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एक बात जो आपको आजकल देखने को मिल रही होगी, वह यह कि अब आपके आस-पास कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. मुझे कुछ समय के लिए एक कैंसर हॉस्पिटल में रहने का मौक़ा मिला. वहां मैंने 100 मरीजों का अध्ययन किया. उसमें मुझे एक चौंकाने वाली बात पता चली कि 100 में से केवल 4 रोगी ही ऐसे थे, जिनके कैंसर होने की वजह गुटखा, सिगरेट या शराब थी. अन्य 96 रोगियों को किसी प्रकार का कोई व्यसन नहीं था. आख़िर क्या वजह है इन 96 प्रतिशत को कैंसर होने की?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक लोग कैंसर का शिकार होते हैं. 1940 के दशक में पैदा हुए व्यक्तियों में कैंसर की दर 1880 के दशक में जन्मे व्यक्तियों से दोगुनी थी और अब यह दर तेज़ी से बढ़कर छह गुना हो गई है.
आइए, इस महाविनाशकारी व्याधि की पड़ताल करें कि किसने दिया है इसे निमंत्रण मानव जाति में बसने का और लोगों के जीवन को नर्क बनाने का? मैं आपके सामने कुछ तथ्य रखता हूं, शायद इसे समझकर हम कुछ कर पाएं:
प्रदूषण
वायु, जल और भूमि प्रदूषित हो रहे हैं. दिन-प्रतिदिन बढ़ते उद्योगों से निकलता हुआ धुआं और हानिकारक अपशिष्ट फेफड़ों के कैंसर के लिए ज़िम्मेदार हैं. उद्योगों से निकलने वाले विषैले तरल पदार्थ पानी में मिलकर पेट और मूत्र प्रणाली के कैंसर का कारण बन रहे हैं. मैंने कई उद्योगपतियों को देखा है कि वे जब किसी शहर में उद्योग स्थापित करते हैं तो वहां की जनता को बहलाने के लिए उस शहर में एक ख़ैराती अस्पताल और कुछ पूजा स्थलों का निर्माण करवा देते हैं. ऐसे में लोग उस उद्योगपति को दानी, धार्मिक और बड़ा भला समझते हैं, जबकि इस उद्योग के नुकसान यदि उन्हें पता चल जाएं तो वे यह मांग करने लगेंगे कि अगर ऐसे 100 अस्पताल और भी खोल दो, तो भी हम यह उद्योग यहां नहीं लगने देंगे.
मैंने कई मरीजों को देखा है जो जीवनभर इस कारण से व्यसनों से दूर रहते हैं कि कहीं उन्हें कैंसर न हो जाए, लेकिन फ़ैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं को रोज़ाना पीने से उन्हें फेफड़े का कैंसर हो जाता है और वे हैरान रह जाते हैं कि ज़िंदगीभर मेरे सामने बीड़ी-सिगरेट पीने वाले को कोई बीमारी नहीं और मुझे कैसे कैंसर हो गया?
कीटनाशक
इसके मानव जीवन पर होने वाले प्रभावों के बारे में विस्तार से मैंने अपनी पुस्तक के ‘इंसानों का नाश करते कीटनाशक’ अध्याय में समझा चुका हूं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से ही कैंसर के रोगियों की संख्या में इतनी बढ़ोतरी हुई है. कीटनाशकों से कीट के साथ-साथ मानवों का भी नाश हो रहा है. आजकल इतने असरकारक कीटनाशक आ गए हैं कि वे फल, सब्ज़ी, दालों के प्रत्येक अंश में विद्यमान रहते हैं. ऐसे में कोई कीट इनका सेवन करता है तो वह मर जाता है. अब इन फलों, सब्ज़ियों एवं दालों को मनुष्य भी खाता है तो वह तुरंत तो नहीं मरता, लेकिन उसके शरीर में कई घातक परिवर्तन अवश्य आरंभ हो जाते हैं. लिवर का कैंसर, किडनी का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, ब्लड कैंसर का प्रमुख कारण ये कीटनाशक ही हैं.
अंग्रेज़ी दवाओं का अत्यधिक सेवन
आजकल हमारे देश में अंग्रेज़ी दवाओं का चलन बहुत ज़्यादा हो गया है. आज से कुछ साल पहले किसी व्यक्ति को ड्रिप लगती थी तो उसके संबंधी खबर लेने पहुंच जाते थे. लेकिन आजकल तो आईसीयू में भी मरीज़ भर्ती हो तो भी लोग इसको सामान्य समझते हैं. कैंसरकारक दवाओं की सूची काफ़ीक लम्बी है, लेकिन मोटे तौर पर इसमें मुख्य स्थान कृत्रिम स्टेरॉइड्स, हार्मोनल दवाइयां, दर्द निवारक एवं ऐंटीबायोटिक्स का है.
कई परिस्थितियों में छोटा-सा फोड़ा भी ग़लत समय पर ऐंटीबायोटिक खाने से कैंसर में परिवर्तित हो जाता है. लम्बे समय तक कृत्रिम स्टेरॉइड्स खाने वालों को भी पेट, हड्डी या किडनी का कैंसर होने की सम्भावनाएं होती हैं. ऐसी कई दवाइयां हैं, जो तुरंत लाभ तो पहुंचाती हैं, लेकिन उसके दुष्परिणाम हमें कुछ वर्षों बाद पता चलते हैं.
कुछ हमारे दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं
अब हमें अपने विलास के लिए नित नए उपकरणों का प्रयोग करते हैं, जिनमें मुख्यतः मोबाइल फ़ोन, एयर कंडीशनर, माइक्रोवेव अवन आदि कई ऐसे छोटे या बड़े उपकरण हैं, जो हमारे लिए कैंसर का कारण बने हुए हैं.
हमारे खान-पान में परिवर्तन
आयुर्वेद का सिद्धांत है कि सब रोगों का कारण मंदाग्नि है अर्थात् पेट की ख़राबी. आज के समय में हम किसी भी चीज़ को खा लेते हैं, खाने-पीने के किसी नियम का कोई भी व्यक्ति पालन नहीं करता.
होटलों में बनने वाले तले-गले व्यंजन भी कैंसर-कारक होते हैं, क्योंकि वे एक ही तेल को महीनों तक पकाते हैं और तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें कैंसर उत्पन्न करने वाले गुण आ जाते हैं. कई लोगों का नाश्ता ही कचौरी-समोसा आदि होटलों के पकवानों से होता है. ऐसे में उनके स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ता होगा, हम कल्पना भी नहीं कर सकते.
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