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4 गोल्डन मंत्र, जो बच्चों को अच्छा इंसान बनाएंगे

Kajal Dubey
29 April 2023 2:16 PM GMT
4 गोल्डन मंत्र, जो बच्चों को अच्छा इंसान बनाएंगे
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जिस तरह समाज में बुराई बढ़ती जा रही है, उससे निपटने का रास्ता हर कोई तलाश रहा है. अच्छी बात यह है कि समाज को बेहतर बनाने में आप अपने हिस्से का योगदान दे सकते हैं. वह योगदान होगा बतौर पैरेंट अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों को सही शिक्षा देकर. हम यहां सिर्फ़ पढ़ाई-लिखाई वाली शिक्षा की ही बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके व्यवहार और शिष्टाचार यानी उसकी नैतिक शिक्षा की भी बात कर रहे हैं. वह पढ़ने-लिखने में अच्छा होगा तो इस बात की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है कि उसका करियर अच्छा होगा, पर बच्चा व्यवहार कुशल होगा, विनम्र होगा और अच्छे चरित्र वाला होगा तो यह पक्का है वह आपको सही मायने में गर्व करने का अवसर देगा. तो बच्चे को अच्छे नैतिक मूल्य सिखाने से बेहतर कोई और निवेश नहीं हो सकता. इस निवेश में आपको पैसे ख़र्च किए बिना बहुत अधिक रिटर्न मिलता है. पैसे देने के बजाय बच्चों को ये 5 गुरुमंत्र सिखाएं, वे बेशक बेहतर इंसान बनेंगे, जिसकी ज़रूरत इस समय हमारी दुनिया को है.
पहला मंत्र: बच्चों को अपनी विनम्रता का महत्व समझाएं
कहते हैं, जिस पेड़ पर जितने अधिक फल लगे होते हैं, वह उतना ही झुका होता है. यहां झुकने का मतलब हमारी विनम्रता से है. विनम्रता कमज़ोर लोगों का नहीं बहादुरों का गहना होती है, यह कहावत आपने सुनी तो होगी ही. आजकल विनम्रता को दयनीयता से जोड़कर देखा जाने लगा है, जो पूरी तरह से एक ग़लत धारणा है. विनम्रता से अपनी बात कहना दयनीयता या कमज़ोरी नहीं, बल्कि आपकी आंतरिक शक्ति का प्रतीक है. तो विनम्रता की पहली सीढ़ी है ‘प्लीज़’ या ‘कृपया’ कहना. बच्चों को सिखाएं कि उन्हें कहां और कब ‘प्लीज़’ का इस्तेमाल करना चाहिए. और सिर्फ़ कहने के लिए प्लीज़ नहीं कहना है, बल्कि उसे फ़ील भी करना है.
दूसरा मंत्र: बच्चों को शुक्रगुज़ार महसूस होना भी आना चाहिए
हम लोग मज़ाक में कहते हैं अंग्रेज़ तो चले गए, पर ‘सॉरी’, ‘प्लीज़’ और ‘थैंक यू’ जैसे शब्द छोड़कर चले गए. पर अगर आप इन शब्दों को मज़ाक के इतर देखेंगे तो इनकी शक्ति महसूस कर सकेंगे. जैसे ‘सॉरी’ कहना हमारी आंतरिक मज़बूती को दिखाता है, उसी तरह ‘थैंक यू’ कहना कृतज्ञ या शुक्रगुज़ार महसूस होने की शाब्दिक अभिव्यक्ति है. इस जादुई शब्द का सही इस्तेमाल करके आप लोगों को अपना मुरीद बना सकते हैं. वो लोग ही हैं, जो आपको जीवन में काफ़ी आगे जाने में मदद करते हैं. तो अगली बार जब आपके बच्चे को कोई कुछ सिखाए, कुछ दे या उसकी तारीफ़ करे तो उसे कृतज्ञता पूर्वक धन्यवाद कहना सिखाएं. इस शब्द का इस्तेमाल वह आपके लिए, अपने दोस्तों, टीचर्स, दुकानदारों तथा विभिन्न सेवाएं देनेवाले प्रोफ़ेशनल्स के लिए करें. और धन्यवाद या थैंक यू कहते समय चेहरे पर हल्की मुस्कान हो तो बेहतर. सपाट चेहरे से बस रस्मअदायगी कर देने से कुछ नहीं होता. अगर आप कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो आपका बच्चा आपको देखकर बड़ी आसानी से यह सीख जाएगा.
