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‘क्योंकि मुझे अच्छी सास बनना है’
-माधवी
वाक़या बड़ा दिलचस्प है. नए घर में शिफ़्ट करने के बाद थोड़ी-सी जान-पहचान हुई और उनके आग्रह करने पर यूं ही पहली बार मैं उनसे मिलने उनके घर पहुंचीं. शाम कोई चार बजे का वक़्त था. उनके पति ऑफ़िस गए हुए थे और दो टीनएजर बेटों की उस मां का घर ख़ूबसूरती से सजा था. उनकी पसंद सुरुचिपूर्ण थी, साफ़ पता चल रहा था. हम बैठे-बैठे गप्पें मारते रहे. इस बीच उनका बड़ा बेटा एक ट्रे में पानी ले आया. और उनके यह कहने पर कि तुम नाश्ता सर्व कर दो वह दोबारा किचन की ओर चला गया. जब वह हमारे लिए नाश्ता लगा ही रहा था, उन्होंने अपने छोटे बेटे को आवाज़ दी और कहा,‘खेलने जाने से पहले तुम आंटी और मेरे लिए चाय बना देना.’ उन दोनों को नाश्ता सर्व करने के बाद उनका बड़ा बेटा ट्यूशन के लिए निकल गया और उन्हें चाय दे कर छोटा भी खेलने चला गया. उनके जाने के बाद मैंने कहा-आपने अपने लड़कों को काफ़ी काम सिखा रखे हैं. तपाक से उनका जवाब आया-हां. ये इसलिए और ज़्यादा ज़रूरी है, क्योंकि में कुड़कुड़ाने वाली बुरी-सी सास नहीं बनना चाहती. वे कुछ पल मौन रहीं फिर मेरे चेहरे के अचरजभरे भाव पढ़कर मुस्कुराते हुए बोलीं-अरे, अक्सर महिलाएं अपने लड़कों को न तो काम सिखाती हैं और ना ही उनसे काम लेती हैं. जब उनके बेटों की शादी होती है, तब यदि बेटे अपनी पत्नियों की मदद करने लगते हैं तो इस बात को लेकर कुड़कुड़ाती हैं कि देखो कल की आई बहू मेरे बच्चे से काम ले रही है. तो क्या ये अच्छा नहीं है कि मैं अपने बेटों को काम सिखाऊं, उन्हें आत्मनिर्भर बनाऊं और वक़्त-ज़रूरत उनकी मदद लूं. फिर कल को जब उनकी पत्नियां आएंगी और वे उनकी मदद करेंगे तो मेरे मन में कोई कुढ़न रहेगी ही नहीं. और बहुएं अपने पतियों को काम सिखाने के लिए मेरी शुक्रगुज़ार होंगी सो मुनाफ़े में. मैं उस महिला की सोच पर अभिभूत हो गई. मन हुआ काश हमारे देश की सभी महिलाएं अच्छी सास बनने के लिए अपने बेटों को घरेलू कामकाज सिखाएं और उन्हें अपनी पत्नियों का सहयोग करने के लिए तैय्यार करें, ताकि कामकाजी महिलाएं के ऊपर आ पड़ा घर-बाहर के दोहरे कामों का बोझ बंट सके.
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