लाइफ स्टाइल

होम वर्कआउट के लिए 5 बेहद ज़रूरी फ़िटनेस गैजेट्स

Kajal Dubey
27 July 2023 5:03 PM GMT
होम वर्कआउट के लिए 5 बेहद ज़रूरी फ़िटनेस गैजेट्स
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रस्सी कूदना एक बेहतरीन कार्डियो वर्कआउट है. इस काम में आपकी मदद करेगी स्मार्ट रोप. स्मार्ट रोप से न केवल आप रस्सी कूद सकते हैं, बल्कि यह आपकी फ़िटनेस के बारे में डेटा भी देती रहेगी. इसमें आप अपना वर्कआउट डेटा भी स्टोर कर सकते हैं. यह फ़िटनेस रोप आपके स्मार्ट फ़ोन से अटैच्ड होती है. वहां जाकर आप डेटा एनलाइज़ कर सकते हैं.
स्मार्ट वॉच
अपने डेली वर्कआउट और स्टेप काउंट पर निगाह बनाए रखने के लिए स्मार्ट वॉच से बेहतर भला और क्या हो सकता है. यह डिवाइस को आपके फ़ोन से कनेक्ट करके आपको आपकी प्रोग्रेस रिपोर्ट देने में मददगार है. इससे आपको यह अंदाज़ा होता है कि आपने अपने फ़िटनेस गोल को कितना अचीव किया है. इतना ही नहीं इससे आपके हार्ट रेट, स्टेप काउंट और ऑक्सिजन लेवल का भी ट्रैक रखा जा सकता है.
स्मार्ट एक्सरसाइज़ साइकिल
क्या आप अपने दोस्तों के साथ रोज़ाना सुबह साइकिलिंग पर जाने को मिस करते हैं? हम आपकी मदद करनेवाले एक स्मार्ट गैजेट के बारे में बताने जा रहे हैं. वह गैजेट है स्मार्ट एक्सरसाइज़ साइिकल. आउटडोर फ़न को मिस करनेवालों के लिए यह एक बेस्ट गैजेट है. घर में ही इसकी सवारी करते हुए आपको ऐसा लगेगा कि जैसे आप अपने शहर की ख़ाली गलियों में फर्राटेदार साइकिल चला रहे हैं.
पोर्टेबल ट्रेडमिल
अगर आप ट्रेडमिल पसंद करते हैं, पर इसलिए नहीं ख़रीद रहे हैं क्योंकि पहली बात तो इसकी क़ीमत काफ़ी अधिक है और दूसरी बात ट्रेडमिल को घर में रखना व्यावहारिक नहीं है. ट्रेडमिल काफ़ी जगह घेरती है. पर अब कई तरह के पोर्टेबल ट्रेडमिल उपलब्ध हैं, जिन्हें इस्तेमाल करना और बाद में स्टोर करना बेहद आसान है. इतना ही नहीं, आपको जानकर अच्छा लगेगा कि इन पोर्टेबल ट्रेड मिल्स की क़ीमत भी बहुत ज़्यादा नहीं है.
स्मार्ट केटलबेल
बहुत ज़्यादा केटरबेल्स मज़ा किरकिरा कर देते हैं? क्या हो, जब एक ही केटलबेल से अलग-अलग वज़न के केटलबेल्स का काम लिया जा सके? एक स्मार्ट केटलबेल से यह काम आसानी से हो सकता है. इसके वज़न को अपनी ज़रूरत के अनुसार मॉडिफ़ाई किया जा सकता है. इतना ही नहीं, यह आपके स्मार्टफ़ोन से लिंक्ड होने के चलते आपका पूरा वर्कआउट डेटा फ़ोन में ट्रान्सफ़र कर देता है. इससे आप वर्कआउट के बाद अपने वर्कआउट का हिसाब किताब रख सकते हैं.
