नजरिया : कोई भी चुनाव हो, टिकट न मिलने से नाराज नेता हर दल के लिए समस्या बनते हैं। कई बार तो नाराज नेता विद्रोह करके अपने ही दल के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर जाते हैं या फिर विरोधी दल में शामिल होकर उसके प्रत्याशी बन जाते हैं। कभी-कभी वे दल में रहते हुए भितरघात भी करते हैं। इस पर आश्चर्य नहीं कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की ओर से अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करते ही, असंतोष के स्वर सुनाई देने लगे।
टिकट न मिलने से नाराज एक वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार ने पार्टी के फैसले को अस्वीकार करते हुए विद्रोही तेवर अपना लिए हैं। एक अन्य नेता लक्ष्मण सावदी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ने की घोषणा कर दी है। एक अन्य वरिष्ठ नेता ईश्वरप्पा ने संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। उनके कई समर्थकों ने भी भाजपा छोड़ने का फैसला किया है। चूंकि भाजपा ने 52 नए चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा है, इसलिए यह तय है कि जिन विधायकों का टिकट कटा है, उनमें से कई बगावत की राह पर जा सकते हैं। दूसरी सूची सामने आने पर कुछ और नेता असंतुष्ट के रूप में उभर आएं तो हैरानी नहीं।
भाजपा की तरह कांग्रेस में भी सब कुछ ठीक नहीं। उसके भी कई नेता टिकट न मिलने से नाराज हैं। जहां एक नेता ने कांग्रेस छोड़कर जनता दल-सेक्युलर में जाने की घोषणा कर दी है, वहीं कुछ अन्य ने कहा है कि वह अपने समर्थकों से मिलकर फैसला लेंगे। वे या तो दूसरे दलों में शामिल होकर चुनाव लड़ने की कोशिश करेंगे या फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपनी किस्मत आजमाएंगे। भाजपा, कांग्रेस की तरह जनता दल-सेक्युलर को भी अपने कई नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। सबसे दिलचस्प यह है कि देवेगौड़ा परिवार में ही इस पर रार छिड़ गई है कि कौन सदस्य कहां से चुनाव लड़े?