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संस्कृत शब्द वृक्ष को अंग्रेजी में ट्री कहते हैं। इसके पर्यायवाची शब्द है झाड़ और पेड़। वृक्षासन को करने से व्यक्ति की आकृति वृक्ष के समान नजर आती है इसीलिए इसे वृक्षासन कहते हैं। यह आसन से वृक्ष की शांत एवं स्थिर अवस्था को दर्शाता हैI अन्य योगासनों के विपरीत इस आसन में हमे अपने शरीर के संतुलन को बनाये रखने के लिए आंखे खुली रखनी पड़ती हैं। इस आसन को करने से शारीरिक संतुलन बना रहता है। यह आपके स्वास्थ के लिए ही अच्छा नहीं है बल्कि मानसिक संतुलन भी बनाये रखने में सहायक है। इस आसन को किस प्रकार किया जाता है और इस आसन को करने से हमें क्या लाभ प्राप्त होते हैं। आज हम आप को इस बारे में बताते हैं।
* वृक्षासन योग की विधि :
इस आसन की करने के लिए सबसे पहले सीधी तरह तनकर खड़े हो जाएं। अपने शरीर का भार बाएं पैर डाल दें फिर अपने दाएं पैर को मोड़ दें। दाएं पैर के तलवे को घुटनों के ऊपर ले जाएं और अपने बाएँ पैर के साथ लगा दें। अपने दोनों हाथ की हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में लें और फिर उसे अपनी छाती के पास ले जाएँ। अपने दाएं पैर के तलवे को अपने बाएँ पैर के साथ दबाएं। अपने बाएँ पैर के तलवे को जमीन की ओर दबाएं। गहरी सांस लेते हुए अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं। अपने सिर को सीधा रखें और सामने की और देखें। अब इस मुद्रा में कुछ सेकेण्ड तक बने रहे। दोनों तरह इस मुद्रा को 2 से 5 बार तक दोहराएं।
* वृक्षासन के लाभ :
वृक्षासन शारीरिक अंगों में संतुलन और दृढ़ता के लिए बहुत ही लाभप्रद है। इस योग के अभ्यास से शारीरिक तनाव दूर होता है। यह आसन पैरों एवं टखनों में लचीलापन लाता है। यह हिप्स और घुटनों में स्थित तनाव को भी दूर करने में कारगर होता है। वृक्षासन घुटने के दर्द के लिए, एडि़यों के दर्द के लिए, पैरों की मजबूती में, गठिया के दर्द में, तनाव में, डिप्रेशन में, कद बढ़ाने में, नस के दर्द में, वजन बढ़ने के रोकने में, शरीर संतुलन में और रीढ़ की हड्डी के लिए लाभदायक हैं।
* वृक्षासन योग में सावधानियाँ :
अगर आप माइग्रेन, अनिंद्रा, अल्प या उच्च रक्तचाप से पीड़ित है तो यह आसन न करेंI (उच्च रक्तचाप वाले इस आसन को हांथो को सर के ऊपर ले जाए बिना कर सकते हैंI हांथो को ऊपर ले जाने से रक्तचाप बढ़ सकता है)। अगर आप को नींद से संबंधित किसी प्रकार की कोई समस्या है तो आप को इस आसवन को नहीं करना चाहिए।
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