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- खुद के लिए ऐसे निकालें...
मन नहीं लग रहा काम तो है पर करने का दिल नहीं हो रहा, कुछ समझ नहीं आ रहा बोरियत हो रही है क्या करँ? ऐसे जुमले वाक्य अधिकतर महिलाओं से यदा-कदा सुनने को मिल ही जाते हैं। ना चाहते हुए भी रोज-रोज वही काम एक जैसी दिनचर्या होने से मन ऊब जाता है स्वंय को महसूस होने लगता है सारा समय बच्चों व घर के कामकाज में ही निकल गया, पढ़ाई लिखाई का कोई फायदा नहीं हुआ अलग से कुछ नहीं कर सके वगैरा वगैरा…। धीरे-धीरे ऐसी ही सोच से मन कुंठित तनाव व चिड़िचड़ापन स्वभाव में झलकने लगता है।स्वंय को अहसास होता भी खुश नहीं रह पाते लेकिन लाख चाहने के बावजूद भी बात-बात में खीझ आने से मूड़ अच्छा नहीं रहता। ऐसी स्ठिति के लिए मनोचिक्तिसिक का मानना है इसकी वजह कहीं न कहीं व्यक्ति विशेष खुद ही है। जब स्वंय को पता नहीं रहता जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या पाना चाहते है? तो ऐसे असमंजस हालात में वर्तमान से संतुष्ट न रहकर भविष्य के प्रति सजग होने की सोचते है और इसी उधेड़ बुन मे फंस परेशान रहने लगते हैं परंतु ऐसे तो काम चल नहीं सकता इस दशा से उबरना अत्यंत जरुरी है। हर हाल में मानिसक शांति के साथ खुश तथा संतुष्ट रहना ही होगा। अतः पहले अपने आप से सवाल करे मैं क्या हूं? फिर स्वंय ही जवाब दें जो भी हूं ईश्वर की कृपा से बहुत सुखी हूं। सोने पे सुहागा यदि आप जिम्मेदारियों को भली भाँति निभाते हुए कोई सत्कार्य या जॉब करना चाहती है, लेकिन यह विश्वास मन में कायम कर लें कि घर व बच्चे की देखभाल करना तथा खुशनुमा माहौल बनाए रखना अपने आप में एक जॉब हैं जिसे हर कोई नहीं कर सकता।