बिहार

लंपी बीमारी पशुओं के लिए बनती जा रही है महामारी

Harrison
27 Sep 2023 10:01 AM GMT
लंपी बीमारी पशुओं के लिए बनती जा रही है महामारी
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बिहार | राजस्थान में साल भर पहले गायों में लंपी बीमारी होने और इससे उनकी मौत होने की खबर आई तो यहां के पशुपालकों में हड़कंप मच गया है. हालांकि, पिछले साल यहां इसका असर बिल्कुल भी नहीं दिखा. पशुपालक इस बात को लेकर खुश रहे कि यहां लंपी बीमारी नहीं आनेवाली है. लेकिन, साल भर के बाद ही बिहार में भी इसका असर दिखने लगा है. यह बिमारी इतनी तेजी से फैल रही है कि हर 10-15 पशुओं (गाय) में एक को लंपी बीमारी ने अपने चपेट में ले लिया है. स्किन डिजीज इस बीमारी की वजह से पशुओं में बुखार के लक्षण भी देखें जा रहे हैं. गांवों मे दुधारू पशुओं में लंपी बीमारी का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ते जा रहा है. पैर, पीठ, गर्दन, पेट, मुंह पर छोटे-बड़े गांठ निकल आये हैं. कई ने तो घाव का शक्ल ले लिया है. इससे उनको खाने-पीने में काफी परेशानी हो रही है. इससे पशु काफी कमजोर होते जा रहे हैं. पशुओं के अस्पताल में इसके लिए कोई कारगर दवा उपलब्ध नहीं है. रघुनाथपुर में तो प्रतिदिन 10 से 20 पशुपालक अपने मवेशी को लंपी बीमारी होने की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं. पशु अस्पताल में उन्हें इस बीमारी से बचाव के सिर्फ तरीके और घरेलू उपचार ही बताया जा रहा है. पशुचिकित्सक व अस्पताल के प्रभारी डॉ. सत्यपाल ने कहा कि नीम की पत्तियों को उबालकर उसके पानी से पशु को धोने व घाव पर नीम की पत्तियों का लेप लगाने की सलाह दी जा रही है. शाम के समय में मक्खी-मच्छर से बचाव में भी नीम की पत्तियों का धुआं करने की सलाह दी जा रही है. लंपी बीमारी के गम्भीर लक्षण होने पर पशुओं का इलाज किया जा रहा है. बाजार में जो दवाएं उपलब्ध हैं, काफी महंगी बताई जा रही हैं.
देसी व साहीवाल नस्ल की गायों में इसका असर
लंपी बीमारी का असर देशी और साहीवाल नस्ल की गायों में ही अधिक दिख रहा है. निखती खुर्द गांव के जितेन्द्र भगत ने कहा कि उनकी गाय को इस बीमारी ने इस कदर अपने चपेट में लिया था कि इलाज कराने में 4 हजार तक खर्च करना पड़ा. कौसड़ गांव के राजन यादव ने कहा कि इस बीमारी का दवा अस्पताल में नहीं है. डॉक्टर सिर्फ सलाह दे रहे हैं. दुकानों पर होमियोपैथी दवा इसके इलाज के लिए मिल रहे हैं. गाभिन (गर्भधारण करने वाली) गायों को बहुत सोच-समझकर इसकी दवा देनी पड़ती है. पशुपालकों को निजी चिकित्सकों के भरोसे रहकर अपने पशुओं का इलाज कराना पड़ रहा है. करसर, बंगरा, गभिरार, कौसड़, रघुनाथपुर व हरपुर आदि गांवों के पशुपालकों ने बताया कि यह बीमारी गंभीर होते जा रही है.
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