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लाइफ स्टाइल
अनिद्रा की गिरफ़्त में है हिंदुस्तान, मुंबईकर हैं सबसे अधिक परेशान
Kajal Dubey
7 May 2023 1:29 PM GMT
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वर्तमान समय में अनिद्रा एक आम समस्या हो गई है, जिसे अधिकतर लोग अनेदखा करते जा रहे हैं. लेकिन अब इस समस्या को गंभीरता से लेने का समय आ गया है, क्योंकि यह आपकी सेहत को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है. अनिद्रा को लेकर वेकफ़िट नामक कंपनी ने ग्रेट इंडियन स्लीप स्कोर्ड 2019 नामक सर्वे के ज़रिए चौंकानेवाले खुलासे किए हैं. जिसमें उन्होंने लोगों की नींद का पैटर्न समझने की कोशिश की है. इस सर्वे में मुंबई सहित दिल्ली, हैदराबाद, बैंगलोर के 15 हजार से ज़्यादा लोग शामिल थे. इस सर्वे के रिपोर्ट पर नज़र डालें तो सभी शहरों के लोग अनिद्रा की गंभीर समस्या से परेशान हैं, लेकिन मुंबई इसमें पहले स्थान पर है और दूसरा स्थान दिल्ली का है. डॉक्टरों की मानें तो, यह समस्या तेज़ी से विकसित हो रहे शहरी इलाक़ों में अधिक पनप रही है. भविष्य की चिंता और काम के बढ़ते बोझ के कारण लोगों में अनिद्रा की समस्या बढ़ रही है.
मुंबई वाले अधिक परेशान
सर्वे के अनुसार अनिद्रा की शिकायत सबसे ज़्यादा मुंबईकरों को है. तक़रीबन 81 प्रतिशत मुंबईकर इसके शिकार हैं. वहीं बाक़ी बचे लोग भी कई अन्य कारणों से ठीक से नींद नहीं ले पाते हैं. सर्वे में मुंबई के लिए दिए आंकड़ों की माने तो केवल 2 प्रतिशत लोग ही रात में 11 से 1 बजे के बीच अच्छे से सो पाते हैं. वहीं 36 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो 7 घंटे से भी कम सो पाते हैं. कम सोने की वजह से 78 फ़ीसदी मुंबईकर को हफ़्ते में एक से तीन दिन तक अपने वर्कप्लेस पर नींद आती है. 90 फ़ीसदी लोग ऐसे भी हैं जो रात को नींद से 1-2 दो बार उठ जाते हैं. रही इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की बात तो नींद नहीं पूरी होने के कारण 52 फ़ीसदी लोगों को पीठदर्द की समस्या होती है. इस सर्वे में मुंबई से कुल 1,500 लोगों को शामिल किया गया था. डॉक्टरों की मानें तो, अच्छी सेहत के
दूसरे नंबर पर राजधानी
दिल्ली में 80 फ़ीसदी लोग अनिद्रा के शिकार हैं और वजह लगभग मुंबई की समस्या जैसी ही है. दिल्ली सर्वे में 1,700 लोगों को शामिल किया गया था और अनिद्रा के कारणों का पता लगाने की कोशिश की गई. सर्वे में दिए गए आंकड़ों की मानें तो दिल्ली में 52 फ़ीसदी लोग रात में 11 बजे से 1 बजे के बीच सोते हैं. जबकि 31 फ़ीसदी लोग 7 घंटे से भी कम नींद लेते हैं. 77 फ़ीसदी लोगों को हफ़्ते में 1-2 दिन अपने वर्कप्लेस पर नींद आती है. 88 फ़ीसदी लोग रात को 1-2 बार नींद से उठ जाते हैं, जबकि 47 फ़ीसदी लोग पीठदर्द की समस्या से परेशान रहते हैं.
थोड़ा रिलैक्स है बैंगलोर
सर्वे के आंकड़ों में बैंगलोर सिटी थोड़ी रिलैक्स नज़र आई, फिर भी समस्या गंभीर है. इस सर्वे में बैंगलोर के 5,000 लोगों को शामिल किया गया और यहां भी नतीजा निराशाजनक ही निकला. 54 फ़ीसदी लोग रात 11 बजे से 1 बजे के बीच सोते हैं, जबकि 7 घंटे से कम सोने वाले 25 फ़ीसदी हैं. हर पांच में से एक व्यक्ति अनिद्रा की समस्या से जूझ रहा है जो कि राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है. वहीं 11 फ़ीसदी लोग रोज़ ही काम के समय नींद महसूस करते हैं, जबकि 82 फ़ीसदी लोग हफ़्ते में 1 से तीन नींद में होते हैं, जो राष्ट्रीय औसत, 80 फ़ीसदी से ज़्यादा है. बैंगलोर के 90 लोग फ़ीसदी रात को 1-2 बार नींद से उठ जाते हैं और 46 फ़ीसदी लोगों को पीठदर्द की समस्या है.
