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इंटरनेट एक ऐसा रास्ता है, जो आपको दुनिया के किसी भी कोने तक ले जा सकता है. ज्ञान का ऐसा भंडार है, जहां आप हर विषय के बारे में जानकारी पा सकते हैं. एक ऐसी दुकान है, जहां छोटी-बड़ी हर चीज़ महज़ एक क्लिक पर ख़रीद सकते हैं. एक ऐसा साथी है, जो आपके मूड के अनुसार मनोरंजन के कई विकल्प देता है. एक ऐसा वफ़ादार नौकर है, जो आपकी चाकरी में चौबीसों घंटे तैयार रहता है, बस आप उसे आदेश तो दें. पर यही इंटरनेट, जो आपके एक आदेश पर आपके क़दमों में पूरी दुनिया हाज़िर कर देता है, एक समय बाद आपके दिमाग़ में इस क़दर क़ब्ज़ा कर लेता है कि आप इसे आदेश देते-देते कब इसकी गलियों में गुम हो जाते हैं, आपको पता तक नहीं चलता. इसके बिना आप अधूरा महसूस करने लगते हैं. आपको लगता है कि आपकी दुनिया बस इंटरनेट ही है. इस लेवल पर पहुंचने को कहते हैं इंटरनेट एडिक्शन यानी इंटरनेट की लत. आइए, इस लत के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करते हैं.
सावधान, आप इंटरनेट के जाल में फंस रहे हैं…
क्या आप आजकल इंटरनेट पर कुछ ज़्यादा ही वीडियो गेम खेलने लगे हैं? ख़रीददारी के लिए बाज़ार जाने की जहमत उठानी आपने बंद कर दी है. आप दुनिया के दूर-दराज़ के कोनों तक तो पहुंच जाते हैं, पर घर से महज़ 500 मीटर दूर गए आपको ज़माना हो गया है? सुबह सबसे पहले उठते ही अपने सोशल मीडिया के अपडेट्स चेक करते हैं? रात को वॉशरूम जाने के लिए उठते हैं तो मोबाइल को भी जगा देते हैं, यह देखने के लिए कि दुनिया में कहीं कुछ नया तो नहीं हो रहा. आप दिन का अच्छा-ख़ासा समय यूट्यूब वीडियोज़ देखते हुए बिताते हैं? आपको कुछ भी पूछो, तो उसके जवाब में इंटरनेट सर्च करने लगते हैं? आपको भले न लगे, पर आपके परिवार के सदस्य और क़रीबी दोस्त कहने लगे हैं कि तुम आजकल फ़ोन और कम्प्यूटर पर कुछ ज़्यादा ही देर तक रहते हो… अगर इनमें से कई बातें आप पर लागू हो रही हैं तो सावधान हो जाएं आप इंटरनेट के जाल में लगभग फंसने जा रहे हैं, कुछ मामलों में तो फंस भी चुके हैं. साइंस की भाषा में इसे इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर या कंपल्सिव इंटरनेट यूज़ (सीआईयू) भी कहते हैं. हालांकि इंटरनेट एडिक्शन डिस्ऑर्डर को ऑफ़िशियली डिस्ऑर्डर्स की श्रेणी में नहीं रखा गया है, पर एक अनुमान के मुताबिक़ अमेरिका और यूरोप की लगभग 10 फ़ीसदी आबादी इंटरनेट एडिक्शन से जूझ रही है.
लोग क्यों इंटरनेट के आदी हो जाते हैं?
जैसे ड्रग्स या अल्कोहल हमारे मस्तिष्क के प्लेज़र सेंटर्स को उत्तेजित करते हैं, इंटरनेट एडिक्शन भी दिमाग़ पर बिल्कुल वैसा ही असर डालता है. इंटरनेट पर समय बिताने के दौरान डोपामाइन का स्राव होता है, जिससे आपको अच्छा महसूस होता है. पर इस तरह अच्छा महसूस करने के लिए आप और सारी ऐक्टिविटीज़ करनी पड़ती हैं. और ऐक्टिविटीज़ के लिए आपको इंटरनेट पर और अधिक समय बिताना पड़ता है. आप इंटरनेट पर गेम खेलते हैं, शॉपिंग करते हैं, कुछ सर्च करते हैं, वीडियोज़ देखते हैं… इस क्रम में अधिक से अधिक समय ऑनलाइन बिताने लगते हैं. आपकी निर्भरता इंटरनेट पर बढ़ती जाती है.
अब सवाल यह कि दिनभर में काफ़ी समय वेस्ट करने के बावजूद आप इंटरनेट पर बिताए जानेवाले समय के दौरान अच्छा क्यों महसूस करते हैं? ब्राउज़िंग, गेमिंग, शॉपिंग और पॉर्नोग्राफ़ी जैसी गतिविधियां आपके दिमाग़ को रिवॉर्ड जैसी लगती हैं. चूंकि इंटरनेट का भंडार इतना विशाल है कि आपको हर बार नई-नई चीज़ें जानने, देखने को मिलती हैं. टीवी के इतर इंटरनेट आपको चीज़ों को अपने हाथ से कंट्रोल करने की सुविधा देता है, यानी अगर कोई जानकारी आपको अच्छी न लगी तो आप दूसरी की ओर बढ़ सकते हैं. आप ख़ुद को ताक़तवर महसूस करते हैं. और इसी ताक़त के झूठे एहसास के चलते और डूबते जाते हैं.
