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शरीर पर जगह-जगह लाल धब्बे या पैचेज़ बन जाना और उनमें खुजली होना यानी सोरायसिस लंबे समय तक बने रहनेवाला एक ऑटोइम्यून डिज़ीज़ है. यह शरीर के कुछ हिस्सों या किसी-किसी मामले में ज़्यादातर हिस्सों को प्रभावित कर सकता है. हालांकि इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि यह संसर्गजन्य यानी छुआछूत से फैलनेवाला रोग नहीं है, पर इससे त्वचा इतनी ख़राब दिखने लगती है कि व्यक्ति का आत्मविश्वास कहीं खो सा जाता है.
क्लीयर अबाउट सोरायसिस एक वैश्विक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 66% लोगों को अपनी त्वचा के कारण भेदभाव और अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता है. वहीं यदि सोरायसिस से पीड़ित महिला हो तो उसका जीवन और भी मुश्क़िल हो जाता है. त्वचा की यह समस्या आपके आत्मविश्वास पर हमला करती है और आपके सामाजिक जीवन को तहस-नहस कर सकती है. इस समस्या के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी दे रही हैं डॉ शेनाज़ आरसीवाला, स्किन स्पेशलिस्ट, सैफ़ी हॉस्पिटल और प्रिंस अली ख़ान हॉस्पिटल, मुंबई और मेडिकल डायरेक्टर, रीन्यूडर्म सेंटर स्किन हेयर लेज़र्स ऐंड एस्थेटिक्स, मुंबई.
डॉ आरसीवाला के मुताबिक़ आमतौर पर महिलाएं शुरुआत में सोरायसिस के लक्षणों को त्वचा की आम समस्या समझकर क्रीम और मॉइस्चराइज़र का उपयोग करती हैं. अधिकांश महिलाएं सामाजिक भेदभाव, शर्म और विरक्ति के भय से इसके बारे में बात करने से हिचकिचाती हैं. इस समस्या का इलाज तभी संभव है, जब इसकी पहचान कर ली जाए. आइए, समझते हैं क्या है सोरायसिस और इससे कैसे बचा जा सकता है.
क्या है सोरायसिस?
सोरायसिस में प्रतिरोधक तंत्र ग़लती से त्वचा की स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला शुरू कर देता है, त्वचा की कोशिकाओं की उत्पत्ति को बढ़ा देता है और त्वचा की मृत कोशिकाएं तेज़ीक से त्वचा की सतह पर आ जाती हैं. इससे त्वचा पर उभरे, पपड़ीदार, खुजली वाले, शुष्क और लाल चकत्ते हो जाते हैं, जिनकी परत चमकदार होती है, यह आमतौर पर सिर, कोहनी, घुटने, कमर, हाथ, पैर, नाखून, जननांग और त्वचा की सिलवट पर होते हैं.
अभी तक सोरायसिस होने का सही-सही कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन आमतौर पर माना जाता है कि अनुवांशिक कारक, तनाव, त्वचा की चोट और ख़राब प्रतिरोधक तंत्र इसके कारण हैं. क्षतिग्रस्त त्वचा के एरिया के आधार पर सोरायसिस की तीन अवस्थाएं होती हैं. शरीर के 3 प्रतिशत से कम भाग पर मौजूद सोरायसिस को हल्का माना जाता है और शरीर के 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत भाग पर मौजूद सोरायसिस को मध्यम माना जाता है, जबकि 10 प्रतिशत से अधिक भाग प्रभावित होने पर इसे गंभीर माना जाता है.
कैसे पहचानें सोरायसिस के लक्षण?
अबनॉर्मल सेल ग्रोथ वाली त्वचा समस्या सोरायसिस के साथ सबसे बड़ी दिक़्क़त यह है कि समय-समय पर इसके लक्षण आते-जाते रहते हैं. अलग-अलग व्यक्तियों में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. फिर भी इसके कुछ आम लक्षण ये हैं...
* फटी हुई या रूखी-सूखी त्वचा
* क्रैक्स से ख़ून निकलना
* स्किन पर लगातार खुजली होना
* जोड़ों में सूजन और दर्द
* त्वचा पपड़ीदार होना या लाल-लाल चकत्ते बनना
क्या होता है इसका प्रभाव?
सोरायसिस का व्यक्ति पर मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक तथा आर्थिक दुष्प्रभाव होता है. एक शोध के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं को सोरायसिस के भावनात्मक और सामाजिक प्रभावों से अधिक जूझना पड़ता है. रिपोर्ट्स की मानें तो सोरायसिस लगभग 20 प्रतिशत महिलाओं के जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जबकि पुरुषों में केवल बारह प्रतिशत के साथ ही ऐसा होता है.
