलते है.
आरा के कॉलेजों में कराना पड़ता है नामांकन स्नाकोत्तर की छात्रा पूनम कुमारी, रूबी गुप्ता, राहुल यादव व मिथिलेश पाण्डेय ने बातचीत में बताया कि फिलॉसफी, अंग्रेजी, कॉमर्स, समाजशास्त्रत्त्, भूगोल व अन्य विषयों की पढ़ाई के लिए आरा स्थित कॉलेजों में नामांकन कराना पड़ता है. वहीं दूसरी तरफ स्नाकोत्तर स्तर में ही इतिहास, राजनीतिक शास्त्रत्त्, मनोविज्ञान जैसे विषयों में यहां के कॉलेजों में सीटे कम होने से नामांकन नहीं हो पाती है. ईयर गैप ना हो इसके लिए आरा या दूरदराज के महाविद्यालयों में नामांकन कराना पड़ता है.
जिले के अधिकांश छात्राओं ने विश्वविद्यालय और शिक्षा विभाग के अधिकारी से जिले के कॉलेजों में इन विषयों की पढ़ाई कराने व नामांकन सीटे बढ़ाने की जोरशोर से मांग की है. इसके अलावा एमवी कॉलेज के शिक्षक भरत ने बताया कि उनके यहां एक शिक्षक पर करीब चार सौ बच्चों को प्रतिदिन पढ़ाने का दबाव रहता है. बच्चों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या बढ़ाने की बात कहीं है.
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Harrison
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