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योग के प्रभाव को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महसूस किया जा चुका है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | योग के प्रभाव को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महसूस किया जा चुका है। योग सिर्फ व्यायाम ही नहीं बल्कि अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ज्ञान है , जो शरीर, मन और बुद्धि के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। योग जीवन जीने की कला और विज्ञान है। योगिक ग्रंथो के अनुसार, योग अभ्यास व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक चेतना में एकाकार कर देता है । आइए जानते हैं ऐसे तीन महत्वपूर्ण योगासनों के बारें में जिनसे ना सिर्फ तनाव और अवसाद कम होगा बल्कि आप ज्यादा ऊर्जा और ताजगी भी महसूस करेंगें। ये आसन पेट से अतिरिक्त वसा घटाते है, कब्जियत को दूर करते हैं और पाचन क्षमता को भी बढ़ाते हैं।
भुजंगासनः भुंजग का सामान्य अर्थ सांप व नाग होता है। इस आसन को करने के बाद शरीर की स्थिति सांप के समान हो जाती है, इसलिए इस आसन को भुजंगासन कहते हैं । आइये जानते है, इस आसन को करने की विधि -
भुजंगासन करने की विधि :
सर्वप्रथम पेट के बल लेट जायें, दोनों हाथों को बगल की तरफ रखें , पूरे शरीर को शिथिल रखें। दोनों पैरों को आपस में मिला लें, धीरे- धीरे लम्बा व गहरा श्वास लेते हुए, ठुड्डी और नाभि तक के शरीर को ऊपर उठायें ,कुछ देर इसी अवस्था में रहें, सामान्य श्वास चलती रहेगी, धीरे से वापस आते हुए श्वास छोड़ते हुए , शरीर को शिथिल करें। माथें को दोनों हथेलियों पर रखें और पैरो को फैलाकर विश्राम करें।
शलभासनः शलभ का सामान्य अर्थ टिड्डी होता है। जो एक प्रकार का कीड़ा होता है । इस आसन को करने के बाद हमारे शरीर की स्थिति टिड्डी के समान हो जाती है, इसलिए इस आसन को शलभासन कहा जाता है ।
शलभासन करने की विधि :
ठुड्डी को जमीन पर टिकाकर दोनों हाथों को बगल में रखें, हथेलियां आसमान की तरफ़ होनी चाहियें, श्वास अंदर भरते हुए घुटने को बिना मोड़ें , पैरो को जमीन से जितना हो सके ऊपर की और उठायें । इस स्थिति में 10 -15 सेकंड तक रहें, सामान्य श्वास चलती रहेगी । श्वास बाहर छोड़ते हुए पैरो को जमीन पर वापस ले आएं ।
सेतुबंधासनः सेतुबंध का अर्थ पुल का निर्माण है। इस आसन को करने के बाद शरीर की आकृति एक सेतु की तरह हो जाती है, इसलिये इस आसन को सेतुबंधासन कहते हैं ।
सेतुबंधासन करने की विधि :
सर्वप्रथम पीठ के बल लेट जाएं, दोनों पैरो को घुटनों से मोड़ते हुए एड़ियों को नितम्ब के पास लें आएं, हाथों से पैर के टखनों से मज़बूती से पकड़ें, घुटने एवं पैरों को एक सीध में रखें। श्वास अंदर भरते हुए धीरे - धीरे अपने नितम्ब और धड़ को ऊपर की और उठायें , इसी अवस्था में 10 -25 सेकंड तक रहें। इस दोरान सामान्य श्वास चलती रहेगी। श्वास बाहर छोड़ते हुए धीरे - धीरे प्रारंभिक अवस्था में वापस आएं और कुछ समय शवासन में लेटकर शरीर को शिथिल छोड़ दें ।
सावधानियां : पेप्टिक अल्सर या हाल ही में हुआ ऑपरेशन, हर्निया से पीड़ित व्यक्ति और गर्भवती महिलाओं को इन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिये ।
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Ritisha Jaiswal
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