टीबी मरीजों को भेदभाव नहीं, आपके सहयोग की दरकार है
टीबी एक संक्रामक बीमारी है. हालांकि इसका इलाज उपलब्ध है, पर समाज में इसको लेकर अब भी एक तरह का डर है. यह डर कहीं न कहीं इसके मरीज़ों के साथ भेदभाव का कारण बनता है. इस बात को समझने के लिए हमने ख़ुद टीबी के तीन मरीज़ों से बातचीत की. उससे यह बात सामने आई कि टीबी के मरीज़ और उनके परिजन सामाजिक भेदभाव से इतने डरे हुए होते हैं, कि वे लोगों को इस बारे में बताना ही ठीक नहीं समझते.
केस#1: होशंगाबाद निवासी राघवेन्द्र तिवारी (परिवर्तित नाम) को अप्रैल 2021 में खांसी, बुखार की शिकायत हुई. जांच कराने पर पता चला कि कोरोना वायरस का संक्रमण है. स्थिति ख़राब होने पर मई में हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा. कोविड की रिपोर्ट मई में निगेटिव आने के बावजूद जब तबीयत में सुधार नहीं हुआ तो जून में भोपाल में इलाज शुरू हुआ. तब संक्रमण से फेफड़ों के पत्थर के समान कठोर होने की जानकारी एक निजी अस्पताल के डॉक्टर ने दी. बाद में एम्स में इलाज के दौरान विस्तृत जांच से पता चला कि कोविड की वजह से टीबी हो गई है. टीबी का इलाज शुरू होने के बाद भले ही तबीयत में सुधार होने लगा, लेकिन राघवेन्द्र और उनके परिवार के सदस्यों ने किसी भी तरह के भेदभाव के डर से तय किया कि वह इसके बारे में किसी को नहीं बताएंगे, बल्कि रिश्तेदारों या जानने वालों को वह सिर्फ़ लंग्स इंफ़ेक्शन या पोस्ट कोविड समस्या ही बताएंगे.
केस#2: पिपरिया निवासी 56 वर्षीय सुरेश कुमार (परिवर्तित नाम) को सांस में तक़लीफ़ होने के कारण जब हॉस्पिटल में एडमिट किया गया तब शुरू में हार्ट प्रॉब्लम के बारे में पता चला. आख़िर में उन्हें डायबिटीज़ के कारण टीबी का संक्रमण होने की जानकारी मिली. टीबी के बारे में पूरी जानकारी न होने तथा लोगों द्वारा किए जाने वाले भेदभाव पूर्ण व्यवहार से बचने के लिए परिवार ने तय किया कि वह इस बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताएंगे और ज़्यादा लोगों तक बात न पहुंचे इसलिए नज़दीकी स्वास्थ्य केन्द्र से टीबी की दवा लेने के बजाय दूसरे शहर में अपनी बेटी के घर के नजदीक स्थित स्वास्थ्य केन्द्र से दवा (डॉट) ली. सुरेश और उनका परिवार जानता था कि अगर उन्होंने अपने नज़दीकी या जानने वालों को इस बारे में बताया तो वह उनके संग दूरी बनाएंगे. बीमारी के ठीक होने के बाद भी उनके संग भेदभाव करेंगे.
केस#3: रागिनी ठाकुर (परिवर्तित नाम) को बच्चे के जन्म के कुछ साल बाद टीबी की शिकायत हुई. उसने इस बारे में सिर्फ़ अपने पति को बताया और दवाई लेना शुरू कर दिया. पति-पत्नी ने तय किया कि वह इस बारे में किसी को नहीं बताएंगे और जब तक ठीक नहीं हो जाती किसी के घर एहतियातन नहीं जाएंगी. उन्होंने यह निर्णय इसलिए लिया कि लोग उन्हें ठीक होने के बाद भी अपने घर बुलाने में संकोच करेंगे और उनके साथ बर्तन अलग करने, दूर बैठने, खाना संग न खाने जैसा व्यवहार करेंगे.
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