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रक्षा बंधन के मौके पर यह मौजूं फिल्म है.
बॉलीवुड फिल्मों में साधारण जीवन जीने वाले परिवार लापता हो चुके हैं. रिश्ते और उनसे जुड़ी भावनाएं हिंदी फिल्मों में लंबे समय से हाशिये पर हैं. कहानी में यदि परिवार की जरूरत भी होती है तो गिनती के किरदारों को दिखा कर जल्दी से छुट्टी पा ली जाती है. लेकिन निर्देशक आनंद एल.राय की फिल्म रक्षा बंधन न केवल परिवार को नए सिरे से अपने सिनेमा में लाती है, बल्कि भाई-बहन, मां-बाप, घर की चारदीवारी, मिडिल क्लास, समाज और उसमें अब तक मौजूद कुरीतियों को दूर करने की बात करती है. कंप्यूटर ग्राफिक्स, वीएफएक्स से सजी फिल्मों के इस दौर में आपके सामने एकाएक सरल-सामाजिक फिल्म आती है, जिसमें भाई-बहन का रिश्ता और कुरीतियों में पिसते आदमी की जरूरी चिंताओं पर फोकस नजर आता है. रक्षा बंधन इस लिहाज से अपने समय की एक अलग फिल्म है.
चार बहनें और एक लव स्टोरी
फिल्म एक भाई और उसकी चार बहनों की कहानी है. लेकिन इसके बीच में लव स्टोरी का रोचक एंगल भी है. दिल्ली के चांदनी चौक में गोलगप्पे और चाट की दुकान चला रहे लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) ने अपनी मरती हुई मां को वचन दिया था कि वह पहले अपनी चार बहनों को दुल्हन बना कर घर से विदा करेगा, उसके बाद ही अपनी शादी करेगा. अब ट्विस्ट यह कि केदार के मोहल्ले में ही रहने वाली सपना (भूमि पेडनेकर) बचपन से उसकी दुल्हन बनने का सपना देख रही है. केदार को भी उससे प्यार है और उससे ही शादी करना चाहता है. इधर, दहेज के अभाव में केदार की बहनों की शादी नहीं हो पा रही है और उधर, सपना के पिता कुछ ही महीनों में रिटायर होने से पहले हर हाल में बेटी की शादी कर देना चाहते हैं. उन्होंने केदार की हालत समझ कर बेटी के लिए लड़के देखना शुरू कर दिए हैं. क्या केदार समय से अपनी बहनों की शादी कर पाएगा? क्या वह चारों की शादी के लिए जरूरी दहेज जुटा पाएगा? फिल्म इन्हीं सवालों के जवाब लेकर दर्शकों के सामने आती है.
अक्षय की एनर्जी
रक्षा बंधन मूलतः दो हिस्सों में है. पहला हिस्सा उन भावनाओं का है, जो भाई-बहन के स्नेह और एक-दूसरे के लिए त्याग की बातें करती है. यहां भाई अपनी बहनों की शादी करने के लिए तमाम उठापटक करता है. लोगों के हाथ जोड़ने और रिश्ते जमाने वाली मैरिज ब्यूरो की आंटी तक के पैर पड़ता है. हालांकि इस हिस्से में कॉमेडी का रंग भी जमा है. अक्षय फॉर्म में नजर आते हैं. उनकी एनर्जी कॉमेडी को ऊंचाई पर ले जाती है. यह ऐसी कॉमेडी है, जिसे आप परिवार के साथ देख सकते हैं. जबकि फिल्म का दूसरा हिस्सा समाज में फैली दहेज जैसी बुराई पर केंद्रित हो जाता है. यहां दिखता है कि दहेज जुटाने के लिए भाई किस तरह खुद को दांव पर लगाता है.
दुल्हन ही दहेज है
किसी को लग सकता है कि आज के जमाने में दहेज क्या कोई समस्या है? मगर फिल्म के अंत में आपके सामने राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में आज भी हर दिन 20 महिलाएं दहेज के लिए मार दी जाती हैं. फिल्म में केदार की गोलगप्पों की दुकान इस बात के लिए फेमस है कि यहां गोलगप्पे खाने वाली महिलाओं को बेटा पैदा होता है. यहां गर्भवतियों की लंबी कतार लगती है. लेकिन केदार ही आखिरी हिस्से में सवाल उठाता है कि समाज में बेटे पैदा करने का क्या मतलब, जब बेटियों पर दहेज के लिए जुल्म किए जाने हैं? फिल्म मैसेज के साथ अपनी बात पूरी करती है. अंत में लड़कियों की शिक्षा और आत्म निर्भरता का मामला भी सामने आता है.
त्यौहारी मौसम की फिल्म
रक्षा बंधन की जान इसके कलाकार हैं. अक्षय ने अपनी भूमिका में जान फूंकी है, लेकिन भूमि पेडनेकर के साथ बेटी की शादी के लिए चिंतित रहने वाले पिता के रूप में नीरज सूद और मैचमेकर बनीं सीमा पाहवा भी छोटे मगर रोचक रोल में हैं. बड़ी बहन गायत्री की भूमिका में सादिया खतीब अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं. फिल्म की स्क्रिप्ट खास तौर पर उत्तर भारत के छोटे शहरों के दर्शकों को ध्यान में रखकर लिखी गई है, जहां रिश्तों के भावुक पक्ष पर आज भी जोर दिया जाता है. रक्षा बंधन का दूसरा हिस्सा जरूर कई लोगों को कम मनोरंजक लग सकता है क्योंकि यहां दहेज के विरुद्ध कड़ा संदेश है. साथ ही लड़कियों की शिक्षा पर बात की गई है. हालांकि दूसरे हिस्से में राइटर जोड़ी हिमांशु शर्मा और कनिका ढिल्लों ने तेजी से कई सारी चीजें समेटी हैं. आनंद एल. राय का निर्देशन सधा हुआ है और उन्होंने अपने तनु वेड्स मनु वाले दर्शकों को ध्यान में रखते हुए यहां पूरा ड्रामा रचा है. रक्षा बंधन के मौके पर यह मौजूं फिल्म है.
Neha Dani
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