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बिहार | रक्तदान की तरह नेत्रदान भी महादान कहलाता है. इसके माध्यम से किसी की मौत के बाद भी उनकी आंखें दुनिया देख सकती हैं. मायागंज में करीब एक साल पहले आईबैंक बनाया गया, लेकिन अबतक नेत्रदान के लिए एक भी आवेदन यहां नहीं आए. सदर अस्पताल में भी सामान्य दिनों में नेत्रदान के लिए कोई आवेदन नहीं आया. 8 सितंबर को समाप्त हुए नेत्रदान पखवाड़ा में सदर और मायागंज अस्पताल को मिलाकर कुल 40 लोग नेत्रदान के लिए आगे आए हैं.
भागलपुर समेत देशभर में 38वां नेत्रदान पखवाड़ा 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया गया. इस दौरान मायागंज में 20 लोग तो सदर अस्पताल में भी 20 लोग नेत्रदान के लिए सामने आये हैं. इनके आवेदन भी अस्पतालों को मिल गए हैं. सदर अस्पताल में 20 में 14 विभागीय कर्मचारी हैं, जबकि 6 लोग बाहरी शामिल हैं. मायागंज अस्पताल में नेत्रदान के लिए आगे आने वालों में सभी शहरी लोग हैं.
निशुल्क आंखों की जांच के बाद चश्मा वितरण सदर अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार नेत्रदान के प्रति लोगों में जागरूकता के लिए स्कूलों में कैंप लगाकर बच्चों की निशुल्क आंख जांच की जा रही है. जरूरत के हिसाब से उन्हें चश्मा भी निशुल्क दिया जा रहा है. अब तक जिले अलग-अलग प्रखंडों के 48 स्कूलों में कैंप लगाया गया है. सदर अस्पताल के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सत्यदीप गुप्ता ने बताया कि नेत्रदान के लिए ओपीडी आए मरीजों को भी प्रेरित किया जाता है.
100 साल तक के व्यक्ति भी कर सकते हैं नेत्रदान
मायागंज अस्पताल के नेत्र विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. पम्मी राय ने बताया कि नेत्रदान में एक व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने का वचन देता है. देश में वर्तमान में करीब एक लाख युवाओं को कॉर्निया की जरूरत है. किसी भी प्रकार के ऑपरेशन वाले मरीज, किसी भी तरह की बीमारी वाले मरीजों के साथ-साथ एक दिन से लेकर करीब 100 साल तक के व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकते हैं.
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Harrison
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