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जमुई। देश में कागज पर गरीब-गुरबों, आदिवासी समुदाय आदि के लिए दर्जनों कल्याणकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं. इनमें से यदि आधे को भी जमीन पर उतार दिया जाए तो हाशिए पर जीवन व्यतीत कर रहे लोगों को काफी सहूलियत मिल सकती है. ऐसे लोगों की कई समस्याओं का अंत हो सकता है, लेकिन जमीन पर हालात कुछ अलग हैं. मानसिक रूप से बीमार पत्नी का झाड़-फूंक से इलाज करवाने के चक्कर में एक शख्स कर्जदार हो गया. उन्हें अपनी जमीन तक गिरवी रखनी पड़ी. अब हालात ऐसे बन गए हैं कि वह अपनी दो बेटियों के लिए भरपेट भोजन की भी व्यवस्था नहीं कर पा रहा है.
जमुई जिले के बरहट प्रखंड के सुदूर गरौनी गांव के आदिवासी बहुल गांव में अभी भी कई मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. खासकर बीमार पड़ने पर अभी भी यहां के गरीब आदिवासी अंधविश्वास के चक्कर में झाड़-फूंक का सहारा लेते है और कर्ज में डूब जाते हैं. उन्हें अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ जाती है. वैसे लोग भुखमरी के कगार पर चले जाते हैं और भीख मांगकर गुजारा-बसर करने को मजबूर हो जाते हैं. गांव में एक ऐसा ही शख्स है सहदेव कोड़ा. सहदेव की पत्नी रानी देवी एक साल से मानसिक रूप से बीमार हैं. उनका झाड़-फूंक से इलाज कराने के चक्कर में सहदेव कर्जदार हो गगए. उन्हें जमीन बेचनी पड़ी या फिर उसे गिरवी रखना पड़ा.
भुखमरी के कगार पर परिवार
सहदेव कोड़ा के घर में अनाज नहीं है. परिवार भुखमरी के कगार पर है. किसी से मांगकर सहदेव खुद अपने और 2 बेटियों (8 साल की कोमल और 5 साल की ममता) के लिए आधा पेट भोजन की व्यवस्था कर पाते हैं. मजदूरी करने वाले सहदेव अब काम पर भी नहीं जा पाते हैं, क्योंकि उपकी पत्नी बेटियों को संभाल नहीं पाती हैं. एक साल से सहदेव की दोनों बेटियां अपनी मां की ममता से दूर हैं. मानसिक रूप से बीमार मां कई बार हिंसक हो जाती हैं, जिस कारण बेटियां भी अपनी मां के नजदीक जाने से डरती हैं. ऐसी स्थिति में 8 साल की कोमल ही मिट्टी के चूल्हे पर किसी तरह से कुछ अनाज पका कर खुद पेट भरती है और मां-बहन को भी खिलाती है.
झाड़-फूंक के चक्कर में बने कर्जदार
सहदेव कोड़ा ने बताया कि पहले वह मजदूरी कर दो पैसे कमा लेते थे, लेकिन जब से पत्नी बीमार पड़ी है तब से कमाई भी बंद हो गई है. पत्नी मानसिक रूप से बीमार हैं. बेटियां अपनी मां के पास नहीं जा पाती हैं. लोगों ने बताया कि झाड़-फूंक से ठीक हो जाएगा तो वही करता हूं. सहदेव ने बताया कि अब तक झाड़-फूंक में लगभग 50 हजार रुपये कर्ज ले चुके हैं. यहां तक की खेत में लगे पेड़ को भी बेच दिया और जमीन भी गिरवी रख दी. उन्होंने बताया कि घर में खाने के लिए अनाज भी नहीं है.
सरकारी मदद का आश्वासन
गांव वालों का कहना है कि आदिवासी बहुल इस गांव में सुविधा नहीं है. गांव में न तो आंगनवाड़ी है और न ही पानी की सुविधा है. बच्चों को पढ़ने के लिए 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. इस मामले में बरहट के बीडीओ चंदन कुमार ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है, मदद पहुंचाई जा रही है. बीमार महिला को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा. साथ ही उस परिवार का पेट भरने के लिए खद्यान्न देने का निर्देश दे दिया गया है.
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