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बिहार | जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी होने के बाद बड़े राजनीतिक उलट-फेर की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सर्वे में आए आंकड़ों पर कई दलों ने प्रत्यक्ष तौर पर आपत्ति भले जताई है, लेकिन उनके मन में अपनी जाति-समुदाय के आंकड़े देख कर खुशी भी है। जिन लोगों ने आंकड़ों पर संदेह जताया है, उन्हें तेजस्वी यादव ने सलाह दे डाली है कि बीजेपी से कह कर दोबारा सर्वेक्षण करा लें। इसलिए कि आपत्ति जताने वालों में ज्यादातर एनडीए के ही नेता हैं। बहरहाल, बिहार के पूर्व सीएम और महागठबंधन छोड़ कर कुछ ही महीने पहले एनडीए का हिस्सा बने जीतन राम मांझी के बारे में एक चौंकाने वाली खबर आई है। अगर नीतीश कुमार का प्लान ‘जे’ यानी जीतन राम मांझी के बारे में सही सूचनाएं हैं तो मांझी फिर पाला बदल कर महागठबंधन का हिस्सा बन जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।जीतन राम मांझी अगर एनडीए छोड़ते हैं तो यह पहली बार नहीं होगा, जब उन्होंने पाला बदल किया हो। अब तक अलग-अलग दलों-गठबंधनों में वे आठ बार आवाजाही कर चुके हैं। नीतीश कुमार ने कुछ महीनों के लिए मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था। बाद में उन्हें कुर्सी से बेदखल कर दिया। मांझी इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपनी पार्टी हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) बना ली।
नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता के रूप में 2015 में बिहार के सीएम बने, लेकिन 2017 में एनडीए के साथ चले गए। जीतन राम मांझी ने महागठबंधन के साथ अपनी राजनीति का अगला अध्याय शुरू किया, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में उनका मन बदला और महागठबंधन छोड़ एनडीए के साथ आ गए।नीतीश कुमार ने जेडीयू कोटे से मांझी को चार विधानसभा सीटें दीं। सब पर उनके उम्मीदवार जीत भी गए। बेटे संतोष सुमन नीतीश कैबिनेट में मंत्री भी बने। नीतीश ने जब 2022 में एनडीए छोड़ा तो मांझी को यह पसंद नहीं आया। उनका मन एनडीए में ही रहने का था। आखिरकार उन्होंने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ा और उनके बेटे ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। फिलहाल जीतन राम मांझी एनडीए में हैं।जाति गणना की रिपोर्ट में मांझी की बिरादरी की आबादी तीन प्रतिशत बताई गई है। इससे मांझी का उत्साह बढ़ा है। वे तो यह भी सपना देखने लगे हैं कि बिहार की दलित-महादलित आबादी अगर एक हो जाए तो बड़ी आबादी के वे नेता बन सकते हैं। बिहार में दलित-महादलित आबादी करीब 20 प्रतिशत है। इन जातियों के नेताओं में अभी जीतन राम मांझी, चिराग पासवान, पशुपति पारस और जनक राम की गिनती होती है। संयोग से ये सभी अभी एनडीए के साथ हैं। अगर तीनों एक हो जाएं तो बिहार की राजनीति की दिशा बदल सकती है। भाजपा को इनकी जाति के वोटों पर भरोसा है। भाजपा का मनना है कि दलितों-महादलितों की 20 प्रतिशत आबादी और सवर्णों की 14 प्रतिशत आबादी ने साथ दे दिया तो उसकी वैतरणी पार होने में कोई मुश्किल नहीं होगी।
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Harrison
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