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कभी स्टेटस सिंबल, कभी प्रेम में असफलता, कभी पेरेंट्स का कम्युनिकेशन गैप तो कभी यारी-दोस्ती के चलते युवा नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। इस से जहाँ युवाओं में स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां पैदा हो रही हैं वही वे क्राइम की ओर भी उन्मुख हो रहे हैं। जरूरत है काउंसलिंग के जरीए युवाओं की दिनचर्या पटरी पर लाने की ताकि उन्हें इस लत से बचाया जा सके।
उपभोक्तावादी एवं पश्चिमी के प्रभावों से सभ्यता से जीवनशैली में आए बदलाव के चलते युवाओं में शराब व सिगरेट पीने का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ रहा है, युवाओं में सिगरेट या शराब पीने की लत बढती जा रही है। युवतियां भी इस में युवकों से पीछे नही हैं। काउन्सलर दीप्ती शर्मा का कहना है कि समाज के मूल्यों में तेजी से बदलाव का परिणाम है युवाओं में शराब व सिगरेट की बढती लत।
एक समय था जब शराब अथवा सिगरेट को सामाजिक बुराई माना जाता था तथा ऐसे व्यक्ति को हेयदृष्टि से देखा जाता था, लेकिन आज युवा घर के बाहर ही नही बल्कि घर के अंदर भी जाम लडाने से गुरेज नही करते। सिगरेट तो हर कदम पर उन का शगल बन चुका है। शराब के मामले में अब तो “फॅमिली ड्रिंकिंग” की अवधारणा ने जन्म ले लिया है, जिस के चलते अब एक ही छत के नीचे पिता और बेटा-बेटियां शराब पी रहे हैं।
छुट से मिलता है बढ़ावा
आज के युवा तरक्की की राह पर अग्रसर हैं। वे आत्मनिर्भर तो बन ही रहे हैं साथ ही परिवार का दायित्व भी बखूबी निभा रहे हैं। लेकिन वे अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीना चाहते हैं। हर कदम पर उन्हें रोकटोक बर्दाशत नही। ऐसे में पेरेंट्स पर भी उन की कमाई या कामयाबी का अप्रत्यक्ष दबाव रहता है, जिस कारण वे उन्हें मना भी नही कर पाते और युवा समाज के खुलेपन और समय की मांग का हवाला दे कर अपने आप को सही साबित कर लेते हैं। इस तरह घर से मिली छुट से उन्हें बढ़ावा मिलता है।
स्कूल कॉलेजों में होती है मस्ती
आजकल स्कूल कॉलेज जाने वाले किशोर व युवा आसानी से नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं, उन्हें वहाँ आसानी से ये चीजें उपलब्ध हो जाती हैं और साथी भी मिल जाते हैं। कई बार न चाहते हुए भी वे इस दलदल में फंस जाते हैं। एक पब्लिक स्कूल के 12वीं के छात्र मोहित सक्सेना का कहना है कि जब मैं कॉलेज जाने लगा था तो बिलकुल सिगरेट नही पीता था लेकिन फ्रेंड सुर्किल में रहते हुए दोस्तों की संगत में मैं ने सिगरेट पीना शुरू कर दिया। अब मैं अपनी इस लत से परेशान हूँ और छोड़ना चाहते हुए भी नही छोड़ पा रहा हूँ।
कारण और भी है
युवाओ में शराब अथवा सिगरेट का सेवन करने के और भी कई कारण हैं। कई बार वास्तविक कारण पता भी नही चल पाता। एक कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत 26 वर्षीय नीतू पिछले छह माह से रोजाना शराब पी कर घर लौटती थी, लेकिन बार बार पूछने पर भी वह वजह नही बताती थी। इस का भेद तब खुला जब पेरेंट्स नीतू को एक मनोचिकित्सक के पास ले गए, पता चला कि एक युवक से उस का ब्रेकअप हो गया था जिस कारण वह नशे में डूबी थी। कई बार युवाओं को अपेक्षित सफलता न मिलने पर भी वे टूट जाते हैं और नशे में लिफ्त हो जाते हैं।
