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बिहार। बिहार में सुशासन और बहार के सरकारी दावों के बीच बिहार की सच्ची तस्वीर दिखने का दावा किया गया है. दरअसल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, माफियाराज खत्म होने दावा करते हैं लेकिन पटना के पास हुए एक 'माफिया वॉर' ने सच्चाई सबके सामने खड़ी कर दी है. दरअसल नीतीश सरकार के दौर में माफिया खत्म नहीं हुए हैं, बल्कि उनके अपराध करने का तरीका बदल गया है.
बिहार का बरमुडा ट्राएंगल
आपने बरमूडा ट्राएंगल के बारे में सुना होगा. अमेरिका के फ्लोरिडा, प्योर्तो रिको और बरमूडा के बीच ये ऐसा क्षेत्र है, जिसे जानलेवा बताया जाता है. यहां कोई नहीं जाता है. यहां जो भी जाता है, वो कभी वापस नहीं आता है. बिहार राज्य में भी ऐसा ही एक ट्राएंगल हैं. ये ट्राइएंगल बहुत खतरनाक है. यहां आम इंसान का जाना मना है, आम इंसान तो छोड़िए सरकारी अधिकारियों, पुलिसकर्मियों तक का जाना मना है. पटना, आरा और छपरा के बीच बने इस खतरनाक ट्राइएंगल को कहते हैं रेत माफिया ट्राइएंगल. इस रेत माफिया ट्राइएंगल में वही जा सकता है, जो रेत का अवैध खनन करता हो, और जो हर वक्त गोलियां चलाने या जान लेने में माहिर हो. यहां गोलियों से होने वाली मौत का दुर्भाग्य होता है कि लाश दफन कर दी जाती है जो कभी नहीं मिलती. बिहटा में हुआ गैंगवार बिहार के इसी रेत माफिया ट्राइएंगल में हुआ. जहां सोन नदी की रेत के लिए अक्सर जंग छिड़ जाती है और लोगों का खून बहा दिया जाता है. सोन नदी की रेत के लिए माफिया वॉर नई बात नहीं है. इस खेल को रोकने की कोशिश कभी नहीं होती है. पुलिस के लिए भी इन माफियाओं को रोकना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि ये पूरा इलाके बीहड़ के जैसा है, पुलिस को भी पैदल ही कई बार गश्त लगानी पड़ती है.
किराये पर मिलती है AK-47
पुलिस के अधिकारी की ढिलाई, और यहां के कठिन भूगोल, माफिया वॉर को नए लेवल पर ले आया है. पुलिस के लिए माफियाओं को रोकना और ज्यादा मुश्किल हो सकता है क्योंकि खनन माफिया पर अब किराए की AK 47 से लैस हैं. जानकारों के मुताबिक जब बड़े माफिया लड़ते हैं तो वह AK-47 (AK 47 ) बंदूक का इस्तेमाल करते हैं. वहीं जो लोग हथियार मुहैया कराते हैं वो 5-6 लाख के किराए पर हथियार सप्लाई करते हैं और इसी AK-47 के दम पर माफियाओं के गुर्गे अक्सर पुलिस पर भारी पड़ते हैं. दबी जबान में यहां तक कहा जाता है कि माफियाओं का कनेक्शन प्रदेश के बड़े नेताओं से है, जिसकी वजह से सरकारी फैसलों की औकात उनके लिए किसी सफेद कागज पर पुती काली स्य़ाही से ज्यादा नहीं है. बिहार में रेत खनन रोकना, शराब बंदी के फैसले को लागू करने जैसा है. जिसके पास पैसा है, पावर है, उसके लिए जैसे शराब उपलब्ध है, उसी तरह रेत खनन भी आसान है.
हर महीने 350 करोड़ का नुकसान
एक आंकड़े के मुताबिक हर महीने में बिहार में अवैध रेत खनन से सरकार को 350 करोड़ की नुकसान होता है. हर दिन इन इलाकों से 4 से 5 हजार ट्रक और ट्रैक्टर के जरिए अवैध रेत दूसरी जगहों पर भेजी जाती है. अवैध रेत की ढुलाई के तेज रफ्तार वाली नावों का इस्तेमाल भी किया जाता है. 100 क्यूबिक फीट बालू की कीमत करीब ढाई हजार रुपये हैं. यानी 100 CFT को आप साढ़े 4 हजार किलो रेत समझ सकते हैं. दरअसल एक ट्रैक्टर में 100 CFT रेत आ सकती है, और एक ट्रक में 300 CFT बालू आती है. इस तरह रेत माफिया हर दिन सरकार से 8 से 10 करोड़ रुपये लूट रहे हैं. जो बिहार के माफियाओं, नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत का सच बताते हैं. इस अवैध कमाई का एक बड़ा हिस्सा, इलाके के अधिकारियों के खाते में जाता है. दस्तावेजों के मुताबिक अब तक 41 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मामले दर्ज हुए हैं. इसमें पुलिस अधिकारी, खनन अधिकारी और कई RTO अफसर शामिल हैं, जो 6 खनन अधिकारी अवैध खनन में शामिल रहे, उनमें एडिश्नल डायरेक्टर से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के अधिकारी हैं. इसके साथ अलग-अलग मामलों में 12 पुलिसवालों के खिलाफ केस दर्ज हैं. जिनके खिलाफ मामले हैं, उनमें 2 एसपी, 4 सीओ और 6 इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी हैं. 2 RTO अधिकारियों पर भी शिकंजा कसा गया है.
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