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- क्या है पैनिक अटैक?...
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पिछले दशकों में जिन कुछ-एक शब्दों का प्रयोग अचानक समाज में बढ़ा है, पैनिक अटैक भी उन्हीं में से एक है. आमतौर पर डर, ग़ुस्से या घबराहट का किसी झटके की तरह आना और पूरे वजूद पर छा जाना ही पैनिक अटैक कहलाता है. जिसमें ऐसा महसूस होता है, जैसे देह अपना भार छोड़कर अनंत में गिरती जा रही है. जैसे आपके तमाम अंग विद्रोह का झंडा लेकर खड़े हो गए हैं. जैसे मनों वज़नी एक भार है, जिसे आप उतारना चाहते हैं, लेकिन वज़न बढ़ता जा रहा है. जैसे आप किसी एम्यूज़मेंट पार्क में झूलते जा रहे हैं, इधर से उधर, उधर से इधर. शुरुआत में आप इंतज़ार करते हैं कि आगे क्या होगा? और थोड़े इंतज़ार के बाद हमले के नतीजे सामने आने लगते हैं. आप पहले डर के अंदर दाख़िल होते हैं और फिर पूरी तरह से उससे लिपट जाते हैं. हर पुराना डर, एक नया डर खींचकर लाता है और इसी तरह पहाड़ खड़ा होता जाता है. और फिर फ़ोबिया सच की शक्ल अख़्तियार करने लगता है. आपके पसीने छूटने लगते हैं, सच में दिल ज़ोरों से धड़कता महसूस होता है. कभी आंसू, कभी ग़ुस्से की बाढ़ आती है. आप उसमें डूबने-उतरने लगते हैं. और आपका दम घुटने लगता है. आप छिटककर दूर भाग जाना चाहते हैं, लेकिन कहीं कोई रास्ता नहीं. कहीं कोई निजात नहीं... मगर थोड़ा ध्यान दिया जाए, तो डर की उन अंधियारी गलियों को पार किया जा सकता है.
क्यों आते हैं पैनिक अटैक?
न्यू यॉर्क सिटी में क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट मार्टिन शेफ़ के मुताबिक़,‘लोग अलग-अलग कारणों से पैनिक अटैक झेलने को मजबूर होते हैं. कई बार इनकी शुरुआत किसी ख़ास परिस्थिति का सामना न कर पाने के कारण होती है, लेकिन धीरे-धीरे लोग चिंता करने लगते हैं कि अटैक न आए और इसी चिंता से बार-बार अटैक झेलते हैं. माने जिस डर से अटैक की शुरुआत हुई वह कहीं पीछे छूट जाता है और मुट्ठी में हर बार एक नया डर आ जाता है.’ हालांकि लंबे समय से चल रहे शोधकार्यों के बावजूद अभी साफ़तौर पर समझा नहीं जा सका है कि एक स्वस्थ व्यक्ति अचानक पैनिक अटैक का शिकार कैसे हो जाता है, क्योंकि अभी तक अध्ययन में ऐसी कोई सामान्य वजह खोजी नहीं जा सकी है. फिर भी कहा जा सकता है कि इस स्थिति के आकार लेने के पीछे भावनात्मक वजहों की भूमिका अहम् है. जैसे कोई झूठ, मान्यता और संस्कारों के विरुद्ध कोई घटना, कोई हादसा या कोई सच्चाई.
क्या हैं इसके लक्षण?
लोग अक्सर पैनिक अटैक को हार्ट अटैक समझने की भूल कर बैठते हैं, क्योंकि इसमें भी कई बार संबंधित व्यक्ति को दिल में दर्द कि शिकायत होती है. लेकिन हमेशा ऐसा हो ज़रूरी नहीं. कंपकंपी, घबराहट, तेज़ पसीना, जी-मिचलाना, भ्रम की स्थिति, दिल की धड़कन का अचानक बढ़ना या डूबना महसूस होना, गला सूखना, सांस न आना, चक्कर आना, बेहोशी महसूस करना, शून्यता की स्थिति, पैरों में थरथराहट, बार-बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत महसूस होना भी इसके लक्षण हैं. लेकिन सबसे बड़ा लक्षण है फ़ियर ऑफ़ फ़ियर यानी इन लक्षणों से गुज़रने के बाद अगर कोई व्यक्ति घंटों इस डर में गुज़ारने लगे और हर एपिसोड के बाद एक नए एपिसोड का कथानक बुनने लगे तो उस पर ध्यान देना ज़रूरी हो जाता है. हालांकि पैनिक अटैक कुछ मिनट में ख़त्म हो जाता है, लेकिन कई बार घंटों तक थरथराहट बनी रहती है, जिसकी वजह से संबंधित व्यक्ति लोगों से, समाज से कटने लगता है, क्योंकि इसकी चोट से मन और शरीर दोनों घायल होते हैं.
