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बेतिया। सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता , डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड एवं डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया, डॉ महबुब उर रहमान एवं अल बयान के सम्पादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से स्वच्छता ,पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम ,पॉलिथीन ,सिंगल यूज प्लास्टिक के बर्तनों का बहिष्कार, विभिन्न सामाजिक बुराइयों एवं नफरत के खात्मे के संकल्प के साथ शांति एवं सामाजिक सद्भावना का त्योहार दशहरा का विजय दशमी आरंभ करने की अपील करते हुए कहा कि दशहरे का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भावार्थ है- व्यक्ति की दस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी को हरने वाला उत्सव। विजयादशमी का पर्व मनुष्य को उसकी इन दस बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। हर साल हम रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतलों का दहन करके अपने भीतर रमण करने वाले सत्य रूपी चैतन्य आत्मा को सहेजने का संकल्प लेते हैं। किंतु हर बार हमारे अंत:करण का एक कोना पारस्परिक-सद्भाव, सहिष्णुता और क्षमाशीलता से वंचित रह जाता है। फिर कोई न कोई बुराई हमारे भीतर दशानन की भांति नया आकार ले लेती है, और अंतर्मन में इन दशाननरूपी विषय-विकारों से संघर्ष शुरू हो जाता है। इसलिए दशहरा मनाने की परंपरा जारी है। हमारे मनीषियों व महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने रामराज्य की जो परिकल्पना की थी, उसका अंतिम लक्ष्य मनुष्य के अंदर के रावण को मारना है। किंतु हम भीतर के रावण का वध करने की बजाय बाहर के रावण का दहन करने के प्रति ज्यादा उत्सुक रहते हैं। असलियत में विजयादशमी एक ऐसे मर्यादित पौरुष का उत्सव है जो धर्मांधता व पाखंड का प्रतिरोध करे, जो निर्बल को संबल दे, जो त्याग व करुणा को जीवंत आधार प्रदान करे।
समाज के हर वर्ग, जाति और समुदाय को एकत्र करने व उससे सह-अस्तित्व स्थापित करने की बेजोड़ प्रेरणा भगवान राम से मिलती है। सत्ता के सुख का परित्याग व भ्रातृत्व जैसे भाव हर किसी को राम से सीखने चाहिए। राम का दृष्टिकोण व्यापक व सोच बहुआयामी है। हमारी संस्कृति बहुलवादी उत्सवधर्मिता की पोषक है। एकांगी दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति का आधारभूत तत्व कभी नहीं रहा। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल, डॉ शाहनवाज अली , डॉ अमित कुमार लोहिया, अमजद अली ,अजहर सिराज एवं अधिवक्ता मुकेश कुमार ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवीदूं चतुर्वेदी, पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने संयुक्त रूप से कहा कि राम अपने शत्रु रावण की विद्वता को स्वीकार करते हैं और रावण से धर्म व राजनीति के गुण सीखने के लिए लक्ष्मण को उसके पास भेजते हैं। विजयादशमी के मेले का आयोजन अर्थपूर्ण तभी है, जब हमारी बंधुत्व-भावना, समन्वयशीलता व हाशिये पर पड़े लोगों के प्रति हमारी हमदर्दी दिखावटी नहीं हो- यानी कथनी व करनी में भेद नहीं हो। असलियत में विजयादशमी का पर्व समाज के उस वर्ग के लोगों के साथ भी प्रेम के निर्वहन का मौका देता है, जो किन्हीं कारणों से आज भी समाज की मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाए हैं। प्रेम के निर्वाह का यह संदेश भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर समकालीन समाज को दिया था इस अवसर पर वक्ताओं ने नफरत एवं बुराइयों को समाप्त करने की आह्वान करते हुए कहा कि आपसी प्रेम, अहिंसा के माध्यम से ही विश्व में स्थाई शांति एवं खुशहाली आ सकती है।
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