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बहानों को झूठ बनने में क्या देर लगती है
पं. विजयशंकर मेहता। बहानों को झूठ बनने में क्या देर लगती है। अपनी गलती का कारण दूसरे में ढूंढना एक बहाना है, और जिन्हें बहानों में बहने की आदत पड़ जाती है, वे कब झूठ का सहारा लेना शुरू कर देंगे, पता नहीं चलेगा। अपने लक्ष्य को पाने के लिए, सफलता हासिल करने के लिए जो सूत्र अपनाना पड़ते हैं, उनमें से एक झूठ भी है। कुछ लोगों ने तो मान ही लिया है कि जीवन के कई क्षेत्र, कई व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनकी नींव ही झूठ है।
अब चूंकि मनुष्य आतुर है सफलता प्राप्त करने के लिए, ऊपर उठने के लिए सब बेताब हैं तो इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं, जिनमें एक काम है झूठ बोलना। जब भी इंसान झूठ बोलता है, उसकी आत्मा रोती है। भले ही वह उसे महसूस न करे। जब झूठ के कारण आत्मा रोती है तो तय मानिए भविष्य में उसका परिणाम उल्टा ही आना है।
यदि कारोबार में झूठ बोलने की आदत पड़ गई है, तो इस आदत को कम से कम अपने घर में कभी मत लाइएगा। परिवार में झूठ को सबसे पहले बच्चे लपकते हैं। उनको झूठ मीठा-सा लगता है। जीवन में कई स्थितियां ऐसी बन जाती है कि इंसान के भीतर झूठ बहुत स्वाभाविक हो जाता है। उसका आकर्षण केवल चरित्र से बचाया जा सकता है। अपना बाहर का जीवन भले ही व्यवहार में गुजारें, लेकिन घर का जीवन स्वभाव से बिताएं। स्वभाव कभी झूठ स्वीकार नहीं करता।
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