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लाइफस्टाइल: डोसा दक्षिण राज्य का व्यजंन माना जाता है. लेकिन यह लगातार इतनी प्रसिद्धि पा रहा है कि पूरे भारत में तो खाया और सराहा जा रहा है, साथ ही अब यह कई देशों में फेवरेट डिश बन चुका है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि खाते ही यह शरीर को तुरंत एनर्जी प्रदान कर देता है. इसकी अन्य खासियत यह भी है कि यह आराम से डाइजेस्ट भी हो जाता है. इसे सांभर के साथ खाएं या नारियल के अलावा टमाटर/लाल मिर्च की चटनी के साथ, स्वाद ऐसा कि आत्मा तक संतुष्ट हो जाए. डोसे को आप सुबह खाएं, दोपहर या शाम को. यह ऐसा व्यंजन है जो पेट भरने के साथ-साथ भरपूर संतुष्टि भी देता है. यह सर्वविदित है कि डोसा दक्षिण भारतीय व्यंजन है, लेकिन इसे ‘अपना’ बनाने को लेकर वहां के दो राज्यों में दावे-प्रतिदावे होते रहे हैं.
शानदार नाश्ता है तो लंच और डिनर भी
डोसा शानदार नाश्ता भी है और लंच व डिनर भी. अगर यह सामने बनता हुआ दिख जाए तो इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाता है. कुछ साल पहले तक दो तीन प्रकार के डोसा बनाए जाते थे, लेकिन अब तो इस डिशेज की इतनी वैरायटी हो गई हे कि आप हैरान हो जाएंगे. वैसे आज भी सबसे मशहूर मसाला डोसा, प्लेन डोसा ओर रवा डोसा है, लेकिन आजकल रेस्तरां में पनीर डोसा, टोमैटो डोसा, ओनियन डोसा, मैसूर मसाला डोसा, पिज्जा डोसा, बटर डोसा तक उपलब्ध है. आप हैरान हो सकते हैं कि कुछ रेस्तरां में तो अब चिकन डोसा तक मिलने लगा है.
इस डोसा में मसाला डोसा के आलू, प्याज, सरसों के दाने, करी पत्ता आदि की स्टफिंग के बजाय मसालेदार चिकन के महीन टुकड़ों को भर दिया जाता है. सामान्य तौर पर चावल व दाल के खमीर पेस्ट से बना गोल फोल्ड या तिकोने डोसे को खाने का मजा गरमा-गरम सांभर व तीखी लाल के अलावा नारियल की नमकीन चटनी के साथ ही आता है. कई इलाकों में नाश्ते के तौर पर खाए जाने वाले डोसे में सिर्फ चटनी ही परोसी जाती है.
दो हजार साल पुराना इतिहास है डोसे का
यह कन्फर्म है कि बाहर से सुनहरा व कुरकुरा और अंदर से नरम व स्पंजी डोसे की उत्पत्ति दक्षिण भारत में हुई है. लेकिन वहां के दो राज्य तमिलनाडु व कर्नाटक इसे ‘अपना’ बताने के लिए आज भी बहस में उलझे रहते हैं. हमें इस विवाद में नहीं उलझना है, लेकिन डोसे को लेकर चली आ रही कहानियां रोचक हैं.
खिले-खिले चावल बनाने में मदद करेंगे ये टिप्स
खिले-खिले चावल बनाने में मदद करेंगे ये टिप्सआगे देखें...
फूड हिस्टोरियन पी थंकप्पन नायर का कहना है कि डोसे की उत्पत्ति पांचवी शताब्दी के आसपास कर्नाटक के उडुपी शहर में हुई थी. इसीलिए जब भी डोसे का जिक्र होता है तो उडुपी भी जुड़ जाता है. उनका कहना है कि 1126 ईस्वी के आसपास कर्नाटक में शासन करने वाले चालुक्य राजा सोमेश्वर तृतीय ने अपने ग्रंथ मनसोलासा (12वीं शताब्दी का संस्कृत विश्वकोश) में दोसाका के नाम से डोसा बनाने की एक विधि भी लिखी थी. दूसरी ओर जाने-माने अन्य फूड हिस्टोरियन केटी आचाय ने कहा है कि डोसा (दोसाई के रूप में) पहली शताब्दी ईस्वी से तमिल संस्कृति में था.