पेरेंट्स कम्युनिकेशन गैप न होने दें
दिनरात अपने काम एवं नौकरी में उलझे पेरेंट्स इस से पूरी तरह अनभिज्ञ रहते है कि उन के बच्चे क्या कर रहे हैं। यहाँ तक कि कई बार तो बच्चों से बात किए उन्हें हफ्तों बीत जाते हैं। इस से युवा होते बच्चे लापरवाह हो जाते हैं और उन के मन में पेरेंट्स का दर नही रहता। उन्हें यह दुःख भी सालता हैं कि पेरेंट्स उन्हें प्यार नही करते या समय नही देते। इस कारण वे डिप्रैशन में आ कर भी नशे की ओर उन्मुख हो जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों से निरंतर संवाद बनाए रखें। यह उम्र ऐसी होती है जिस में जरा भी अवहेलना भी उन्हें तोड़ देती है। एक बार यदि उन के कदम गलत दिशा की ओर उठ जाएं तो फिर उन्हें रोक पाना मुश्किल हो जाता है। किन्ही कारणों से यदि बच्चा नशे के जाल में फंस चूका है तो पेरेंट्स को चाहिए कि वे उस के साथ प्यार से पेश आएं कि ताना मारें। इस से धीरे-धीरे वह नशे की प्रवृत्ति से दूर होता जाएगा।
काउंसलर या मनोचिकित्सक की मदद लें
पेरेंट्स यदि प्रयत्न करने के बादजूद बच्चे को सिगरेट या शराब की लत से छुटकारा न दिलवा सकें तो किसी डॉक्टर, मनोचिकित्सक या काउंसलर की मदद लें। कई बार बच्चे पेरेंट्स से अपनी परेशानी बताने में हिचकते हैं जबकि काउंसलर से वे अपनी समस्या तुरंत बता देते हैं। इस से उन की समस्या का हल हो जाता हैं।
युवा के दिमाग पर होता है असर
कम उम्र में शराब पीने से सब से ज्यादा असर दिमाग पर पढ़ता हैं। चूँकि इस उम्र में उन का सब से अधिक विकास होता हैं पर अलकोहल के सेवन से विकास रुक जाता हैं। यही वजह है कि शराब पीने के बाद उन की सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है और उन की पर्सनालिटी भी प्रभावित होती हैं। शुरू शुरू में उन्हें ज्यादा असर नही होती, लेकिन जैसे-जैसे उन के शरीर में अलकोहल की मात्रा बढती जाती है, उन्हें कई तरह की दिक्कतें होने लगती हैं, जबकि युवतियों के चेहरे पर शराब अथवा सिगरेट पीने का साफ़ असर दिखता हैं।
युवाओं का स्टेटस सिंबल बनता शराब का सेवन
शराब या सिगरेट पीना तो यह युवाओं का स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। शुरू शुरू में पेरेंट्स यही सोचते हैं कि हम लिबरल हैं और बच्चों को फ्रीडम दे रहे हैं। युवतिया भी इस में पीछे नही हैं।
कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिन में युवा अपनी ख़ुशी या गम को जताने अथवा भुलाने के चक्कर में शराब पीते हैं। युवावर्ग या समाज भले ही इसे मौडर्न सोसायटी का नाम दे कर।
बढ़ावा दे रहा हो यह चलन घातक साबित हो रहा है। शराब के नशे में यूथ हत्या, लूटपाट, रेप जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। जन तक उन के पास पैसे होते हैं वे मजे से पीते हैं लेकिन पैसे खत्म होते ही इस के इन्तजार के लिए गलत तरीकों की ओर उन्मुख होने लग जाते हैं।
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Kajal Dubey
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