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भारत जैसे रूढ़िवादी समाज में, 'अपना खुद का बच्चा' परिवारों की प्राथमिकता होती है और युवा जोड़ों पर अक्सर परिवारों द्वारा शादी के पहले कुछ वर्षों के भीतर संतान पैदा करने का दबाव डाला जाता है. इस तथ्य के बाद भी परिवारों में रीप्रोडक्टिव हेल्थ के विषय में खुलकर चर्चा नहीं की जाती है. इस कारण ऐसे जोड़े जो कि गर्भधारण करने में असमर्थ हैं वे इसके लिए हर प्रयास करना चाहते हैं. इसमें कोई बड़ी बात नहीं है कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ़) से जुड़े हुए बहुत सारे भ्रामक मिथक हैं जो इस समय समाज में प्रचलित हैं. बिरला फ़र्टिलिटी ऐंड आइवीएफ़ की कंसल्टेंट डॉ स्वाति मिश्रा हमें बता रही हैं इस तकनीक से जुड़ी टॉप 7 ग़लफ़हमियों के बारे में.
: आईवीएफ़ से कई बच्चे हो जाते हैं
तथ्य: यदि आईवीएफ़ की प्रक्रिया को अंतरराष्ट्रीय प्रैक्टिसेज के दिशानिर्देशों के तहत किया जाए तो फिर मल्टीपल प्रेगनेंसी की संभावना मात्र 20% होती है क्योंकि एंब्रियो की संख्या को कंट्रोल किया जाता है. यदि सिंगल प्रेगनेंसी ना हो, तो फिर गर्भवती महिला के लिए जटिलताएं बढ़ जाती हैं. लेकिन ऐसे मामलों में जहां महिला की उम्र अधिक हो गई हो या आईवीएफ़ बार-बार विफल हो रहा हो, तो ऐसे मामलों में 1 से अधिक एंब्रियो को स्थानांतरित करने की सलाह दी जाती है. ऐसे मामलों में, डॉक्टर ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफ़र को प्राथमिकता देते हैं (इसमें मानव एंब्रियो फ़र्टिलाइज़ होने के 5 से 6 दिनों के बाद पहुंचता है).
: आईवीएफ़ से कैंसर होने का ख़तरा बढ़ जाता है
तथ्य: किसी भी अध्ययन या चिकित्सा अनुसंधान में कैंसर और आईवीएफ़ के बीच कोई स्थापित संबंध नहीं है. पुरुषों या महिलाओं में से किसी के लिए भी कैंसर के बढ़ते जोखिम के बिना फ़र्टिलिटी ट्रीटमेंट के लिए उचित संख्या में प्रयास कर सकते हैं. इस प्रक्रिया में ना तो अजन्मे बच्चे को कैंसर का कोई ख़तरा है और ना ही उसके बड़े हो जाने के बाद भी कैंसर का किसी भी प्रकार का ख़तरा है.
आईवीएफ़ एक दर्दनाक प्रक्रिया है
तथ्य: परंपरागत रूप से, आईवीएफ़ बहुत दर्द और परेशानी से जुड़ा हुआ है, खासकर शुरुआती कुछ दिनों में जब महिला को हार्मोन इंजेक्शन की दैनिक खुराक लेनी पड़ती है. लेकिन, चिकित्सा में प्रगति और नई रेकॉम्बीनैंट दवाओं के आने के साथ, यह प्रक्रिया बहुत कम दर्दनाक और अधिक सुविधाजनक हो गई है. ये इंट्रा-मस्कुलर नहीं हैं और इन्हें लेने में कम दर्द होता है.
: आईवीएफ़ प्रक्रिया के बाद जन्मे बच्चे में जन्म दोषों का ख़तरा बढ़ जाता है
तथ्य: आईवीएफ़ प्रक्रिया जन्मजात दोषों के जोखिम को नहीं बढ़ाती है. इसके विपरीत, यह उच्च जोखिम वाले मामलों में बच्चे को जन्मजात डिफेक्ट या क्रोमोसोमल डिफेक्ट से समय रहते बचने के लिए भ्रूण के प्रीइम्प्लांटेशन आनुवंशिक परीक्षण की अनुमति देता है. इनमें ऐसे मामले शामिल हैं जब महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक हो, या पुरुष की आयु 50 वर्ष से अधिक हो, या जहां आनुवंशिक विकारों का पारिवारिक इतिहास हो.
: यदि पहला आईवीएफ़ विफल हो जाए तो भविष्य की सभी संभावनाएं ख़त्म हो जाती हैं
तथ्य: यदि किसी कपल का आईवीएफ़ साइकिल किसी कारण से विफल हो जाए तो इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि भविष्य में महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती है. हां यह समझना जरूर आवश्यक है कि ऐसा क्यों हुआ तथा भविष्य में आईवीएफ़ को सफल बनाने के लिए उपचार को संशोधित किया जा सकता है. ऐसे कई मामले हैं जिनमें रोगियों ने चार से पांच आईवीएफ़ साइकिल के बाद गर्भ धारण किया है. इसके लिए लेजर असिस्टेड हैचिंग, या प्लेटलेट रिच प्लाज्मा को यूटरिन कैविटी में इंजेक्ट किया जाता है तथा एक संतुलित आहार दिया जाता है जिसमें एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में हों.
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