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पटना (आईएएनएस)| बिहार कांग्रेस कमिटी की ओर से बिहार के 39 जिला अध्यक्षों की सूची जारी होने का बाद भले ही पार्टी के अंदर असंतोष के कुछ स्वर सुनाई दे रहे हों, लेकिन लोग इसे कांग्रेस के पुराने वोटरों को जोड़ने के संकेत भी मान रहे हैं। दरअसल, कमिटी द्वारा जारी प्रदेश के 39 जिला अध्यक्षों की सूची मे 26 जिला अध्यक्ष सवर्ण वर्ग से हैं। इसमें सबसे अधिक भूमिहार जाति के 11, ब्राह्मण से 8, राजपूत से 6 और कायस्थ समाज से एक को जिला का दायित्व सौंपा गया है।
कई जिला में पुराने अध्यक्षों को ही बरकरार रखा गया है जबकि कई को दायित्वमुक्त कर दिया गया है।
बिहार युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार कहते हैं कि कांग्रेस का वोट बैंक शुरू से सवर्ण वर्ग के लोग रहे हैं। इन वोटबैंक के भाजपा की ओर चले जाने के कारण ही कांग्रेस आज सत्ता से बाहर हो गई जबकि भाजपा सत्ता पर कब्जा जमा लिया।
उन्होंने कहा कि इसमें भी कोई शक नहीं कि बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण काफी महत्वपूर्ण है।
कांग्रेस नेता ललन कुमार की बातों पर अगर यकीन करें तो माना जा सकता है कि कांग्रेस कमिटी के जिला अध्यक्षों की सूची के जरिए न केवल भाजपा के वोटबैंक में सेंध मारने की कोशिश की है बल्कि अपने पुराने वोटरों को जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है।
इधर, प्रदेश कांग्रेस महिला कमिटी की पूर्व अध्यक्ष अमिता भूषण से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि अगर कोई असंतोष भी है तो पार्टी फोरम में उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि सीधे मीडिया में बोला जाना कही से उचित नहीं।
इस बीच हालांकि एक दो नेता ऐसे मिले जो खुलकर तो नहीं, लेकिन दबी जुबान असंतोष व्यक्त कर रहे। दलित समुदाय से आने वाले एक वरिष्ठ कांग्रेस के नेता नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि यह कहीं से उचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि पिछड़े और दलितों के बिना सत्ता तक पहुंचना आसान नहीं है। वैसे वे यह भी कहते हैं कई जिले में अभी कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, जिसमे बदलाव संभव है।
--आईएएनएस
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