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भारतीय समाज में सदियों से बहुत सी मान्यताएं हैं, जो ज्यों की त्यों चली आ रही हैं
भारतीय समाज में सदियों से बहुत सी मान्यताएं हैं, जो ज्यों की त्यों चली आ रही हैं. कुछ लोग इन मान्यताओं को अंधविश्वास मानते हैं, तो वहीं कुछ जीवन के लिए बहुत जरूरी और अहम मान कर इनका पालन करते हैं. इनके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है. इन्हीं मान्यताओं में से एक है "कड़ाही में खाना खाना." लगभग हम सभी ने बचपन में कभी न कभी अपने घर के बड़े-बुजुर्गों को यह कहते सुना होगा कि कड़ाही में खाना नहीं खाना चाहिए. बड़े-बुजुर्गों की बात सुनकर बहुत से लोग कड़ाही में खाना खाने से परहेज भी करते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों बड़े-बुजुर्ग हमें कड़ाही में खाना खाने से मन करते हैं? यदि आपको भी यह बात नहीं पता, तो चलिए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
धार्मिक मान्यता
कड़ाही में खाना खाने को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यदि कुंवारे लोग कड़ाही में खाना खाते हैं, तो उनकी शादी में बारिश होती है. वहीं यदि शादीशुदा लोग कड़ाही में खाना खाते हैं, तो उन्हें आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ता है.
क्यों नहीं खाना चाहिए कड़ाही में खाना?
कड़ाही में खाना नहीं खाने की बात काफी पुराने समय से चली आ रही है. उस समय जिसने इस नियम को बनाया होगा, उसने किसी न किसी चीज़ को ध्यान में रखकर ऐसा किया होगा. असल में पुराने जमाने में लोग लोहे से बनी कड़ाही में खाना पकाते थे, जिसे खाने के बाद ठीक प्रकार से साफ करने में बहुत मेहनत लगती थी.
दरअसल उस समय आज की तरह डिटर्जेंट लिक्विड सोप नहीं होते थे, जो कड़ाही में जमी चिकनाई को आसानी से साफ कर दें. ऐसे में शुद्धता को बनाए रखना थोड़ा मुश्किल काम था. इसी बात को ध्यान में रखकर उस ज़माने में इस नियम को बनाया गया और लोग इस नियम को मानें, इसलिए इस तरह की बात बताई गई कि "कड़ाही में खाना खाने से विवाह में बारिश होती है"
इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि उस ज़माने के लोग जूठा और संकरा खाने से बहुत बचते थे. वे कड़ाही में खाना खाने को अशिष्टता मानते थे. साथ ही मानते थे कि जिस चीज़ को जिस काम के लिए बनाया गया है, उसका इस्तेमाल भी उसी काम में ही होना चाहिए. यदि कड़ाही को खाना बनाने के लिए बनाया गया है, तो उसका उपयोग खाना बनाने में ही किया जाए न कि खाना खाने में.
Ritisha Jaiswal
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