लाइफ स्टाइल

बच्चों की लत कैसे छुड़ाएं

Kajal Dubey
29 April 2023 1:54 PM GMT
बच्चों की लत कैसे छुड़ाएं
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देखा जाए तो यह हेडिंग टेक्निकली ग़लत है. ग़लत इसलिए क्योंकि एडिक्शन यानी लत को छुड़ाना चुटकी बजाकर होने जैसा काम नहीं है. ग़लत इसलिए भी है, क्योंकि इससे आपको यह लग सकता है कि यह छोटा-सा आर्टिकल पढ़कर आप अपने बच्चे की किसी लत को छुड़ाने में क़ामयाब हो जाएंगे. आपने जीवन का इतना अच्छा ख़ासा अनुभव लिया है तो आप इस बात से वाक़िफ़ ही होंगे कि लत एक मनोवैज्ञानिक समस्या है. इसे छुड़ाने के लिए हम फ़िज़िकल तरीक़ों की मदद नहीं ले सकते. मनोवैज्ञानिक समस्या का समाधान बातचीत से निकलता है. तो अगर आपने अपने बच्चे की किसी लत को छुड़ाने का निश्चय किया है और इस बारे में बातचीत करने का फ़ैसला किया है तो यह अपने आप में एक हिम्मती निर्णय है, क्योंकि पैरेंटिंग काउंसिलर्स यही कहते हैं कि समस्या नज़र आने पर उसे इग्नोर न करें, बल्कि बातचीत द्वारा तुरंत सुलझाना शुरू कर दें. चलिए जानें, समस्या के समाधान का पहला क़दम बढ़ाते समय यानी बातचीत की शुरुआत करते समय आपको कौन-सी सावधानियां बरतनी चाहिए.
डायरेक्ट हिट करने से बचें, उदाहरणों की मदद से समस्या के बारे में बताएं
बेशक, आप बच्चे की समस्या जानते हैं, पर बातचीत की शुरुआत टू द पॉइंट करने की ज़रूरत नहीं है. यह आपके ऑफ़िस का प्रेज़ेंटेशन नहीं है कि कुछ ही मिनटों में आपको अपनी बात रखनी है. आप अपना समय लें. उसकी जिस लत को छुड़ाना चाहते हैं, उसकी समस्या की भूमिका बनाएं. कुछ उदाहरणों या कहानियों के माध्यम से बताएं कि इस तरह की ग़लत आदतों का क्या दुष्परिणाम हो सकता है. मसलन यदि उसकी जंक फ़ूड की लत सुधारने का इरादा है तो जंक फ़ूड के तमाम साइडइफ़ेक्ट्स के बारे में बताएं. या टीवी देखने या मोबाइल गेम खेलने की उसकी लत पर भी इसी तरह समझाने वाला अप्रोच रखें. उसे बताएं कि भले ही यह चीज़ें बहुत टेम्पटिंग लग सकती हैं, पर किसी भी चीज़ की अति हमेशा हानिकारक होती है. हां, इस दौरान उसे दोषी ठहराकर या उसका उदाहरण देते हुए अपनी बात न रखें. ऐसा करना बातचीत के उद्देश्य को पूरा नहीं करने देगा, क्योंकि जब आप बच्चे को दोषी ठहराते हुए उसे समझाना शुरू करते हैं, तब बच्चा मन ही मन ख़ुद को डिफ़ेंड करने के लिए पॉइंट्स तैयार करने लगता है.
कभी भी ग़लत बातें या ग़लत उदाहरण देकर उनकी आदत छुड़वाने की कोशिश न करें
यह सूचनाओं का युग है, पर अब भी ज़्यादातर पैरेंट्स बच्चों की किसी बुरी आदत या लत को छुड़ाने के लिए ऐसे काल्पनिक या ग़लत उदाहरणों की मदद लेते हैं, जो लॉजिकल नहीं होते. मान लीजिए आपके किसी तर्क से बच्चा कुछ पल के लिए सहमत हो भी गया तो भी आप यह मानकर नहीं बैठ सकते कि हमेशा-हमेशा के लिए वह आपके बहकावे में आ जाएगा. आजकल के बच्चे इंटरनेट सैवी हैं. वे आपकी बातों को क्रॉस चेक करने के लिए इंटरनेट का सहारा ले सकते हैं. ऐसे में आपके द्वारा दी गई ग़लत जानकारी या ग़लत उदाहरण उनका आप पर से भरोसा कम कर सकता है. वे आपकी सलाह और समझाइश को गंभीरता से नहीं लेंगे. तो याद रखें, किसी भी समस्या या समाधान के बारे में बताते हुए, आपका इरादा तो उनका भला करने वाला होगा ही, पर आपके उदाहरण भी लॉजिकल होने चाहिए, वरना बच्चों को कम करके आंकना आपको भारी पड़ जाएगा.
अपना उदाहरण देकर समझाना दोधारी तलवार की तरह होता है, कभी-कभी लेने के देने पड़ जाते हैं
हम किसी को भी समझाते समय सबसे पहले अपना उदाहरण देते हैं. हमें लगता है कि इससे सामने वाले पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. वह यह समझता है कि समस्या किसी को भी हो सकती है, हम उससे उबर सकते हैं. अमूमन यही काम पैरेंट्स बच्चों की किसी आदत को सुधारने, उनकी किसी बुरी लत को छुड़ाने या उनको किसी काम के लिए प्रोत्साहित करने के लिए करते हैं. बच्चे की किसी लत को सुधारने के लिए अपना उदाहरण देना आपको भारी भी पड़ सकता है. जहां बड़े सामनेवाले के उदाहरण से सबक लेने की कोशिश करते हैं, वहीं बच्चे अपने माता-पिता के बचपन के किसी संघर्ष या किसी बुरी आदत को मज़ेदार घटना के तौर पर देखते हैं. वे सोचने लगते हैं, मेरे मम्मी-पापा भी तो ऐसे ही थे, बाद में ठीक हो गए. बड़ा होने के बाद मैं भी ठीक हो जाऊंगा. जब बच्चे ऐसा सोचने लगें तो समझें कि आपकी पूरी कवायद पर पानी फिर गया है. आपने उन्हें शरारत करने या अपनी लत से चिपके रहने का एक्सक्यूज़ दे दिया है. वे कह सकते हैं, आप भी तो पहले ऐसे ही थे ना.
तो बच्चे की आदत को छुड़ाने के लिए अपना उदाहरण देने की कोशिश न ही करें तो बेहतर होगा. उदाहरण का काम सेमिनारों के लिए ही छोड़ दें. अगर मामला हाथ से निकल रहा हो तो उन्हें लत छुड़वाने वाले सेमिनार्स में लें जाएं, जहां दूसरे लोग अपना अनुभव साझा करेंगे, तो बच्चा उन्हें सुनकर अपने अंदर सुधार लाने की कोशिश करेगा.
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