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बिहार: कहते हैं कि संतान अपने माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा होता है. अपवाद को छोड़ दें तो अमूमन ऐसा ही होता भी है. आज हम आपको एक ऐसे पिता और पुत्र की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप भी आश्चर्य में पड़ जाएंगे. दरअसल, एक मूकबधिर युवक न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ा है, बल्कि अपनी कमाई से घर चलाने के साथ-साथ अपने दिव्यांग पिता के इलाज का खर्च भी उठा रहा है. एक-दूसरे के प्रति पिता-पुत्र के इस प्रेम संबंध और जिम्मेदारी उठाने की क्षमता की हर कोई सराहना कर रहा है.
दरअसल, सहरसा शहर का रहने वाला प्रेम जन्म से मूकबधिर है. उसके पिता भी दिव्यांग हैं. परिवार की माली हालत ठीक नहीं रहने के कारण प्रेम की पढ़ाई भी नहीं हो पाई. पिता गौरीशंकर सिंह बताते हैं कि प्रेम जब बड़ा हुआ तो काम की तलाश में दिल्ली चला गया. वहां उसने व्यापार के गुर सीखने का प्रयास किया. इसी दौरान उसकी मुलाकात आयुर्वेदिक भूंजा कारोबारी से हुई.
उन्हीं की देखरेख में प्रेम ने सीलबंद आयुर्वेदिक भूंजा के कारोबार को शुरू किया.लेकिन ज्यादा दिन तकदिल्ली में नहीं रह पाया. इसके बाद वापस घर आया और यहीं पर पैकेट बंद भूंजा का कारोबार शुरू किया. अब अच्छी-खासी बिक्री भी हो जाती है.हालांकि कारोबार शुरुआती दौर में ही है. इसलिए शहरी क्षेत्र के विभिन्न इलाके में स्टॉल लगाता है.
बचपन से मूकबधिर है प्रेम
गौरीशंकर सिंह ने बताया कि प्रेम बचपन से ही मूकबधिर है, लेकिन उसकी सोच काफी ऊंची है. वह निठल्ला होकर घर में रहकर मां-पिता पर बोझ नहीं बनना चाहता था. ऐसे में उसने आयुर्वेदिक भूंजा का कारोबार करने का निश्चय किया. चुकी प्रेम अपनी बात लोगों को इशारे से ही समझा सकता था, ऐसे में वह बेटे को व्यवसाय चलाने में मदद करते हैं. जो लोगप्रेम के इशारे को नहीं समझ पाते हैं.
उन्हें वह खुद समझाते हैं औरमोटे अनाज का आयुर्वेदिक भूंजा खाकर स्वस्थ रहने की सलाह देते हैं.फिलहाल इसी कारोबार से परिवार चलता है. साथ ही दिव्यांग पिता का इलाज भी होता है. इस कारण अब पिता अपने पुत्र के भविष्य को लेकर चिंतित नहीं हैं.
Manish Sahu
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