कुछ लोग इंटरनेट और उसकी पीठ पर सवार होकर चलनेवाली सोशल मीडिया के चलते दूसरों की ज़िंदगी में ताकझांक करने से ख़ुशी का अनुभव करते हैं. जिन लोगों से हम प्यार करते हैं या जिनसे अथाह नफ़रत करते हैं, उनकी ज़िंदगी में क्या कुछ हो रहा है, इंटरनेट बता देता है. इस तरह आसानी से जानकारी उपलब्ध कराकर इंटरनेट हमारे दिमाग़ को अपना ग़ुलाम बनाना शुरू कर देता है.
कुछ लोग अपनी दूसरी परेशानियों से बचने के लिए इंटरनेट की शरण में आते हैं. मसलन एंज़ॉयटी और डिप्रेशन से जूझ रहे लोग सुकून की तलाश में इंटरनेट पर आते हैं. कुछ समय तक उन्हें अच्छा भी लगता है, पर जल्द ही वे इंटरनेट के कंट्रोल में आ जाते हैं. जिन लोगों को सामाजिक कार्यक्रमों में आनेजाने में सहजता महसूस नहीं होती, वे भी आसानी से इंटरनेट के लती बन सकते हैं.
संकेत, जो बताते हैं कि आप इंटरनेट के जाल में फंस चुके हैं
इंटरनेट आपको अपनी गिरफ़्त में लेने के बाद मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से आपको प्रभावित करना शुरू कर देता है. इसके कुछ शारीरिक और मानसिक लक्षण यूं हैं
-अपनी ज़िंदगी और हालातों से असंतुष्ट महसूस करना, जिसके चलते मामला डिप्रेशन तक पहुंच सकता है
-अपराध बोध की भावना पैदा हो जाना. भले ही इंटरनेट पर समय बिताते हुए आपको अच्छा लगे, पर उसके चलक्कर में जब ज़रूरी काम नहीं करते, तब आपको अपराध बोध यानी गिल्ट महसूस होने लगता है.
-इंटरनेट सबसे पहले आपके टाइमटेबल पर अटैक करता है. आपको पता ही नहीं चलता कि आप कितने समय तक इंटरनेट पर फंसे रहे. आप चीज़ों की प्राथमिकता तय करना भूल जाते हैं. आपका वर्क शेड्यूल गड़बड़ हो जाता है. ऑफ़िस का काम प्रभावित होता है. आपकी निजी ज़िंदगी पर भी इंटरनेट नकारात्मक असर डाल सकता है.
-कम्प्यूटर या स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करते समय आपका मूड बेहद ख़ुशगवार रहता है. आप इंटरनेट पर समय बिताते समय अपनी सारी चिंताओं और ज़िम्मेदारियों से मुक्त महसूस करते हैं.
-आप पहले की तुलना में ज़्यादा झूठ बोलते हैं. इसका कारण यह है कि इंटरनेट के चलते आप समय पर दूसरी ज़िम्मेदारियां और ज़रूरी काम नहीं कर पाते. पूछे जाने पर बहानेबाज़ी करते हैं या झूठ बोलते हैं.
-मूड स्विंग का सामना करना एक प्रमुख लक्षण है. दरअसल जब आप ऑनलाइन होते हैं, तब आपको लगता है कि दुनिया आपकी उंगलियों के क्लिक के नीचे है, पर जैसे ही असल ज़िंदगी में आते हैं तब ख़ुद को बेहद अकेला पाते हैं. आपको डर लगता है, अकेलापन महसूस होता है. कभी-कभी ख़ुद से चिढ़ भी होती है. आपको न जाने किसपर ग़ुस्सा आने लगता है. आपका व्यवहार उग्र हो जाता है.
-आपकी एकाग्रता कम होती है. आप चीज़ों से जल्दी बोर हो जाते हैं. आपके दिमाग़ में एक आभासी दुनिया तैयार हो जाती है, जिसके चलते शरीर का बायोलॉजिकल चक्र गड़बड़ा जाता है. इंटरनेट के लती लोगों को रात को ठीक से नींद नहीं आती. यानी इंटरनेट इंसोम्निया की सौगात दे सकता है.
इंटरनेट के कुछ शारीरिक लक्षण भी हैं, जैसे
-लंबे समय तक स्क्रीन में घुसे रहने के कारण आंखों की समस्याएं होना. आमतौर पर ड्राय आईज़ और ठीक से दिखाई न देना. आंखों में जलन और खुजली.
-दिमाग़ को पूरी तरह से इंटरनेट पर खपाए रखने के कारण सिरदर्द.
-एक ही पोज़िशन में बने रहने के कारण पीठ दर्द, गर्दन में अकड़न, कलाइयों में दर्द (कारपल टनल सिंड्रोम).
-वज़न बढ़ना या कम होना, क्योंकि आप ज़्यादा समय तक इंटरनेट पर बने रहने के लिए एक्सरसाइज़ और दूसरी आउटडोर ऐक्टिविटीज़ को बंद कर देते हैं, इ
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