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साइकिल वह पहला वाहन होता है, जिसे चलाना बच्चे ख़ूब एन्जॉय करते हैं. पर इसके साथ शर्त यह जुड़ी है कि उन्हें ठीक तरह से साइकिल चलाना आए. और इसकी शुरुआती ज़िम्मेदारी होती है पैरेंट्स की कि उनके बच्चे साइकिल चलाने में माहिर हो जाएं. आपके बच्चे गली-मोहल्ले में रफ़्तार से बातें करें, इसके लिए ज़रूरी है उनकी सही ट्रेनिंग और आवश्यक प्रोटेक्टिव गियर्स. तो आइए इसके पहले कि आपका बच्चा ख़ुद गिरते-पड़ते साइकिल लेकर निकल पड़े, उसे सही तरीक़े से साइकिल चलाना सिखाएं.
स्टेप 1: सुरक्षा के उपकरणों के साथ समझौता न करें
बच्चों को साइकिल चलाना शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उनके पास सही साइज़ के प्रोटेक्टिव गियर हों. जैसे उनके हेल्मेट और नी कैप उनके साइज़ के हों. कई बार पैरेंट्स यह सोचकर कि बच्चे तो बढ़ रहे हैं, वे बच्चों को बड़ी साइज़ की साइकिल दिला देते हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे जल्दी और सुरक्षित तरीक़े से साइकिल चलाना सीखें तो उनके साइज़ की साइकिल ख़रीदें. अगर आप बड़ी या भारी साइकिल दिलाएंगे तो उनकी ज़्यादा ऊर्जा साइकिल को संभालने में ख़र्च हो जाएगी. फिर आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे जल्दी साइकिल चलाना सीख जाएंगे.
यही बात हेल्मेट पर भी लागू होती है. उनका हेल्मेट आधे माथे को ढंकता हुआ हो. उससे छोटे या उससे बड़े हेल्मेट की सलाह नहीं दी जाती. हेल्मेट के बेल्ट को ठीक से कसें, ताकि वह साइकिल चलाते समय हिले-डुले न.
स्टेप 2: ट्रेनिंग व्हील की आदत न पड़ने दें
बच्चे जब ट्रेनिंग व्हील की मदद लेकर साइकिल चलाना शुरू करते हैं तो धीरे-धीरे उन्हें उसकी आदत पड़ जाती. ट्रेनिंग व्हील से मिलनेवाले सपोर्ट के चलते बच्चे इस बात को लेकर बेफ़िक्र हो जाते हैं कि साइकिल चलाते हुए वे गिर भी सकते हैं. वे रिलैक्स होकर साइक्लिंग करते हैं और कभी अच्छे से साइकिल चलाना नहीं सीख सकते. तो अगर आप बच्चे के गिरने के डर से ट्रेनिंग व्हील नहीं निकलवाते तो सच पूछिए तो आप उनका भला नहीं, बुरा ही कर रहे हैं. इस तरह वे साइकिल को बैलेंस कर पाना कभी नहीं सीख पाएंगे. वैसे भी आपने उसे प्रोटेक्टिव गियर्स तो दिला दिए हैं तो उसके गिरने से डरना क्यों? वैसे भी आप तो उसके साथ-साथ हैं ना, वह गिरने लगेगा तो साइकिल को सपोर्ट दे सकते हैं.
स्टेप 3: घास पर बैलेंस करना सिखाएं
साइकिल चलाने का सबसे महत्वपूर्ण स्टेप है, साइकिल को बैलेंस करना सीखना. जब बच्चे साइकिल बैलेंस करने लगते हैं तो कई बार लड़खड़ाते हैं, गिरते भी हैं. तो सबसे अच्छा यही रहेगा कि आप बच्चे को घास पर बैलेंस करने की ट्रेनिंग देनी शुरू करें. हां, बैलेंस करना सीखते समय उनकी साइकिल की सीट की ऊंचाई बहुत ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. सीट की ऊंचाई इतनी हो कि जब उनका बैलेंस बिगड़े तब सपोर्ट के लिए उनके दोनों पैर नीचे ज़मीन तक पहुंच सके. वे पैडल मारकर साइकिल को बैलेंस करना सीख लें तब तक उन्हें घास वाली जगह पर ही प्रैक्टिस कराएं. घास न हो तो कॉन्क्रीट या कोलतार की सड़क के बजाय मिट्टी पर प्रैक्टिस कराएं, इससे गिरने पर उन्हें चोट कम लगेगी. हां इस पूरे समय के दौरान आपको बच्चे के साथ रहना होगा और ख़ासकर साइकिल स्टार्ट करते समय उन्हें आपके सपोर्ट की ज़रूरत होगी.
