एडिटोरियल : भारतीय राष्ट्रभाव अतिप्राचीन है। इसका मूल आधार हिंदू संस्कृति है। संप्रति हिंदू राष्ट्र पर विमर्श है। हिंदू संस्कृति के कारण यह हिंदू राष्ट्र है। कुछ लोग भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। उनका मंतव्य स्पष्ट नहीं है। राष्ट्र राजनीतिक इकाई नहीं है। यह सांस्कृतिक अनुभूति है। विराट विश्व हिंदू संस्कृति में एक परिवार है। पृथ्वी ब्रह्मांड की एक इकाई है। हिंदू संस्कृति में यह माता है। आकाश पिता हैं। हिंदू संस्कृति में वनस्पतियां अग्नि, वायु और जल भी देवता हैं। पूर्वजों में प्रकृति के प्रति आत्मीय भाव था। इसी संस्कृति से हिंदू राष्ट्र बना। राष्ट्र और राज्य भिन्न हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने लिखा है, ‘संयुक्त राष्ट्र वस्तुतः राष्ट्रों का संगठन नहीं है। राष्ट्रों के प्रतिनिधि के नाते उसमें राज्य ही प्रतिनिधित्व करते हैं। इसीलिए राज्य के विकारग्रस्त होते ही राष्ट्र अपने प्रतिनिधि बदल देता है। शासन पद्धति राज्य को राष्ट्र के हित में उपयोगी बनाने वाला तंत्र मात्र है, मगर कोई भी शासन पद्धति अपने राष्ट्र को नहीं बदल सकती। राष्ट्र स्थायी सत्ता है।’