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गुवाहाटी (आईएएनएस)| हिमंत बिस्वा सरमा एक समय असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। इसके साथ ही सरमा केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के एक घटक पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय दलों के साथ नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का भी नेतृत्व कर रहे थे।
भाजपा तब 2016 में असम में अपनी प्रचंड जीत के बाद अन्य राज्यों, विशेष रूप से त्रिपुरा और मेघालय को जीतने के तरीकों को खोजने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी। सरमा को त्रिपुरा में एक बड़े नेता के बारे में पता चला, जिसका बच्चा एक जटिल बीमारी से पीड़ित था। वह उस नेता की मदद के लिए कूद पड़े और बच्चे के इलाज की व्यवस्था की।
कुछ महीने बाद वह नेता त्रिपुरा में पहली भाजपा सरकार बनाने में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया, उस राज्य में 25 साल के वाम शासन को समाप्त कर दिया।
मेघालय में 2018 के चुनावों में भाजपा और कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने अलग-अलग लड़ाई लड़ी थी। बीजेपी राज्य में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और 47 सीटों पर लड़कर सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल कर पाई। लेकिन यह सरमा का जादू ही था, जिसने भाजपा को एनपीपी के साथ उस राज्य में सत्ता का आनंद लेने दिया।
इस बार भाजपा और कोनराड संगमा की पार्टी कई मुद्दों पर लड़ाई में लगी हुई है, लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि हिमंत बिस्वा सरमा ही हैं, जो दोनों दलों के बीच गठबंधन पर अंतिम निर्णय लेंगे। उनके व कॉनराड संगमा के बीच एक सौहार्दपूर्ण संबंध है, जो असम और मेघालय के बीच लंबे समय से लंबित सीमा विवाद को आंशिक रूप से हल करने में प्रभावी साबित हुआ है।
त्रिपुरा में पिछले विधानसभा चुनाव में सरमा भाजपा के पार्टी प्रभारी थे। यह माना जाता है कि असम के मुख्यमंत्री की रणनीति उस राज्य में माणिक सरकार की टीम से लड़ने में बेहद उपयोगी थी। सरमा को एक बहुत अच्छे वातार्कार के रूप में जाना जाता है।
जब कांग्रेस में थे, तो वे राज्यसभा चुनावों में पार्टी के प्रमुख प्रबंधक थे, जहां भाजपा व ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के कई नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवार को वोट देने के लिए रातों-रात पाला बदल लिया।
सरमा के बातचीत के कौशल ने 2017 के मणिपुर चुनाव में कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था, जहां चुनाव परिणाम में भाजपा कांग्रेस की तुलना में आठ सीटों से पीछे थी, लेकिन नाटकीय रूप से उसने पहाड़ी राज्य में सरकार बनाई। हालांकि कांग्रेस इस घटनाक्रम की बहुत आलोचना कर रही थी, लेकिन यह सरमा की चतुर चाल थी, जिसने भाजपा को मणिपुर में सत्ता हासिल करने में मदद की।
सहयोगी दलों के अलावा, असम के मुख्यमंत्री के विपक्ष में भी लोगों के साथ बहुत अच्छे संबंध हैं। उनके पास नेताओं को अपने साथ चलने के लिए मनाने की करिश्माई क्षमता है। पिछले लोकसभा चुनाव में कॉनराड संगमा की पार्टी एनपीपी ने असम की कुछ सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जहां बीजेपी अल्पसंख्यक वोटों के बंटवारे पर नजर गड़ाए हुए थी।
उस सीट पर एआईयूडीएफ ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था और भारतीय जनता पार्टी के लिए मुकाबला कड़ा नजर आ रहा था। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि एनपीपी के भाजपा की सहयोगी होने के बावजूद सरमा ने मेघालय के मुख्यमंत्री को चुनाव में उम्मीदवार उतारने के लिए राजी कर लिया।
हिमंत बिस्वा सरमा की छवि पिछले कुछ वर्षों में बहुत निखरी है। वह अब अपनी राष्ट्रीय उपस्थिति के साथ पार्टी के एक शक्तिशाली नेता हैं। भाजपा त्रिपुरा में जीत और मेघालय तथा नागालैंड में सहयोगी के रूप में सत्ता बरकरार रखने के लिए उन पर भरोसा करेगी।
एक निजी बातचीत में तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने स्वीकार किया कि उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सभी को आगाह किया है कि चुनाव प्रचार में सरमा पर ज्यादा हमला न करें। उन्हें लगता है कि असम के मुख्यमंत्री, पूर्वोत्तर में आगामी राज्य चुनावों में एक निर्णायक कारक बनेंगे।
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