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कलाकार: संजय मिश्रा, राजेश शर्मा, पायल मुखर्जी, चंदन रॉय सान्याल, पूर्वा पराग, अमज़द क़ुरैशी
निर्देशक: राज आशु
निर्माता: पंचम सिंह
लेखन: सीपी झा
रेटिंग: 3.5 स्टार्स
कुछ फ़िल्में महज़ फ़िल्में ना होकर संवेदनशील अनुभवों का ऐसा सजीव दस्तावेज़ होती हैं कि दर्शकों पर उनका गहरा असर होता है. ऐसी ही एक फ़िल्म का नाम है 'वो 3 दिन'(Woh 3 Din) जो पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश में रची-बसी ऐसी मनोरंजक फ़िल्म है जो आपको गांवों के मुश्क़िल हालात और जीवनयापन की परेशानियों से भी रू-ब-रू कराती है.
छोटे से बजट में बनी 'वो 3 दिन' आपको उत्तर प्रदेश के एक साधारण से गांव के एक ऐसे बड़े परिवेश में ले जाती है जहां का जीवन शहरों के मुक़ाबले बेहद कठिन है. ज़िंदा रहते हुए अपने अस्तित्व को बचाए रखने और ज़िंदगी के द्वंद्व से निपटने की जद्दोजहद करते एक साधारण से साइकिल रिक्शा चालक रामभरोसे के नज़रिए से कही गयी फ़िल्म की कहानी बेहद दिलचस्प और दर्शनीय है.
साइकिल रिक्शा के ज़रिए होनेवाली मामूली सी कमाई से एक दिन अपनी बीवी और बेटी के लिए बहुत कुछ करने का सपना देखनेवाले रामभरोसे की ज़िंदगी में उस वक्त एक अनपेक्षित मोड़ आता है जब उसकी मुलाक़ात एक अनजाने पैसेंजर से होती है. 3 दिनों तक रामभरोसे की रिक्शा को किराये पर लेकर उसकी सवारी करने वाले उस अनजान शख़्स की नीयत से पूरी तरह से नावाकिफ़ होते हैं रामभरोसे. यहीं से रामभरोसे के ज़ीवन का रोमांच शुरू होता है जो जल्द ऐसे सस्पेंस और ड्रामा में तब्दील हो जाता है कि रामभरोसे का दिमाग पूरी तरह से चकरा जाता है और फिर उन्हें समझ नहीं आता है कि आख़िर उनके साथ क्या हो रहा है.
साइकिल रिक्शा चालक रामभरोसे के रोल के ज़रिए संजय मिश्रा ने एक बार फिर से साबित किया है कि आख़िर उन्हें आज के दौर का सबसे उम्दा एक्टर क्यों कहा जाता है. फ़िल्म के बाक़ी सभी कलाकारों - राजेश शर्मा, चंदन रॉय सान्याल, पूर्वा पराग, पायल मुखर्जी और अमज़द क़ुरैशी ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं में कमाल किया है.
लेखिका सीपी झा क़लम धारदार है और नज़र काफ़ी पैनी है जिसका उदाहरण पूरी फ़िल्म में देखने को मिलता है. नवोदित निर्देशक राज आशु का निर्देशन बेहद प्रभावशाली है. 'वो 3 दिन' का हरेक सीन चीख-चीखकर कहता है कि इस फ़िल्म को बड़े पर्दे पर ज़रूर देखा जाना चाहिए.
न्यूज़ क्रेडिट: firstindianews
Admin4
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