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डायबिटीज़, शराब और बैक्टीरिया से जुड़ी बातें, जो आपको पता होनी ही चाहिए

Kajal Dubey
16 July 2023 11:26 AM GMT
डायबिटीज़, शराब और बैक्टीरिया से जुड़ी बातें, जो आपको पता होनी ही चाहिए
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हम फ़िटनेस से जुड़ी कितनी ही बातों के बारे में रोज़ाना पढ़ते हैं, बावजूद इसके अक्सर कई बातें चूक जाती हैं. आइए जानें, सेहत से संबंधित छोटी, लेकिन काम की बातें, जो आपको पता होनी ही चा‌हिए. इनमें से कुछ बातें आपको चौंका सकती हैं तो कुछ की उम्मीद तो आपने पहले भी की होगी.
पहली बात: डायबिटीज़ और दांतों का है गहरा नाता
आपने कई बार यह सुना होगा कि अधिक शक्कर खाने से डायबिटीज़ का ख़तरा हो सकता है. डायबिटीज़ के कोई बाहरी लक्षण नहीं होते. इसके लिए आपको नियमित रूप से ब्लड शुगर चेक कराते रहना होगा. जनरल ऑफ़ डेंटल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन अनुसार, डेंटिस्ट संभावित डायबिटीज़ को पहचानने व प्री-डायबिटीज़ से ग्रस्त लोगों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं. पेरियोडेंटल नामक मसूड़े की बीमारी डायबिटीज़ का प्रथम चरण है. शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि कम होते दांतों की संख्या और मसूड़े और दांत के बीच बढ़ता गैप देखकर संभावित डायबिटीज़ का पता लगाया जा सकता है. यानी डायबिटीज़ की पहचान आपके डेंटिस्ट भी कर सकते हैं. तो दांतों की जांच रेग्युलर करनावाना शुरू कर दें.
दूसरी बात: यह गाना पूरी तरह ग़लत है
‘मुझे पीने का शौक़ नहीं, पीता हूं ग़म भुलाने को’ इस गाने को भारत के लाखों शराबी सबसे अच्छे एक्सक्यूज़ की तरह लेते हैं. ग़म में डूबे इंसान से सहानुभूति रखते हुए लोग इसपर भरोसा भी कर लेते हैं. पर यह बहाना विज्ञान की कसौटी पर नहीं उतरता. वास्तविकता यह है कि शराब व तनाव दूर होने में कोई संबंध नहीं है. अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी में हुए शोध से इस बात की पुष्टि हुई है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि शराब तनाव के कारण होनेवाली मानसिक व भावनात्मक परेशानियों को थोड़ी देर के लिए भूलने में मदद कर सकती है, लेकिन यह तनाव दूर करने में किसी भी प्रकार से सहायक नहीं होती. शोध के नतीजे इस बात की ओर संकेत करते हैं कि तनाव ख़त्म करने के लिए शराब का सेवन करने से स्थिति और बिगड़ सकती है, क्योंकि तनाव के समय शराब का सेवन करने से हमें और ज़्यादा शराब पीने की इच्छा होती है. नतीजतन तनाव कम होने के बजाय और ज़्यादा देर तक रहता है.
तीसरी बात: बैक्टीरिया अच्छे नहीं, बहुत अच्छे हैं!
ऐंटी बायोटिक्स की खोज के बाद से ही इंसानों ने बैक्टीरिया को अपना दुश्मन मान लिया है. पर विज्ञान कहता है कुछ अच्छे बैक्टीरिया भी हैं जो हमारे शरीर में एक मित्र की तरह मौजूद हैं. ऐसे मित्र, जिनके बिना हमारा जीवन मुश्क़िल है. यह बैक्टीरिया हमारी आंतों में होते हैं और इनकी तादाद हमारी शरीर की कुल कोशिकाओं से 10 गुना ज़्यादा होती है, अर्थात इनकी तादाद 100 ट्रिलियन है. अब इस विषय में दि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) शोध कर रहा है. अच्छे बैक्टीरिया बुरे बैक्टीरिया को नष्ट करके हमें इंफ़ेक्शन से बचाते हैं और शरीर में फ़ंगस को नष्ट करते हैं. भोजन में मौजूद टॉक्सिन्स को नष्ट करते हैं, कब्ज़ से बचाते हैं. अच्छे प्रोबायोटिक की गिनती बैक्टीरिया में की जा सकती है. भारत में प्रोबायोटिक्स प्रॉडक्ट्स की काफ़ी मांग है और यह इंडस्ट्री तेज़ी से विकसित हुई है. आईसीएमआर 400 प्रोबायोटिक्स स्ट्रेन्स का अध्ययन करके यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि क्या इनका इस्तेमाल वायरल इन्फ़ेक्शन, हैजा, प्री-टर्म बर्थ को रोकने और मां के दूध से एचआईवी के वायरस को फैलने से रोकने के लिए ऐंटी-बायोटिक्स के विकल्प के रूप में किया जा सकता है. वैसे अगर आप प्रोबायोटिक प्रॉडक्ट्स का सेवन करना चाहते हैं तो अपनी पसंद के अनुसार दही, टोफ़ू, दूध या खमीर उठी हुई आइस्क्रीम में से कुछ भी चुन सकते हैं.
चौथी बात: जब आप आशावादी नज़रिया रखते हैं तो बीमारी दूर से ही नमस्कार करके चली जाती है
आप जितने ज़्यादा आशावादी और सकारात्मक रहेंगे, आपको स्ट्रोक होने का ख़तरा उतना ही कम होगा. हालांकि दोनों में कोई सीधा संबंध नहीं है, फिर भी गहरा रिश्ता है. पिछले अध्ययनों से पता चला है कि आशावादी लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत होती है, उनके घाव तेज़ी से भरते हैं, उन्हें हृदय रोग होने का ख़तरा कम होता है और इसके अलावा भी अन्य कई तरह के फ़ायदे मिलते हैं. शोधकर्ताओं ने अमेरिका में किए गए हेल्थ और रिटायरमेंट अध्ययनों के आंकड़ों पर नज़र डाली. उन्होंने पाया कि जो लोग जीवन में बेहतर चीज़ों की उम्मीद करते हैं, वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहते हैं और स्वस्थ रहने की पूरी कोशिश करते हैं.
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