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डोसे को लेकर ‘कहानियां’ भी हैं
तीसरी ‘कहानी’ यह है कि प्राचीन काल में एक ब्राह्मण को मदिरा पीने का शौक था. सामाजिक बहिष्कार के डर से उसने चावल के पेस्ट की खमीर उठाकर मदिरा बनाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा. गुस्से में उसने पेस्ट को गर्म तवे पर डाला और फैलाकर पका दिया, वह डोसा बन गया. चौथी कहानी मैसूर मसाला डोसे को लेकर है.
डोसे की विशेषता है कि यह हमेशा ही ताजा परोसा जाता है. Image-Canva
कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में मैसूर के राजा वडयार ने अपने मैसूर पैलेस में एक उत्सव आयोजित किया. उत्सव समाप्ति के बाद ढेर सारा खाना बच गया. उन्होंने रसोइयों से खाने को बर्बाद होने से बचाने के लिए हल निकालने को कहा. उन्होंने बची हुई सब्जियों को मसाले में मिलाकर डोसा बना दिया. इस तरह मसाला डोसे का आविष्कार हो गया. हम स्पष्ट तौर पर यह कहना चाहते हैं कि डोसा भारतीय भोजन है और अब यह पूरे देश का तो मशहूर व्यजंन है ही, कई देशों में भी इसको पसंद किया जाता है.
हमेशा ताजा ही परोसा जाता है डोसा
डोसे की विशेषता है कि यह हमेशा ही ताजा परोसा जाता है, इसलिए न तो पेट को खराब करता है और न ही शरीर को नुकसान पहुंचाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि यह आराम से डाइजेस्ट हो जाता है और शरीर में एसिड पैदा नहीं करता है. जानी मानी फूड एक्सपर्ट व होमशेफ सिम्मी बब्बर के अनुसार डोसे में चावल, चने, आलू सहित कई सब्जियों का मिश्रण है, इसलिए यह शरीर को तुरंत एनर्जी प्रदान करता है. डोसा खाते ही आपका मन व पेट तृप्ति महसूस करने लगेगा. उसका कारण यह है कि शरीर को जितना पोषण चाहिए, वह सब डोसे में उपलब्ध है. इस साउथ इंडियन डिशेज में भरपूर कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन होता है, लेकिन फेट न के बराबर होता है. यही मिश्रण शरीर को स्वस्थ बनाता है और बीमारियों को दूर रखता है. इसमें कैलोरी भी कम होती है, इसका लाभ यह रहता है कि इसका सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल में इजाफा तो होगी ही नहीं, साथ ही शरीर का वजन बढ़ने का खतरा भी कम हो जाएगा.
हल्का है लेकिन पौष्टिकता में भारी है
डोसे को खाने का सबसे बड़ा मानसिक सुकून है कि यह खाते वक्त ऐसा लगता है कि हम शरीर को हलका भोजन खिला रहे हैं, लेकिन वह भोजन पेट भी भरपूर भर देता है. इसे हलका तो मान लें लेकिन इसमें आयरन और कैल्शियम भी भरपूर पाया जाता है. यह उपरोक्त सारे तत्व मसल्स को तो शानदार बनाते ही हैं, हड्डियों के लिए भी लाभकारी हैं. हम यह कह सकते हैं कि शरीर को जिस परफेक्ट मील (Meal) की जरूरत होती है, डोसा उसके बिल्कुल करीब है. इसकी एक विशेषता यह है कि अगर आप डोसा खा रहे हैं, तो आप इसके साथ कुछ और खाना पसंद नहीं करेंगे, जबकि कुछ और भोजन खाएंगे तो उसके साथ बहुत कुछ खाया जा सकता है. पहले डोसे का सेवन नाश्ते के तौर पर किया जाता था. अब तो यह 24 घंटे का भोजन बन चुका है.
Manish Sahu
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