कैसे सामना करें पैनिक अटैक का?
पेरियार हॉस्पिटल चेम्सफ़ोर्ड के कंसल्टेंट सायकियाट्रिस्ट डॉ डोना ग्रांट कहते हैं कि पैनिक अटैक की स्थिति में कभी भी पैनिक नहीं होना चाहिए. थोड़ी समझदारी और थोड़ी देखभाल से हालात का सामना किया जा सकता है. मसलन-
जहां हैं, वहीं रहें: किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति का सबसे बड़ा हथियार होता है उसका विवेक, जो उसे दो विचारों में से एक को चुनने का मौक़ा देता है. इसलिए जीवन में अगर कभी ऐसी परिस्थिति सामने आ जाए, तो डर, घबराहट के साथ बहते जाने के बजाय ठहराव को चुनें. क्योंकि इस हालत में मानसिक और शारीरिक रूप से भी चोटिल होने का ख़तरा रहता है. ये ठहराव आपको ऐसे ख़तरे से बचाएगा.
अपनी समस्या को समझें: चूंकि पैनिक अटैक पूरी तरह से डर की नींव पर खड़ी स्थिति है, इसलिए ज़रूरी है कि अंधेरे में तीर चलाकर कल्पना में डर को बेवजह न बढ़ाएं. रौशनी में चीज़ों को देखना, समझना शुरू करें. बेहतर हो कि रुक जाएं और डर से डरने की बजाए ख़ुद को समझाएं कि ये सामान्य शारीरिक संकेत हैं, जस्ट ए बॉडी अलार्म... जो किसी अंदरूनी गड़बड़ की वजह से घनघना उठे हैं.
संतुलन बनाए रखें: मनोवैज्ञानिक कैथरीन पुल्श्फ़िर के मुताबिक़,‘जब डर या चिंता सताए, तो ख़ुद से सवाल करें-क्या ये बात पांच साल बाद भी मायने रखेगी. अगर मन कहे हां, तो परिस्थिति से लड़ने की तैयारी शुरू करें और अगर मन कहे ना तो डरना या सोचना बेकार है.’
ख़ुद के साथ सकारात्मक संवाद करें: जैसे मैं बिना भागे परिस्थिति का सामना कर सकता हूं/सकती हूं. मैं कभी बेहोश नहीं हो सकता/सकती. ये घबराहट कुछ पलों के लिए है, हमेशा के लिए नहीं.
ग़लत विचारों को ‘ना’ कहें: पैनिक अटैक के दौरान कई-कई विचार (ख़ासतौर पर नकारात्मक) हमला करते हैं, इसलिए जैसे ही हमला शुरू हो अपने विचारों की दिशा बदलने की कोशिश करें. कोई अच्छी बात सोचना शुरू कर दें. जैसे फूल, तितली, मौसम या रंगों के बारे में, बीते अच्छे पलों के बारे में.
अपना रुख तय करें: कहते हैं कि परिस्थिति नहीं उसके प्रति हमारा व्यवहार तय करता है कि परिणाम क्या होगा. इसलिए अपने मन की स्टेयरिंग अपने हाथ में ही रखें.
आंख बंद करें: कई बार अटैक आने पर नज़र के सामने ऐसी चीज़ें आने लगती हैं कि डर बढ़ता जाता है. इसलिए मन को चारों ओर से हटाने के लिए तुरंत आंखें बंद कर लें. और मन ही मन किसी अच्छे समय, अच्छे दिन या अच्छे चेहरे की कल्पना करें.
एक्ससाइज़ करें: मसल्स को रिलैक्स करने के लिए एक्ससाइज़ करें. इससे तनाव रिलीज़ करने में मदद मिलती है. दिमाग़ जल्दी शांत होता है. नकारात्मक विचारों से ध्यान हटता है.
सबसे अहम् पैनिक अटैक का इंतज़ार न करें: अगर मन में कहीं कोई चिंता, डर या ग़ुस्से का बीज है, तो इससे पहले कि वो दरख़्त बने. अभी इसी पल उसकी जड़ को साफ़ करना शुरू कर दें.
पैनिक अटैक का सामना करने के लिए बनाएं छह सूत्रीय योजना
पैनिक अटैक के वक़्त यह छह टिप्स मिनटों में आपकी स्थिति को सामान्य करने में काफ़ी अहम हैं.
1: जानें और स्वीकार करें.
2: रुकें और देखें लेकिन दृश्य में शामिल न हों.
3: सोचें और सही सोचें.
4: समर्पण के बजाए संघर्ष के रास्ते का चुनाव करें.
5: डर को नहीं अपने हौसले को दोहराएं.
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Kajal Dubey
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