जब आपका बच्चा साइकिल को बैलेंस करने में मास्टर हो जाए तो आप उसकी साइकिल की सीट को थोड़ी- सी ऊंची करा दें. इससे होगा यह कि उसे सीट पर बैठने के बाद पैडल मारने में आसानी होगी. उसके घुटने बिना किसी तक़लीफ़ के मुड़ना शुरू कर देंगे.
स्टेप 4: पैडल की मदद से साइकिल स्टार्ट करना सिखाएं
अब तक तो आपने बच्चे को किसी ऊंची जगह से साइकिल पर चढ़ना सिखाया. आप उसके पैडल मारने तक साइकिल को पकड़कर सपोर्ट किया करते थे, अब धीरे-धीरे उसे ख़ुद से साइकिल स्टार्ट करने की ट्रेनिंग दें. उन्हें एक पैर ज़मीन पर रखकर, दूसरे पैर से पहले पैडल को ऊपर ले आना सिखाएं. उसके बाद उस पैर से ऊपर लाए हुए पैडल पर ज़ोर लगाकर साइकिल को स्टार्ट करना सिखाएं. इससे बच्चे को साइकिल आगे ले जाने में काफ़ी मदद मिलेगी. जैसे ही साइकिल स्टार्ट होगी, थोड़ी-सी हिलेगी, बाक़ी आगे बच्चा संभाल लेगा. उसे आपने बैलेंस करने की ट्रेनिंग तो दे ही रखी है. वे पैडल मारते-मारते आगे बढ़ता जाएगा.
स्टेप 5: ब्रेक की ट्रेनिंग भी है बहुत ज़रूरी है
बात साइकिल चलाने की हो या कोई भी वाहन सही समय पर ब्रेक का इस्तेमाल आना बहुत ज़रूरी है. ब्रेक के इस्तेमाल का मतलब है सही तरीक़े से ब्रेक लगाना. बच्चे को यह बताएं कि अचानक और पूरी ताक़त से ब्रेक लगाना सही नहीं है, जब तक कि कोई अचानक आपके सामने न आ जाए. आमतौर पर जहां रुकना हो, उस जगह से थोड़ा पहले ही, हल्के-हल्के से ब्रेक लगाना शुरू करें. साथ ही साथ पैडल मारने की रफ़्तार को कम कर दें. पैडल मारने की स्पीड कम करना अपने आप में एक तरह का ब्रेक ही है. उन्हें यह भी सिखाएं कि कैसे हैंडल पकड़ने के दौरान आपकी उंगलियां ब्रेक पर भी होनी चाहिए, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके. ढलान से उतरते समय साइकिल की स्पीड कम हो और उंगलियां ब्रेक पर हों यह भी बताएं.
यह टिप आपके लिए
आप एक दिन में या एक हफ़्ते में बच्चे को साइकिल चलाने में प्रो नहीं बना सकते. अब तक के अपने पैरेंटिंग अनुभव से आपने यह तो सीख ही लिया होगा कि बच्चे चीज़ों को सीखने में अपना समय लेते हैं. हो सकता है कि आपके बच्चे का हमउम्र या उससे उम्र में छोटा बच्चा साइकिल चला लेता हो, पर आपका बच्चा अच्छे से न चला पाता हो तो परेशान मत होइए. हर बच्चे की सीखने की कैपिसिटी और तरीक़ा अलग-अलग होता है.
आमतौर पर ऐसी स्थिति में पैरेंट्स ही टेंशल ले लेते हैं. वे फ्रस्टेट होकर अपने बच्चे पर चिल्लाने लगते हैं. इससे बच्चा और डर जाता है और ग़लतियां करने लगता है. इस अनचाहे प्रेशर और स्ट्रेस की वजह से उसे नॉर्मल से भी ज़्यादा टाइम लगता है. आपको यह याद रखना चाहिए कि बच्चे को कुछ सिखाते हुए माहौल को हल्का-फुल्का बनाए रखना चाहिए. सीखने के समय को फ़न टाइम में कन्वर्ट करके देखें. इससे आपके और बच्चे के बीच नज़दीकी और प्यार बढ़ेगा और वह चीज़ों को और जल्दी सीखेगा. यहां बात केवल साइकिल चलाना सिखाने की नहीं है. आप उसे हंसते-खेलते ज़िंदगी के दूसरे सबक भी प्यार दे सकते हैं.
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