आत्मविश्वास की कमी और परिवार तथा मित्रों के सहयोग की अनुपस्थिति के कारण कई महिलाएं मान लेती हैं, कि अब उनकी त्वचा कभी अच्छी नहीं हो सकती. भारत में कई महिलाओं की सही जांच नहीं हो पाती है, जिसके चलते सही उपचार और देखभाल से वंचित रह जाती हैं.
इसके दूसरे प्रभावों में देखें तो सोरायसिस के चलते आर्टरीज़ यानी धमनियों में कैल्शियम का जमाव होने लगता है. जिससे हृदय रोगों का भी ख़तरा बढ़ जाता है. कुछ शोधों में डायबिटीज़ और सोरायसिस के बीच संबंध होने की बात जाती रही है.
करें जीवनशैली में ये 5 बदलाव
सोरायसिस के रोगियों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि इस रोग के उपचार की गंभीरता अलग-अलग लोगों में भिन्न-भिन्न होती है, उसी अनुसार सभी का इलाज भी अलग-अलग होता है. चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति और पहुंच के कारण भारत में सर्वश्रेष्ठ उपचार उपलब्ध हैं. ऐसी महिलाओं को सलाह है कि वे विश्वसनीय त्वचा रोग विशेषज्ञों से परामर्श लें, जो उन्हें इस रोग का प्रभावी उपचार प्रदान कर सकते हैं. साथ ही आप अपनी जीवनशैली में ये छोटे-छोटे बदलाव लाकर मनचाहा नतीजा पा सकती हैं.
1. तनाव और चिंता को रखें दूर: तनाव से दूर रहने की कोशिश करें, क्योंकि इससे सोरायसिस बढ़ सकता है. शांत और संयमित रहने के लिए सांसों के व्यायाम, योग और ध्यान करें. चूंकि सोरायसिस के रोगियों को डिप्रेशन में जाने का जोखिम रहता है, इसलिए उन्हें अपने मेंटल हेल्थ पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए.
2. स्मोकिंग और शराब से करें तौबा: स्मोक करने से सोरायसिस होने की संभावना दोगुनी हो जाती है. स्मोकिंग की तरह ही शराब पीने से भी प्रतिरोधक तंत्र प्रभावित होता है. सोरायसिस के रोगियों को स्मोकिंग और ड्रिंकिंग से तौबा कर लेनी चाहिए.
3. त्वचा की साफ़-सफ़ाई है ज़रूरी: यदि आपको सोरायसिस है तो त्वचा की साफ़-सफ़ाई पर ख़ास ध्यान दें. रोज़ नहाएं, पर हां ध्यान रखें बहुत गर्म पानी से स्नान न करें, क्योंकि इससे त्वचा शुष्क हो सकती है, गुनगुने पानी का उपयोग करें. नहाने के बाद शरीर को टॉवेल से धीरे-धीरे पोछें. बेबी सोप का इस्तेमाल करें. लूफ़ा या एक्सफ़ोलिएशन से बचें, क्योंकि इससे त्वचा के टिशूज़ क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. नहाने के बाद मॉइस्चराइज़ करें और अपनी त्वचा को पूरे दिन मॉइस्चराइज़्ड रखें.
4. सेहतमंद खाएं और ऐक्टिव रहें: ख़ूब सारी ताज़ी सब्ज़ियों और फलों वाला पोषक आहार लें. तेलयुक्त और जंक फूड से बचें. सोरायसिस के रोगियों को अपनी दैनिक चर्या में नियमित व्यायाम भी शामिल करना चाहिए. घूमने, योग और डांस आदि से सक्रिय रहने में मदद मिलती है और सकारात्मक विचार आते हैं.
5. ख़ूब सारा पानी पिएं: कम पानी पीने से डीहाइड्रेशन हो सकता है, जिसके चलते आपकी त्वचा रूखी-सूखी हो सकती है. इससे आपके शरीर में टॉक्सिन्स जमा होने लगते हैं. सोरायसिस होने पर लोशन आदि तो केवल बाहरी त्वचा को मॉइस्चराइज़ रखते हैं. अंदर से हाइड्रेटेड रहने के लिए पानी पीना बहुत ज़रूरी है. यह सुनिश्चित करें कि आप रोज़ाना कम से कम 8 से 10 ग्लास पानी ज़रूर पिएं.
ख़ूब सारी ताज़ी सबिज़यों और फलों वाला पोषक आहार लें. तेलयुक्त और जंक फूड से बचें. सोरायसिस के रोगियों को अपनी दैनिक चर्या में नियमित व्यायाम भी शामिल करना चाहिए. घूमने, योग और नृत्य से सक्रिय रहने में मदद मिलती है और सकारात्मक विचार आते हैं.
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Kajal Dubey
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