हैदराबाद भी कतार में
अनिद्रा की समस्या ने हैदराबाद को भी चपेट में लिया है. मुंबई के बाद यह दूसरा शहर है, जहां 48 फ़ीसदी लोग रात 11 बजे से 1 बजे के बीच सोते हैं, जबकि 25 फ़ीसदी लोग 7 घंटे से भी कम सोते हैं. 79 फ़ीसदी लोग ऐसे हैं जो अनिद्रा के शिकार हैं. सप्ताह में 1-3 दिन तक 81 फ़ीसदी लोगों को नींद आती है और 89 फ़ीसदी लोगों की रात में 1-2 बार नींद टूट जाती है. नींद पूरी नहीं होने के कारण 45 फ़ीसदी लोगों को पीठदर्द की समस्या रहती है. इस सर्वे में हैदराबाद के 2,000 लोगों को शामिल किया गया था.
सोने से पहले 90 फ़ीसदी लोग चेक करते हैं गैजेट्स
वेकफ़िट द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार 90 फ़ीसदी लोग सोने से पहले मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग करते हैं. मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार यह एक तरह से स्क्रीन ऐडिक्शन है, जो लोगों को अपनी गिरफ़्त में लेते जा रहा है. लोग देर रात तक वेब सिरीज़, गेम, फ़िल्में, सोशल मीडिया आदि देखते रहते हैं. सोने से ठीक पहले स्क्रीन देखने की वजह से ब्रेन ऐक्टिव हो जाता है और इससे नींद के लिए ज़रूरी मेलाटोनिन नामक रसायन प्रभावित होता है. सर्वे में 23 फ़ीसदी लोगों ने बताया कि वो घरेलू और ऑफ़िस के काम या पैसों से जुड़ी परेशानियों को लेकर चिंतित रहते हैं, जिससे उन्हें जल्दी नींद नहीं आती है.
एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन और स्ट्रेस हैं मुख्य कारण
साइकोलॉजिस्ट आरती श्रॉफ के अनुसार वैसे तो अनिद्रा की कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और स्ट्रेस मुख्य कारणों में से हैं. शहरी इलाकों में अनिद्रा की शिकायत सबसे आम है और यह साल दर साल बढ़ती ही जा रही है. डिप्रेशन में अक्सर नींद की समस्या हो जाती है, जिसे नज़रअंदाज़ करना हमारे लिए मुश्क़िल खड़ा कर सकता है. इसके पीछे बड़ी मानसिक समस्या भी हो सकती है. इसके अलावा एक और बड़ा कारण सामने आ रहा है, वह है स्क्रीन एडिक्शन.
स्लीप हाइजीन मेंटेन करें
साइकियाट्रिस्ट राहुल घाड़गे की मानें तो आज के समय में अनिद्रा के मुख्य कारणों में इलेक्टॉनिक गैजेट्स शामिल हैं. यह आपके सोचने की प्रक्रिया को बहुत ज़्यादा बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे आप सोते समय भी कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं और वह आप के नींद को बहुत अधिक प्रभावित करती है. दूसरी परेशानी डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी. डिप्रेशन में व्यक्ति नकारात्मक बातें सोचता है और एंग्ज़ायटी में ऐसी बातें सोचता है, जो नहीं हो सकती या होने का एक फ़ीसदी चांस रहता है. लोग स्लीप हाइजीन मेंटेन नहीं करते और अलग-अलग समय पर सोते हैं, जो नींद की परेशानी को बुलावा देता है.
वेकफ़िट के सह-संस्थापक अंकित गर्ग के अनुसार नींद नहीं आने की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे उच्च रक्तचाप से लेकर बेचैनी तक की समस्या. सर्वे से हमें पता चल रहा कि किस तरह से लोग इन समस्याओं को अनदेखा करते हैं. सबसे दुखद यह है कि अधिकतर भारतीय अनिद्रा की इस बीमारी को बीमारी ही नहीं मानते. मुझे लगता है कि इस समस्या के बारे में जागरूकता लाने की ज़रूरत है.
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