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एक धारणा तो यही है कि जो युवा है, वही सुंदर है। वही आकर्षक और चुस्त दुरूस्त है। उसी की सामाजिक और पारिवारिक गतिविधियां में पूछ है। लेकिन, यह सरासर झूठ है। हर उम्र की अपनी सुंदरता होती है। हर उम्र की अपनी महत्ता होती है। समाज में हर उम्र की स्वीकार्यता है। हर उम्र का महत्व है। लेकिन हममें से ज्यादातर में यह विश्वास घर किए बैठा है कि बूढो को भला कौन पूछता है? इसलिए हम जितने भी दिनों तक युवा बने रहें, ना भी बने रहे तो दिखते ही रहें, उतना ही अच्छा है, क्योंकि यह मान लिया जाता है कि ऐसा करने से हम युवाओं के बीच से तिरस्कृत होने से इसी अंदाज में बचे रहेंगे। एक भावना यह भी कि बढती उम्र के साथ हमारी सार्थकता भी धीरे-धीरे समाप्त होती जाती है। हांलांकि ये बात पूरी तरह से गलत नहीं है। लेकिन सच तो यह भी है कि सिर्फ हमारे लिए कुदरत अपने नियम तो नहीं बदलने वाली ना। सबसे बडी बात, हम युवा दिखें या सुंदर दिखें, इससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि हम अच्छे दिखें। स्वस्थ और जीवंत दिखें।
खुद करें उम्र की इज्जतः
कुछ महिलाओं के चेहरे में एक खास किस्म का आभामंडल दमकता रहता है। उन्हें कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता। वों जहां होती है उनके इर्द-गिर्द का समूचा माहौल जीवंत रहता है। क्योंकि उनमें एक आकर्षक गरिमा होती है, जो उनकी मौजूदगी को चारों तरफ बिखेरती है। भले ही उनका रंग करती रा ना हो, भले ही उनकी त्वचा चिकनी ना हो, भले ही उनके बाल काले ना हो, फिर भी उनमें एक अलग चमक रहती है। क्योंकि उन्हें अपनी उम्र का ख्याल रहता है। कोई और करे इससे पहले वह खुद उसकी इज्जत करती है।
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