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लाइफ स्टाइल
क्या महिलाओं की सेक्स लाइफ़ को इफ़ेक्ट करता है पैरेंटिंग स्ट्रेस
Apurva Srivastav
4 March 2023 1:59 PM GMT
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अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि पहली बार माता-पिता बने जोड़ों की सेक्स लाइफ़ में
एक प्रचलित भारतीय फ़िलॉसफ़ी के अनुसार, बच्चे को जन्म देना यानी माता-पिता बनना अपने माता-पिता का कर्ज़ चुकाना है. गहराई से सोचें तो यह अपने आप में एक अद्भुत और सटीक फ़िलॉसफ़ी है. पर जिन लोगों ने कर्ज़ चुकाया होगा वे ही जानते होंगे कि पैरेंट बनने के बाद कैसा लगता है. जहां घर में नया बच्चा ढेर सारी ख़ुशियां लाता है, उसकी किलकारी से घर गूंजने लगता है, एक सकारात्मकता का माहौल बनता है, वहीं उसको इस दुनिया में लानेवालों की ज़िंदगी पूरी तरह बदल चुकी होती है. हम बात कर रहें नए-नए मम्मी-पापा बने जोड़ों की. कहावत भी तो है ‘वन्स पैरेंट्स, ऑलवेज़ पैरेंट्स’. यानी अब आपको हमेशा अपने बारे में सोचने से पहले, अपने बच्चे के बारे में सोचना पड़ेगा, क्योंकि बच्चा आपकी ज़िम्मेदारी है और रहेगा भी. ख़ैर, आज हम जिस बारे में बात करने जा रहे हैं, वह है पैरेंट्स की सेक्स लाइफ़ पर बच्चा पैदा होने के बाद पड़ने वाला असर.
फ़र्स्ट टाइम पैरेंट बनने वाले अपनी सेक्स लाइफ़ को अलविदा कह दें
यह हमारा नहीं फ़र्स्ट टाइम पैरेंट बनें लोगों पर किए गए कई सर्वेक्षणों का कहना है. दरअसल, नवजात बच्चों की देखरेख इतनी स्ट्रेसफ़ुल होती है कि आपको अपनी सेक्स लाइफ़ को गुड बाय कहना पड़ सकता है, कम से कम शुरुआत कुछ महीनों तक तो.
अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि पहली बार माता-पिता बने जोड़ों की सेक्स लाइफ़ में सैटिस्फ़ेक्शन का स्तर काफ़ी नीचे आ जाता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया गया कि मांएं बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में होती हैं. मांओं के बहुत ज़्यादा स्ट्रेस लेने के पीछे का कारण यह है कि आज की पीढ़ी से एक-दो पीढ़ी पहले के माता-पिता पैरेंटिंग यानी बच्चों के लालन-पालन के बारे में इतना नहीं सोचते थे. तब संयुक्त परिवार भी होते थे, जिसके चलते बच्चे को संभालने के लिए घर में बहुत सारे लोग होते थे. शहरीकरण और एकल परिवार के चलन में पैरेंटिंग को एक काम बना दिया है. हर दिन माता-पिता को काफ़ी समय बच्चे को देना पड़ता है.
मांएं कामकाजी हों तो पैरेंटिंग स्ट्रेस और बढ़ जाता है
जर्नल सेक्स रोल्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद मांओं में स्ट्रेस लेवल, पिताओं की तुलना में अधिक होता है. जिसके चलते उनका सेक्स ड्राइव कम हो जाता है. अगर मांएं कामकाजी हों तो पैरेंटिंग स्ट्रेस और बढ़ जाता है. जब वे कुछ महीनों बाद नैनी के भरोसे बच्चों को छोड़कर काम पर जाना शुरू करती हैं, तब उनका मन बच्चे पर ही अटका रहता है. घर पर लौटने के बाद वे पार्टनर को समय देने के बजाय, बच्चे को ज़्यादा से ज़्यादा समय देती हैं, ऐसा करके वे उससे दूर रहने की अपने अंदर की गिल्ट को कम करना चाहती हैं. जब दोनों पार्टनर एक-दूसरे के साथ समय ही नहीं दे पाएंगे तो सेक्स लाइफ़ का सवाल ही नहीं उठता.
इसका ज़िम्मेदार बच्चों को संभालने से पैदा हुई थकान, ब्रेस्ट फ़ीडिंग और प्रेग्नेंसी के बाद शरीर में आए बदलावों को भी माना जा सकता है. कई महिलाएं बेबी के पैदा होने के बाद अपने शरीर को लेकर सहज महसूस नहीं करती हैं.
ऐसे में क्या करें पति-पत्नी?
अगर पित-पत्नी न्यूक्लियर फ़ैमिली सेट-अप में रह रहे हैं तो सबसे पहले उन्हें अपने बच्चे की ज़िम्मेदारियों को मिलकर शेयर करना चाहिए. ब्रेस्ट-फ़ीडिंग जैसे काम तो सिर्फ़ मांएं ही करा सकती हैं, ऐसे कामों के अलावा पिताओं को चाहिए कि वे बच्चों के दूसरे काम करने की ज़िम्मेदारी उठाएं. इससे मां कम थकेगी और पैरेंटिंग के अनुभव को एन्जॉय करेगी. पिता की बच्चे के साथ अच्छी बॉन्डिंग बनेगी. पति को अपनी पत्नी के शरीर में आए बदलावों के बारे में किसी तरह के नकारात्मक कमेंट नहीं करने चाहिए.
वैसे अच्छी बात यह है कि हमने जिन शोधों के आधार पर यह आर्टिकल लिखा है, उनके अनुसार एक साल बीतते-बीतते कपल्स की सेक्स लाइफ़ ट्रैक पर लौटने लगती है.
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