बिहार

ओद्रा काली मंदिर में वर्ष 1967 से होते आ रही है मॉकाली की पूजा

Shantanu Roy
25 Oct 2022 5:55 PM GMT
ओद्रा काली मंदिर में वर्ष 1967 से होते आ रही है मॉकाली की पूजा
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किशनगंज। जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर बेलवा स्थित ओद्रा काली मंदिर आस्था का केन्द्र है। भक्तों की मनोकामना भी पूरी होती है। यहां भक्तों की अटूट आस्था मंदिर से जुड़े होने के कई प्रमाण मिले हैं। मंदिर में वर्ष 1967 से पूजा शुरू होने की बात कही जा रही है। मंदिर कमिटी की लोगो की माने तो ने उस समय डोक नदी पर लकड़ी का पुल हुआ करता था। किन्ही कारणों से पुल क्षतिग्रस्त हो गया था। तब पूर्णिया व किशनगंज के लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए बेलवा पहुंचकर गाड़ी को बदलना पड़ता था। पुल क्षतिग्रस्त होने के कारण इस पार की गाड़िया इसी पार व उस पार की उसी पार रहती थी। इस दौरान गाड़ी के चालक को कभी कभार बेलवा पुल के इस पार ही रात गुजारनी पड़ती थी। तभी भागलपुर के रहने वाले सरकारी ठाकुर को स्वप्न में आया और स्वप्न में ही उन्हें ओद्रा में काली मंदिर स्थापित करने का अहसास हुआ। इसके बाद सरकारी ठाकुर ओद्रा पहुंचे और वही पर मां काली की पूजा शुरू की। इसके बाद से वहां मां काली की पूजा होने लगी।
धीरे धीरे समाज के लोगों के सहयोग से मंदिर का निर्माण करवाया गया। सबसे पहले मां काली का मंदिर बना। मंदिर में मां काली की स्थायी प्रतिमा है। मंदिर के ठीक बगल में भैरव नाथ व बजरंगबली का मंदिर है। थोड़ी दूरी पर भगवान शिव व राम सीता का मंदिर है। मंदिर डोक नदी के किनारे है। मंदिर डोक नदी के किनारे बसे होने के कारण यह किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं लगता है। इतना ही नहीं इस मंदिर के किनारे हरे भरे पेड़ इसकी सुंदरता को और निखारती है। यहाँ काली पूजा के दिन मेला लगाया जाता है। मेला यहां की विशेषता है। मेला एक माह तक चलता है। जिसमे तरह तरह के खिलौने आदि मिलते हैं। ऐसे तो यहां सालो भर भक्त मंदिर में माथा टेकने आते हैं। काली पूजा में विशेष भीड़ जुटती है। मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की यहां किशनगंज के अलावे बंगाल व नेपाल सहित दूर दराज के इलाके से लोग दर्शन के लिए आते हैं और मां के दरबार में हाजरी लगाते हैं और जिनकी मनोकामना पूरी होती है वे अपने मन्नत के अनुसार प्रसाद एवं अन्य सामग्री चढ़ाते हैं।
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