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आज के दौर के लिए वरदान मानी जानेवाली मल्टी टास्किंग का हमारी सेहत पर उल्टा असर पड़ता दिख रहा है. मल्टीटास्किंग इन समस्याओं को जन्म दे रही है, जिन्हें हम हल्के में ले रहे हैं. और इनके नतीजे भविष्य में भयावह हो सकते हैं. आइए जानें, छह हेल्थ प्रॉब्लम्स, जो मल्टी टास्कर्स में देखी जाती हैं.
1. मानसिक क्षमताओं में कमी
हाल ही में हुए एक शोध के परिणाम कहते हैं कि मीडिया मल्टीटास्कर्स के दिमाग़ में धीरे-धीरे ग्रे मैटर कम होता जाता है. नतीजा सामने आता है बौद्धिक नियंत्रण क्षमता, भावनाओं पर पकड़ और इच्छा-शक्ति के रूप में.
2. याददाश्त में कमी
2016 में हुए एक अध्ययन से यह बात सामने आई कि क्रॉनिक मीडिया मल्टीटास्कर्स की वर्किंग मेमरी यानी किसी काम के दौरान संबंधित जानकारियों को याद रखने की क्षमता और लॉन्ग-टर्म मेमरी यानी घटनाओं, जानकारियों को लंबे समय तक याद रखने की क्षमता कमज़ोर बन जाती है.
3. भ्रमित मनःस्थिति
एक शोध के दौरान शोधार्थियों ने सात दिन तक मल्टीटास्किंग करने वाले कुछ लोगों के घर पर रहकर उनका अध्ययन किया और पाया कि जो व्यक्ति जितना ज़्यादा मल्टीटास्क करता था, उसकी मनःस्थिति उतनी ही अधिक भ्रमित थी. एक सीमा के बाद इस भ्रम को इस हद तक बढ़ता देखा गया कि वे ज़रूरी और गैर ज़रूरी काम में ही अंतर कर पाने में फ़ेल होने लगे. इतना ही नहीं एक काम करते-करते दूसरे की ओर पलट जाने, भूलने, ग़लतियां करने का स्तर भी असामान्य रूप से बढ़ा पाया गया.
4. दुर्घटना
शायद आपको आश्चर्य हो, लेकिन पिछले दिनों जब न्यू यॉर्क शहर में क़रीब 1400 पैदल यात्रियों के कार से दुर्घटना-ग्रस्त होने के पीछे के कारणों की जांच की गई, तो उसके पीछे भी मल्टीटास्किंग का जुनून पाया गया. जांच से पता चला कि 10% वयस्कों की तुलना में 20% टीनएज बच्चे पैदल चलते हुए दुर्घटना का शिकार हुए, क्योंकि उनका ध्यान मोबाइल डिवाइस में लगा हुआ था. इस कारण से गिरने, हड्डी टूटने की ख़बरें भी ख़ूब सुनने को मिलती हैं.
5. ख़राब अकैडमिक रिज़ल्ट
क्लास-रूम में मल्टीटास्किंग विषय पर हुई एक रिसर्च के अनुसार लेक्चर के दौरान दूसरे काम में दिमाग़ लगा होने का असर रिज़ल्ट पर पड़ता है. न केवल अपने, बल्कि साथियों के रिज़ल्ट पर भी, क्योंकि जब क्लास रूम में किसी एक बच्चे का दिमाग़ डाइवर्ट होता है (चाहे वह कंप्यूटर के कारण हो या मोबाइल के कारण) तो उसके साथ उसके आसपास के बच्चे भी प्रभावित होते हैं. सेलफ़ोन पॉलिसी ए रिव्यू ऑफ़ विहेवियर फ़ैकल्टी स्टैंड्स के हालिया आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थिति एकदम साफ़ हो जाती है. जिसमें बताया गया है कि एक बड़ा प्रतिशत ऐसे बच्चों का है, जो पर्याप्त सुविधा के बावजूद पढ़ाई में ख़राब स्कोर कर रहे हैं. क्योंकि 90% छात्र क्लास के दौरान फ़ोन चलाते हैं. 32% स्वीकार करते हैं कि टीचर की पकड़ में आए बिना चैटिंग करते हैं. 56% ने माना कि स्कूल में फ़ोन बैन होने के बावजूद वे इसका इस्तेमाल करते हैं.
6. रिश्तों में कड़वाहट
यह एक आम धारणा है कि स्मार्टफ़ोन ने दूरियों को कम किया है. लेकिन इस धारणा के पीछे छिपा एक बड़ा कड़वा सच हाल ही में हुई स्टडीज़ से सामने आया. जिसमें मौजूद आंकड़े साफ़तौर पर कहते हैं कि स्मार्टफ़ोन से संबंध सुधरने के बजाय बिगड़ रहे हैं. अनुसंधान की भाषा में इस समस्या को टेक्नोफ्रेंकेस नाम दिया गया है, जिसका आशय उन दंपत्तियों से है जिनके रिश्ते में टेक्नोलॉजी के कारण दीवार खड़ी हो गई हो.
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