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लाइफ स्टाइल
क्यों ज़रूरी है बच्चों को सॉरी बोलना हम आपको बताते है
Kajal Dubey
29 April 2023 2:59 PM GMT
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हम बच्चों को उनकी ग़लतियों के लिए अक्सर कहते हैं,‘चलो सॉरी बोलो.’ हम यह मानकर चलते हैं ऐसा करने से बच्चों को यह पता चलता है कि ग़लत बर्ताव नहीं करना है और ऐसा करने पर सॉरी बोलकर खेद जताना है और आगे के लिए सबक लेना है. पर तब क्या करना चाहिए जब सॉरी बोलने की बारी आपकी हो? क्या बच्चों को सॉरी बोलना ज़रूरी है? अगर हां, तो क्या हो उसका सही तरीक़ा? आपके द्वारा बोले जानेवाले सॉरी का क्या होगा उनपर प्रभाव? जैसे कुछ सवालों के जवाब हमने तलाशने की कोशिश की.
सॉरी कहने से क्यों झिझकते हैं पैरेंट्स?
कई पैरेंट्स को लगता है कि ग़लती हो जाने पर बच्चों से माफ़ी मांगने यानी उन्हें सॉरी कह देने से बच्चों के सामने उनकी इज़्ज़त कम हो जाएगी. बच्चे उनका मज़ाक उड़ा सकते हैं या आगे से उनकी बातों को सीरियसली नहीं लेंगे. पर मनोविज्ञान कहता है असल में होता इसका उल्टा है. अपनी ग़लती को स्वीकार कर और उसके लिए माफ़ी मांगकर आप बच्चों की नज़रों में इज़्ज़त कमाते हैं. बच्चे उन बड़ों की ज़्यादा इज़्ज़त करते हैं, जो अपनी ग़लती मानते हैं, बजाय उनके जो यह मानकर चलते हैं कि बड़े कभी ग़लत नहीं हो सकते. आपके द्वारा सॉरी कहने पर बच्चा यह समझ जाएगा कि अपनी ग़लती को स्वीकार करना और उसे सुधारने की दिशा में काम करना एक नैचुरल प्रोसेस है. रही बात आपके इस डर की कि बच्चा आपसे नहीं डरेगा या आपको हल्के में लेने लगेगा, यह पूरी तरह बेबुनियादी ख़्याल है. बच्चे इतने तो समझदार होते ही हैं कि यह भली तरह जानते हैं कि घर में ‘बॉस’ कौन है. तो यह क्लियर कर लीजिए सॉरी बोलने से आपका ओहदा घटेगा नहीं, बल्कि और बढ़ जाएगा.
बच्चे क्या लगा लेते हैं, माफ़ी नहीं मांगने का मतलब?
आप अपनी ग़लती को भले ही स्वीकार न करें, पर यदि आपसे ग़लती हुई है तो बच्चे को पता चल ही जाता है. ऐसे में अगर आप अपनी ग़लती के लिए सॉरी नहीं कहकर बच्चे को यह संदेश दे रहे होते हैं.
* सॉरी कहने का मतलब यह है कि आपने कुछ बुरा कर दिया है.
* कुछ बच्चे तो यह भी समझ लेते हैं कि सॉरी कहने का मतलब है आप बुरे हैं.
* छोटी-मोटी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ कर देने में कुछ भी ग़लत नहीं है.
* सॉरी कहकर हम बेवजह छोटी बातों को बड़ा बना लेते हैं.
* जब आप माफ़ी मांगते हैं तो अपने स्टेटस के साथ समझौता करते हैं.
* जब तक आपसे कोई कहे नहीं, माफ़ी मांगने का सवाल ही नहीं पैदा होता.
आप माफ़ी मांगकर बच्चों को क्या सिखा रहे होते हैं?
अपनी ग़लती पर आपके सॉरी कहने से बच्चा बिना कुछ समझाएं ये बातें सीख जाता है.
* हम छोटे हों या बड़े, ग़लती किसी से भी हो सकती है. हमें ग़लती करने से बचने की बजाय, अपनी ग़लती को स्वीकारने और उसे सुधारने पर ध्यान देना चाहिए.
* हम जाने-अनजाने कभी-कभी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते हैं. ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि सामनेवाले से माफ़ी मांगी जाए. इससे रिश्ते अच्छे बने रहते हैं. सामनेवाला अच्छा महसूस करता है.
* माफ़ी मांगकर हम छोटे नहीं हो जाते, बल्कि सामनेवाले की नज़रों में हम थोड़े और बड़े हो जाते हैं.
* अपनी ग़लती को स्वीकार करने में किसी भी तरह की शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए. दरअस्ल, हम ग़लती स्वीकार करके अपने सीने का बोझ हल्का कर लेते हैं.
* इससे सबसे पहली बात तो यह होगी कि आप दोनों के बीच आपसी विश्वास और प्यार बढ़ेगा. आप ख़ुद सॉरी बोलकर उनके सामने एक आदर्श सेट कर रहे होते हैं. आज नहीं तो आगे चलकर उसको आपकी इस सीख पर गर्व होगा.
* वह घर और बाहर सभी जगह लोगों का चहेता बनेगा. लोग उसकी समझदारी के क़ायल हो जाएंगे.
कब और कैसे बोलें बच्चों को सॉरी?
* आप जब सॉरी कहें तो सिर्फ़ फ़ॉर्मैलिटी पूरी करने के लिए न कहें. सॉरी कहने का मतलब है आपको अपनी किसी बात या काम पर खेद है. यह आपके सॉरी कहने के अंदाज़ से झलकना चाहिए. आपको अपनी ग़लती की ज़िम्मेदारी लेते हुए सॉरी कहना चाहिए.
* जब बच्चे को सॉरी बोल रहे हों तो उसे बताएं कि आपको किस बात के लिए खेद है. वह कौन-सी बात हो गई, जिसके चलते आप अपसेट हो गए थे यह भी बताएं. हां, सॉरी कहकर ग़लती का दोष बच्चे पर लगाने से बचें.
* अपने ग़लत व्यवहार के बारे में बताने के साथ यह भी एक्स्प्लेन करें कि आपके बर्ताव में क्या ग़लत था. इससे बच्चे वैसे ग़लती करने से बचेंगे.
* अगर बच्चा आपके बर्ताव से शॉक्ड या दुखी हो तो उसे कहें कि आप उसकी फ़ीलिंग को समझते हैं. इस केस में सिर्फ़ सॉरी बोलने से काम नहीं चलनेवाला है.
* बच्चे को सिर्फ़ सॉरी ही न बोलें, बल्कि कहें कि कोशिश करेंगे कि भविष्य में ऐसा फिर से नहीं होगा. अगर आपको ग़ुस्सा बच्चे की किसी हरक़त पर आया था तो आपके सॉरी बोलने के बाद वह भी कोशिश करेगा कि आगे चलकर वह ग़लती कभी न दोहराए.
* सॉरी कहकर तुरंत हंसी मज़ाक करने या उसी ग़लती को दोहराने से बचें. इससे बच्चा सॉरी को महज़ एक रस्म अदायगी समझ लेगा और उसके लिए यह केवल बातों को इग्नोर करने का ज़रिया बन जाएगा.
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