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मुजफ्फरपुर, (आईएएनएस)| बिहार के आम किसान इन दिनों अचानक आम के पेड़ों के सूखने वाली बीमारी से परेशान हैं। इसमें बाग के आम के पेड़ एक-एक कर सूखते जाते हैं। इस बीमारी में बाग के सभी पेड़ एक साथ नहीं सूख रहे हैं।
बिहार के दरभंगा को आम की राजधानी कहते हैं। आम की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात मिलकर भारत के आम उत्पादन का 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन करते हैं। बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार के अधिकांश आम के बाग 40 वर्ष से पुराने है, जिसमे तरह तरह की बीमारियां देखी जा रही है, जिससे आम उत्पादक किसान बहुत परेशान हैं।
आजकल आम उत्पादक किसान आम की एक नई समस्या से परेशान है, जिसमे बाग के आम के पेड़ एक एक करके सूखते जा रहे हैं। आम में खस्ता फफूंदी रोग बहुत बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है।
भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक और डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, पूसा के सह निदेशक अनुसंधान एस के सिंह बताते हैं कि इसके लिए वर्टिसिलियम, और लासीओडिप्लोडिया, सेराटोसिस्टिस नामक कवक आम में विल्ट रोग के लिए जिम्मेदार सबसे आम कवक जीन्स हैं। जिसकी वजह से संवहनी ऊतक के धुंधलापन, कैंकर और विल्टिंग जैसे रोग के लक्षणों की एक विस्तृत श्रृंखला देखी जा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में आम के मुरझाने की यह बीमारी पहले बहुत कम थी, लेकिन पिछले दशक के दौरान यह आम की एक प्रमुख बीमारी के तौर पर उभर रही है, जिसकी वजह से इस बीमारी के तरफ सबका ध्यान आकर्षित हो रहा है।
इस बीमारी की वजह से आम उद्योग को बहुत नुकसान हो रहा है।यह एक महत्वपूर्ण रोग है जो प्रारंभिक संक्रमण के दो महीने के अंदर ही आम के पौधों की अचानक मृत्यु का कारण बन रहा है। यह रोग पहली बार ब्राजील से 1937, 1940 के दौरान रिपोर्ट किया गया था।
उन्होंने कहा कि भारत में, आम का मुरझाना सेराटोसिस्टिस प्रजाति के कारण होता है। वर्ष 2018 में पहली बार यह रोग उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट किया गया था। वर्तमान में उत्तर प्रदेश एवं बिहार में आम की फसल के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक आम का मुरझाना बन गया है।
यह रोग बिहार में बहुत तेजी से अपना पैर पसार रहा है। यह रोग केवल बिहार में ही नहीं बल्कि देश के अन्य आम उत्पादक प्रदेशों में देखा जा रहा है।
उन्होंने बताया कि एक अध्ययन के अनुसार उकठा रोग देश के 15 से अधिक आम उत्पादक प्रदेशों में पाया जाता है। इस रोग का अधिकतम प्रकोप उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, झारखण्ड और तमिलनाडु इत्यादि प्रदेशों में अधिक देखा जा रहा है। अभी भी इस रोग पर कम अध्ययन हुआ है। जिन बागों में इस रोग का संक्रमण हुआ हो उस बाग के सभी पेड़ एक साथ नहीं मरते हैं, बल्कि प्रबंधन न करने की स्थिति में धीरे धीरे करके बाग के सभी पेड़ मार जाते हैं।
उन्होंने कहा कि बिहार में इस समय तकरीबन 20 प्रतिशत के आस पास आम के पेड़ में यह रोग देखा जा रहा है।
जिस तरह से एक के बाद एक पेड़ सूख रहे हैं ठीक उसी तरह से लीची के भी पेड़ सूख रहे हैं।
रोगजनक दोनों दिशाओं (एक्रोपेटल और बेसिपेटल) में व्यवस्थित रूप से बढ़ता है और अंतत: पूरे पेड़ को मार देता है। सेराटोसिस्टिस संक्रमित आम के पेड़ों का तना काला हो जाता है और पौधे के पूरी तरह से मुरझाने से पहले गंभीर गमोसिस हो जाता है।
विल्ट संक्रमित पेड़ों की पत्तियों में नेक्रोटिक लक्षण दिखाई देते हैं, इसके बाद पूरी पत्ती परिगलन, टहनियों का सूखना और पूरे पेड़ का मुरझा जाना इत्यादि लक्षण देखे जा सकते है अंतत: पेड़ों की मृत्यु हो जाती है।
संक्रमित पेड़ों की पत्तियां पेड़ के पूरी तरह से सूखने के बाद भी बहुत दिनों तक टहनियों से जुड़ी रहती हैं। संक्रमित पेड़ के संवहनी ऊतक लाल-भूरे से गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते हैं।
इस रोग से आक्रांत आम के पेड़ और उनके आस-पास के पेड़ों के जड़ क्षेत्र की मृदा में पेड़ की उम्र के अनुसार 50-150 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्लयूपी (रोको एम नामक फफूंदनाशक) का घोल 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल कर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भींगा दे। दस साल या दस से ऊपर के पेड़ की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगने के लिए 20 से 25 लीटर दवा के घोल की आवश्यकता पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि लगभग 15 दिन के बाद पुन: इसी घोल,पेड़ के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भींगा दे। इस प्रकार से इस बीमारी से आप अपने आम को सूखने से बचा सकते हैं।
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Rani Sahu
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