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यदि सिर की चोट या ट्यूमर की वजह से मिर्गी की समस्या हुई है तो काफी संभावना रहती है
मिर्गी रोग की पहचान बच्चे के जन्म के एक या दो साल बाद हो जाती है। कुछ मामलों में सिर की चोट या ट्यूमर बनने के कारण ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। दवाओं व सर्जरी से इसे काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके कुछ मामलों में रोगी पूर्ण स्वस्थ भी हो जाते हैं...
मिर्गी एक मस्तिष्क विकार है। इससे प्रभावित बच्चे की पहचान जन्म के एक या दो साल बाद में हो जाती है। हालांकि कुछ मामलों में ये समस्या सिर में चोट लगने या ट्यूमर होने की वजह से किसी को भी हो सकती है। इससे ग्रसित रोगी स्वस्थ होगा या नहीं, ये रोग कि स्थिति पर निर्भर करता है, क्योंकि इसके हर रोगी में लक्षण अलग हो सकते हैं। कुछ मामलों में रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है, जबकि कुछ में बेहतर देखभाल व उपचार के जरिए रोग में नियंत्रण पाया जा सकता है।
यदि सिर की चोट या ट्यूमर की वजह से मिर्गी की समस्या हुई है तो काफी संभावना रहती है कि दवाओं व सर्जरी से राहत मिल जाए। बचपन में मिर्गी के दौरे विभिन्न प्रकार के होते हैं। जिसमें कुछ लक्षण न दिखाई देने वाले तथा कुछ में शरीर में कंपन या सिहरन हो सकती है। इसके कारणों की बात करें तो एक आनुवांशिक व दूसरा मस्तिष्क में लगी किसी तरह की चोट या ट्यूमर ही होता है। इस बीमारी के बारे में अभी जागरूकता की कमी है। लोग इसके रोगी को तिरस्कार की नजर से देखते हैं।
नहीं प्रभावित होती बुद्धिमत्ता
मिर्गी की बीमारी मस्तिष्क विकार है, लेकिन इससे बच्चे की मेधा या प्रतिभा पर कोई असर नहीं पड़ता है। इससे ग्रसित बच्चे सामन्य बच्चों की तरह स्कूल जाना, खेलना, पढ़ऩा आदि सब कुछ कर सकते हैं। कई बार लक्षणों के आधार पर चिकित्सक एक समय बाद दवाएं बंद कर देते हैं और रोगी स्वस्थ रहता है। इसके रोगियों को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे वे किसी तरह की दुघर्टना की चपेट में न आने पाएं।
सर्जरी है बेहतर विकल्प
मिर्गी के जिन मामलों में दवाओं से राहत नहीं मिलती है, उनमें चिकित्सक सर्जरी का विकल्प अपनाते हैं। इसकी सर्जरी किसी भी उम्र में हो सकती है। चिकित्सक रोग की स्थिति के अनुसार, इइजी और एमआरआइ स्कैन जैसे परीक्षण करते हैं। कुछ मामलों में पीइटी व एसपीइसीटी जैसे आधुनिक परीक्षणों की भी मदद ली जाती है। सर्जरी से मिर्गी के दौरों पर नियंत्रण पा लिया जाता है और दवाओं का सेवन भी बंद हो जाता है।
इस तरह करें प्राथमिक उपचार:
- दौरा पड़ने पर भीड़भाड़ का माहौल न बनाएं
-रोगी को शांत और खुले माहौल में रखें
-रोगी के आसपास से वे चीजें हटा दें,जिससे चोट लगने की आशंका हो
- दौरा आने पर सिर के नीचे तकिया रख दें
-रोगी के वे कपड़े हटा दें, जिससे उसे सांस लेने में पेरशानी हो रही हो
-रोगी को करवट के बल लिटाएं
-मुंह से निकलने वाली झाग (थूक) या उल्टी को साफ करते रहें, जिससे सांस लेने में परेशानी न हो
इसका रखें ध्यान:
-उपचार में देरी न करें
-अंधविश्वास से बचें
-चिकित्सकी सलाह पर पूरा उपचार लें
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Apurva Srivastav
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