तीसरा मंत्र: बच्चों को अपनी ग़लती स्वीकार करना सिखाएं
सही मायने में वही साहसी व्यक्ति होता है, जो ग़लती करने पर और ग़लती का एहसास होने पर सामने वाले से माफ़ी मांगता है. अब हम सभी इंसान हैं, ग़लती करने से हम बच नहीं सकते, पर उसे ग़लती को स्वीकारना, उससे सीखना और आगे वह ग़लती न हो यह सुनिश्चित करना तो हमारे हाथ में है ही. और इसकी शुरुआत का पहला चरण है अपनी ग़लती मानना यानी सॉरी कहना.
आमतौर पर पांच साल तक के बच्चों को अपनी ग़लती का एहसास नहीं होता. वे कई बार यह समझ नहीं पाते कि पैरेंट्स उनपर क्यों चिल्ला रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी बचपन की कई बातें जो आपको मज़ेदार लगती थीं, अब उसने आपको चिढ़ आने लगती है. पर बच्चा समझ नहीं पाता कि ऐसा क्यों भला? कई माता-पिता बच्चों से ज़बर्दस्ती सॉरी बोलने कहते हैं और इस बात से ख़ुश भी होते हैं कि बच्चा अपनी ग़लती पर सॉरी कह भी देता है. पर असल में होता यह है कि बच्चे सॉरी को मुसीबत से निकलने का एक रास्ता समझने लगते हैं यानी स्केप रूट. जहां उन्हें इस बात का अंदेशा होता है कि माता-पिता ग़ुस्सा हो सकते हैं तो वे तुरंत सॉरी कहकर मामले को रफ़ा-दफ़ा करा देते हैं. पर यह तरीक़ा सही नहीं है. सॉरी बोलने के लिए उनपर दबाव न डालें, बजाय इसके उन्हें सॉरी का सही मतलब बताएं. कहें अगर फ़ील हो तब ही सॉरी बोलो, इसको बचने के रास्ते के तौर पर न देखें.
चौथा मंत्र: बच्चों को अपनी बात सलीके से कहना सिखाएं
दुनिया आज की हो, कल की रही हो या आनेवाले कल की हो, एक बात जो सबसे ज़रूरी है वह है अपनी बात को लोगों तक पहुंचाना. पर लोगों को अपनी भावनाएं पहुंचाने का एक सलीका होता है. हमने बचपन में यह डायलॉग कई बार सुना था,‘जब दो बड़े लोग बात कर रहे हों, तो छोटों को बीच में नहीं बोलना चाहिए.’ पर इसका यह मतलब नहीं है कि अगर बड़े कुछ ग़लत कह रहे हों, कर रहे हों तो उन्हें रोका-टोका न जाए. या अगर आपके पास कोई ऐसा विचार हो, जिससे लोगों का भला हो सकता है, वह अपने तक ही रखें. आपको चाहिए कि आप अपने बच्चे को अपनी बात कहने, ग़लत को रोकने का शिष्टाचार सिखाएं. उसका पहला स्टेप है ‘एक्सक्यूज़ मी’ का सही इस्तेमाल करना सिखाना. इस तरह बच्चे बड़ों की बातचीत में दख़ल दे सकते हैं और ऐसा करते हुए वे अशिष्ट या घमंडी भी नहीं लगेंगे. हां, यहां भी अपनी बात को विनम्रता से रखना बहुत ज़रूरी है.
तो बेहतर होगा कि आज से ही अपने बच्चों को ये चार गोल्डन मंत्र सिखाना शुरू करें. अच्छा तो यह होगा कि आप इन मंत्रों का सही इस्तेमाल करने उन्हें दिखाएं. आख़िर, बच्चे हों या बड़े वे सुनने से ज़्यादा देखकर सीखते हैं.
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