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सहरसा। सुपौल नगर परिषद के वार्डो में लोकतंत्र पहुंचा हुआ है। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा का, या फिर नप का।झुंड के झुंड मतदान करते हैं। ताज्जुब नहीं कि कागजी रूप में यह सूबे का सबसे सुंदर व स्वच्छ शहर है लेकिन आज भी यहां समस्याओं की लंबी फेहरिस्त है। यह सोचकर मन प्रकम्पित हो जाता है कि नेताओं को कितना प्यार और सम्मान दिया है यहां के लोगों ने लेकिन नेताओं ने क्या दिया। सचमुच, अगर यहां के नेता वादों पर अमल करते तो आज लोगों की तकदीर अलग रहती। बता दें कि सुपौल नप सफाई मामले में कई बार पुरस्कृत हो चुकी है। लेकिन भयावह सच यह है कि यहां बुनियादी नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता का स्वरूप खटकता है।
अब तक जल निकासी की व्यवस्था नहीं हो पाई है। कचरा निस्तारण की व्यवस्था भी साल-दर-साल से भगवान भरोसे है। आज भी बड़ी संख्या में लोगों को आवागमन के लिए चचरी ही सहारा है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे। लेकिन कहते हैं ना कि वादे हैं वादों का क्या। एक बार फिर से बातों की खेती शुरू है। पुचकारने-दुलारने का खेल जारी है। हम कह सकते हैं कि यहां रहनुमाओं के साथ ही अधिकारी कटघरे में हैं। हकीकत यह है कि भ्रष्टाचार के गिरफ्त में पूरा सिस्टम है। ताज्जुब नहीं कि सबकुछ जानते हुए भी अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं। यहां सेटिंग-गेटिंग के आगे सबकुछ फेल है। कायदे से दोषी पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन कार्रवाई के बदले बचाने का तिकड़म होता है। बहरहाल, पहली बार राज्य चुनाव आयोग ने मुख्य व उप मुख्य पार्षद का चुनाव सीधे मतदाताओं के माध्यम से करने का फैसला लिया है। मतलब, आप डायरेक्ट मुख्य व उप मुख्य पार्षद को चुनेंगे। अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट डालिए। हम तो यही कहेंगे कि वोट करें वफादारी से, चयन करें समझदारी से।
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