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अजीत खान कॉलेज की किताबें बेचकर मिले पैसों से हीरो बनने के लिए मुंबई आए थे, जानिए उनसे जुड़ी अनसुनी बातें
Bhumika Sahu
22 Oct 2021 3:06 AM GMT
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Ajit Khan Death Anniversary : अजीत के रूप में हिंदी सिनेमा को एक नई तरह का विलेन मिला था, जो अजीबो गरीब मुंह बनाकर लोगों के अंदर अपनी डायलॉग डिलीवरी और चेहरे से खौफ पैदा करने की कोशिश किया करता था.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सिर पर बंधी भारी सी पगड़ी और घुमावदार भारी मूछों वाला हिंदी सिनेमा का वो डाकू, जिसे दर्शकों ने 70 के दशक में अजीत (Ajit Khan) के रूप में देखा. कुछ फिल्मों में अजीत का ये अंदाज दिखा, तो वहीं, दूसरी तरफ सिनेमा में छाने वाले अजीत कई फिल्मों में सूट बूट पहने पढ़े-लिखे विलेन के रूप में भी नजर आए. आज अजीत खान उर्फ हामिद अली खान (Ajit Khan Death Anniversary) की पुण्यतिथि है. अजीत की डायलॉग डिलीवरी इतनी जबरदस्त होती थी कि उनके स्टाइल को कॉपी करने में लोगों को जरा भी देर नहीं लगती थी.
फिल्म 'जंजीर' का वो आम सा डायलॉग 'मोना डार्लिंग' को उन्होंने अपनी एक अलग ही अदायगी से लोगों के दिलों में उतार दिया था. 'यादों की बारात' फिल्म का वो डायलॉग तो आपको याद ही होगा- 'लिलि, डॉन्ट बी सिली…' अपने इस तरह के हिंग्लिश एक्सेंट से तो अजीत ने सभी को दीवाना बनाया. 'कालीचरण' का डायलॉग 'सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है', इसे कैसे भूल सकते हैं. इस डायलॉग को तो अजीत ने अपनी अनोखी अदायगी से स्क्रीन पर ऐसे बोला था कि आज भी लोग इसे दोहराते हैं.
हिंदी सिनेमा को अजीत के रूप में मिला एक नई तरह का विलेन
अजीत के रूप में हिंदी सिनेमा को एक नई तरह का विलेन मिला था, जो अजीबो गरीब मुंह बनाकर लोगों के अंदर अपनी डायलॉग डिलीवरी और चेहरे से खौफ पैदा करने की कोशिश किया करता था. अजीत ने खुद को एक आम विलेन की जगह स्क्रीन पर हंसता-मुस्कुराता और अपनी डायलॉग्स की अनोखी अदायगी से लोगों को गुदगुदाने वाला विलेन पेश किया, जिससे लोगों में विलेन के प्रति नफरत नहीं, बल्कि प्यार उमड़ा. आज अजीत की पुण्यतिथि के मौके पर हम उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें आपको बताते हैं, जिनके बारे में शायद ही आपने पहले कभी सुना हो.
अजीत से जुड़ी पांच दिलचस्प बातें
1. अजीत का जन्म 27 जनवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था, लेकिन उनका बचपन और जवानी सब हैदराबाद में गुजरी, क्योंकि उनके पिता बशीर अली खान निजाम फौज में हैदराबाद में तैनात थे. यह संजोग की ही बात है, जब 1922 में अनारकली नामक एक ड्रामा लाहौर में लिखा गया, तब उसी साल उनका जन्म हुआ. अजीत ने मुगल-ए-आजम में राजा दुर्जन सिंह जैसा अहम किरदार निभाया था. शायद ने नियती ने तय कर दिया था कि अजीत हीरो बनेंगे और अकबर की कहानी का हिस्सा बनेंगे.
2. अजीत को बचपन से ही फिल्मों और अभिनय का शौक था. पढ़ाई करने के लिए पिता बशीर अली खान निजाम ने उनका दाखिला कॉलेज में तो करा दिया था, लेकिन अजीत की पढ़ाई में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी. जब अजीत का पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगा, तो उन्होंने अपनी किताबें बेचीं और उन पैसों से मुंबई के लिए जाने वाली रेल की टिकट खरीदकर पहुंच गए सपनों की नगरी.
3. 'मुगल-ए-आजम' के दुर्जन सिंह वाले किरदार के लिए पहले के. आसिफ ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था और फिर कुछ समय बाद उन्हें बुला भी लिया. हालांकि, जब वो पहली बार दुर्जन सिंह के किरदार के लिए रिजेक्ट हुए, तो वे बहुत उदास हो गए थे, पर जब के. आसिफ ने उन्हें दोबारा बुलाया तो वह इस फिल्म के लिए हां करने से हिचकिचा रहे थे.
4. कमाल अमरोही जब फिल्म 'अनारकली' बना रहे थे, तब उन्होंने शहजादा सलीम के तौर पर अजीत को चुना था. अगर वह फिल्म बन जाती, तो अजीत की पहचान दुर्जन सिंह वाली नहीं, बल्कि शहजादा सलीम होती.
5. फिल्मकार नासिर हुसैन अपनी हिट फिल्म 'तुमसा नहीं देखा' में शम्मी कपूर को नहीं, बल्कि अजीत को कास्ट करना चाहते थे, पर अजीत इतने मशरूफ थे कि उनके पास डेट्स नहीं थी. इसके बाद उन्हें मजबूरन इस फिल्म के लिए शम्मी कपूर को लेना पड़ा, जो रातों-रात स्टार बन गए. इसका खुलासा नासिर हुसैन ने अपने एक इंटरव्यू में किया था, जिसका दावा राजकुमार केसवानी ने अपने किताब मुगल-ए-आजम में किया है.
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