लाइफ स्टाइल

ख़ुशहाल पैरेंटिंग के 4 गोल्डन रूल

Kajal Dubey
29 April 2023 1:07 PM GMT
ख़ुशहाल पैरेंटिंग के 4 गोल्डन रूल
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दुनिया का सबसे बड़ा मिथक है, परफ़ेक्शन. यहां कोई परफ़ेक्ट नहीं है और बन भी नहीं सकता. यह अलग बात है हम जीवन के हर क्षेत्र में परफ़ेक्ट बनने की कोशिश करते रहते हैं. किसी ज्ञानी ने कहा है हमें परफ़ेक्शन के पीछे नहीं बल्कि ख़ुशियों के पीछे भागना चाहिए. ख़ुशियां मिल सकती हैं, पर परफ़ेक्शन नहीं. यही बात हमें बतौर पैरेंट भी याद रखनी चाहिए. आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, आपको पैरेंटिंग में परफ़ेक्शन मिले न मिले, पर थकान ज़रूर मिलेगी. आख़िरकार आपको बच्चा संभालने के साथ-साथ घर, परिवार, ऑफ़िस, फ़ायनांस न जाने कितनी चीज़ें देखनी पड़ती हैं. यदि आप हर जगह परफ़ेक्ट बनना चाहेंगे तो फ़िज़िकली और इमोशनली थक जाएंगे. आप दुखी, चिड़चिड़े और असंतुष्ट व्यक्ति में बदल जाएंगे. यहां हम पैरेंटिंग के चार गोल्डन रूल्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो आपको ख़ुशहाल बना देंगे.
पहला रूल: आपको मल्टी-टास्कर बनना ही होगा
वैसे आप चाहे जहां रह रहे हों, मसलन शहरों में या गांवों में चीज़ें इतनी तेज़ी से बदल रही हैं कि उनके साथ समन्वय बनाए रखने के लिए आपका मल्टी-टास्कर होना महत्वपूर्ण हो गया है. पर जब आप पैरेंट बनते हैं तो मल्टी-टास्कर बनना अनिवार्य ही हो जाता है. आपको पहले की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चे के लालन-पालन की ज़िम्मेदारी भी निभानी है. बच्चों की परवरिश समय मांगती है. पर समय तो सबके पास दिन में चौबीस घंटे ही होते हैं. यह तब हो सकेगा, जब आप दो काम करेंगे-पहला अपनी स्पीड को थोड़ा-सा बढ़ा लेंगे और दूसरा एक ही समय में कई काम निपटाने की कला सीख लेंगे. यह रातों-रात होनेवाला बदलाव नहीं है. आपको इसके लिए मेहनत लगेगी. आपको अपना शेड्यूल ठीक तरह से बनाना होगा और उसके अनुसार काम करना होगा. मल्टी-टास्कर होने का मतलब ही है बेहतरीन टाइम मैनेजमेंट.
दूसरा रूल: आपको मदद की ज़रूरत होगी, आपको इनकार नहीं करना चाहिए
पैरेंटिंग समझदारी से किया जानेवाला काम है. इसमें ज़िद के लिए कोई जगह नहीं होती. आपको कई बार ऐसे काम करने होते हैं, जो आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं होते. उदाहरण के लिए आप उन लोगों में हैं, जिन्हें अपने आत्मनिर्भर होने पर नाज़ है. उन्हें इस बात का गर्व है कि वे अपने सारे काम बिना किसी की मदद के कर लेते हैं. पर बाक़ी कामों और पैरेंटिंग में फ़र्क़ है. यहां आपको मदद की ज़रूरत पड़ेगी, ख़ासकर यदि आप पैरेंटिंग को बोझ नहीं एन्जॉयमेंट की तरह लेना चाहते हैं तो आपको सभी उपलब्ध मदद का सहर्ष स्वागत करना चाहिए. पैरेंटिंग में सबसे बड़ी मदद बनते हैं बच्चों के दादी-दादा और नानी-नाना. यदि वे आपके साथ रह रहे हैं तो यक़ीन मानिए आप एक ख़ुशहाल पैरेंट होंगे. यदि वे साथ नहीं हैं तो बच्चे के लिए किसी नैनी या फ़ुल-टाइम केयर टेकर की व्यवस्था हो सके तो बेहतर होगा. आपके लिए भी और बच्चे के लिए भी, क्योंकि सारे काम करते हुए आप उतने एनर्जेटिक नहीं रह पाते, जबकि बच्चों को एनर्जेटिक लोगों का साथ पसंद होता है.
तीसरा रूल: आप कितना समय देते हैं यह ज़रूरी नहीं, क्वॉलिटी की अहमियत होती है
भले ही बच्चे को संभालने के लिए आपके पास कितने भी हेल्प क्यों न हों, वे अपने पैरेंट्स का साथ और अटेंशन चाहते हैं. इससे उन्हें यह फ़ील होता है कि वे आपके लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं. आप भले ही बच्चे को तमाम व्यस्तताओं के बीच कम समय दे पाते हों, पर उनके साथ दिन में जितना भी समय बिताएं, बस उनके साथ ही रहें. आपका पूरा ध्यान उनकी बातों, उनके सवालों और उनकी हरक़तों और शरारतों पर रहना चाहिए. आप साथ खेलें, साथ खाएं, हंसे, बोलें, उन्हें कहानी सुनाएं… इससे कम टाइम दे पाने के बावजूद बच्चे के साथ आपकी बॉन्डिंग मज़बूत होगी. इसके लिए ज़रूरी है जब बच्चे के साथ हों तब अपने गैजेट्स यानी लैपटॉप और फ़ोन को ख़ुद से दूर कर दें. बेहतर तो यह होगा कि जिस कमरे में आप बच्चे के साथ हों, वहां फ़ोन, टीवी, लैपटॉप जैसी चीज़ें न हों.
चौथा रूल: बच्चे का बेसिक स्वभाव आपके व्यवहार को देखकर डेवलप होता है, यह कभी न भूलें
हमारी पहचान इस बात से होती है कि हम कितने अनुशासनप्रिय हैं, लोगों और संबंधों के प्रति कितने संवेदनशील हैं, काम के प्रति कितने समर्पित हैं, ज़िंदगी को लेकर कितने सकारात्मक हैं. यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा भी एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाना जाए तो इन सभी चीज़ों को उसके बेसिक व्यवहार में शामिल करें. ऐसा करने पर उसका व्यक्तित्व बेहतर होगा. और बच्चा यह सब सीखेगा आपके व्यवहार को देखकर. यानी आप बच्चे के लिए उदाहरण हैं, इसलिए आप बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं, ख़ुद वैसा बनें.
परिवार के साथ समय बिताना, बड़ों की इज़्ज़त करना, छोटों को स्नेह और मार्गदर्शन देना, चीज़ों की क़दर करना, दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना, दूसरों की बातों को सुनना, देश और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझना जैसी बुनियादी बातें बच्चे आपको देखकर ही सीखेंगे. जब बच्चों की इन बातों के लिए तारीफ़ होगी तो उस समय आपसे ज़्यादा ख़ुशहाल पैरेंट पूरी दुनिया में कहीं नहीं होंगे.
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